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पवन सिंह की हो रही है रविंद्र भाटी से तुलना, जानें दोनों की समानता

Pawan Singh VS Rvindra Bhati: लोकसभा चुनावों में इस बार कुछ ऐसे युवा नेताओं को लेकर जनता में जबरदस्त क्रेज देखने को मिल रहा है जिसके कारण उनकी चर्चा देशभर में हो रही है। शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने लोकसभा चुनावों में निर्दलीय चुनाव लड़कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। अब उनकी तहर पवन सिंह ने भी लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर ताल ठोक कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। भाटी ने बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर और पवन सिंह काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

भाजपा से बगावत

रविंद्र सिंह भाटी और पवन सिंह दोनों का भाजपा से संबंध है लेकिन लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने के कारण बगावत करते हुए चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दोनों ने अपनी प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को चिंता में डालने के साथ पूरा गणित बिगाड़ दिया। दोनें की की वजह से काराकाट और बाड़मेर सीट पर मुकाबला त्रिकाणीय हो गया है। दोनों के कारण भाजपा के उम्मीदवार को ज्यादा नुकसान होने का दावा किया जा रहा है।

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पवन सिंह को आसनसोल से टिकट मिला

भाटी को टिकट नहीं मिला था लेकिन पवन सिंह को आसनसोल से बीजेपी ने टिकट दिया। लेकिन उन्होंने लड़ने से इंकार कर दिया और इसके बाद पवन सिंह काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया। जनता में उनका भारी उत्साह देखने को मिल रहा है और लग रहा है कि इस सीट पर उनके जीत के आसार ज्यादा है।

दोनोें के सामने मजबूत प्रतिद्वंद्वी

भाटी के सामने बाड़मेर-जैसलमेर से केंद्रीय राज्यमंत्री कैलश चौधरी और कांग्रेस उम्मीदवार उम्मेदाराम बेनीवाल हैं, वहीं बिहार की काराकाट लोकसभा सीट पर पवन सिंह की टक्कर एनडीएक समर्थित राष्ट्रीय लोक मोर्चा उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा से है तो महागठबंधन समर्थित कॉम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के उम्मीदवार राजा राम सिंह से उनकी टक्क है।

युवाओं में क्रेज

भाटी और पवन का युवाओं में जबरदस्त क्रेज देखने को मिल रहा है। भाटी छात्र राजनीति से आगे बढ़ तो पवन भोजपुरी के गाने और एक्टिंग से राजनीति में आए है। भाटी की तरह पवन की भी हर सभा में काफी भीड़ उमड़ रही है। दोनों के नामांकन सभा के दौरान समर्थक बड़ी संख्या में जुटे थे और इसमें भी युवाओं की संख्या ज्यादा रही थी।

B टीम होने का आरोप

भाटी और पवन परा बीजेपी की B टीम होने का आरोप लगता है। लेकिन दोनों ने निर्दलीय चुनाव लड़ने से पहले भाजपा को ज्यादा नुकसान हुआ है और अगर इनकी जीत होती है तो यह बीजेपी के लिए फायदा भी होगा नुकसान भी होगा। लेकिन दोनों युवा नेताओं ने अपने दम पर चुनावों का माहौल बदल दिया है।

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Narendra Singh

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