Ramzan me Zakat : पूरी दुनिया में इस समय माहे रमजान का मुबारक महीना चल रहा है। मुस्लिम भाई रोजा रखने और नमाज ओ तिलावत के साथ ही ज़कात भी अदा करते हैं। इस्लाम में अमीरी-गरीबी का फासला मिटाने के लिए जकात फर्ज की गई। नबी ए करीम के अनुसार वह मुसलमान जो कि साहिबे निसाब यानी गरीब नहीं है, उसे अपनी कुल कमाई का 2.5 प्रतिशत हिस्सा जकात यानी की दान करना होता है। लेकिन कई मुस्लिम जकात को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते है कि हम पर कितनी जकात बनती है और किसे जकात देनी चाहिए। तो हम आपकी मदद के लिए हाजिर है। इस Ramzan me Zakat कितनी देनी है और किसे देनी है ये हम आपको बता रहे हैं। इस अहम मालूमात को औरों तक जरूर पहुंचाएं। हमें इसी तरह अपनी पुरनूर दुआओं में शरीक रखें।
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रमजान में रोजा रखना, नमाज और कुरान इबादत करना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी जकात अदा करना भी है। ज़कात का मतलब है कि संपन्न मुस्लिम बंधु अपनी कमाई का कुछ हिस्सा गरीबों को दान करते हैं। इस सिस्टम यानी निजाम से अमीरी-गरीबी का फासला कम किया जा सकता है। जकात हर उस मुसलमान का फर्ज है, जिसके पास साढ़े 52 तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना रखा है, यानी एक साल गुजर गया हो और इतनी कीमत के जेवरात या कैश आपके पास रखा हो तो उस पर 2.5 फीसदी जकात लगती है।
जकात कुल कमाई का ढाई प्रतिशत होती है। मिसाल के तौर पर किसी के पास एक साल गुजर जाने के बाद 25,000 रुपये रखे हैं तो उस पर जकात होगी महज बीस हजार का 2.5 फीसद यानी के 625 रूपये दान करने है। कितना आसान और सरल उपाय है इस्लाम में गरीबी दूर करने का। लेकिन ज्यादातर मुस्लिम इल्म की कमी से जकात नहीं देते हैं।
रमजान में इस दान को दो तरह से दिया जाता है, जिनको फितरा और जकात कहते हैं। चूंकि हर बंदे का अपना जमीर और खुद्दारी होती है। इसीलिए जकात देने वाला और लेने वाला दोनों गोपनीय तरीके से लेनदेन कर ले। क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर जकात लेने वाले व्यक्ति को ये एहसास नहीं होना चाहिए कि उसे सार्वजनिक रूप से जकात देकर बेइज्जत या जलील किया जा रहा है। इस्लाम में दान पुण्य के नाम पर होने वाले दिखावे पर सख्त पाबंदी है।
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रमजान के महीने में जकात देने से माल पाकीजा हो जाता है। जकात देने से घर में बरकत आती है, और बंदे की सेहत सही रहती है। किसी बला मुसबीत को अल्लाह टाल देते हैं। गरीबों के लिए जकात का माल खुशियां लेकर आता है। वह भी अपनी जिंदगी को एक अच्छे स्तर पर जी पाते हैं। जो बंदा जकात नहीं देता है, कयामत के दिन उसका माल उसी के गले की फांस बनेगा। उसको वही सोने चांदी के जेवरात गर्म करके पहनाए जाएंगे। इसीलिए समय पर माल को स्वच्छ करते रहे।
फितरा हर मुसलमान को देना वाजिब है, जिसे रमज़ान के महीने में ईद से पहले अदा करना जरूरी है। ईद का नाम ईदुल फित्र इसीलिए होता है। क्योंकि इस ईद पर फित्रा दिया जाता है। 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या 1 किलो गेहूं की कीमत किसी गरीब को देना फितरा कहलाता है। यह हर उस इंसान को देनी होती है, जो आर्थिक रूप से मजबूत है यानी साहिबे निसाब हो।
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