जयपुर। सनातन धर्म में हर माह की प्रत्येक चतुर्थी तिथि भगवान गणेश जी को समर्पित है। ऐसे में हिंदू वर्ष के अनुसार प्रत्येक वर्ष 24 चतुर्थी पड़ती हैं। इनमें कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sakat Chauth) कहा जाता है। इसी वजह से साल में 12 संकष्टी चतुर्थी व्रत किए जाते हैं। बाकी शुक्ल पक्ष की 12 चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। सामान्यतौर पर सभी चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए विशेष हैं, लेकिन इनमें से कुछ विशेष हैं। इन्हीं में से तिलकुट चतुर्थी भी से एक है।
संकष्टी चतुर्थी है सबसे महत्वपूर्ण
आपको बता दें कि हिंदू धर्म के अनुसार तिलकुट चतुर्थी को सभी संकष्टी चतुर्थी (Sakat Chauth) में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को तिलकुट चतुर्थी कहते हैं। इसे सकट चौथ, बड़ी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या लंबोदर संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। इसको वर्ष की बड़ी चतुर्थी भी कहा जाता है। सिर्फ तिलकुट चतुर्थी का व्रत रखने से सभी संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने जितना फल मिलता है।
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सकट चौथ 2024 तारीख, पूजा मुहूर्त
तिलकुट चतुर्थी वर्ष 2024 की पहली संकष्टी चतुर्थी (Sakat Chauth) पड़ रही है। पंचांग के मुताबिक तिलकुट चौथ या सकट चतुर्थी 29 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की सकट चतुर्थी तिथि 29 जनवरी 2024 को सुबह 06 बजकर 10 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 30 जनवरी 2024 की सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। इस दौरान तिलकुट चौथ पर पूजा के 3 मुहूर्त रहेंगे।
सकट चौथ 2024 शुभ मुहूर्त
अमृत मुहूर्त (सर्वोत्तम) – सुबह 07.11 – सुबह 08.32
शुभ मुहूर्त (उत्तम) – सुबह 09.43 – सुबह 11.14
शाम का मुहूर्त – शाम 04.37 – शाम 07.37
चंद्रोदय समय – माघ माह की सकट चतुर्थी को चंद्रोदय समय 29 जनवरी की रात 09.10 मिनट पर रहेगा।
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इस वजह से कहा जाता है सकट चौथ
माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को तिलकुट चतुर्थी (Tilkut Chauth) कहा जाता है। भगवान गणेश को इस दिन तिल कूटकर बनाई गई मिठाई का भोग लगता है। इसी वजह से इसें तिलकुट चतुर्थी कहा जाता है। इसके साथ ही इस दिन (Tilkut Chauth Date) तिल मिले पानी से स्नान करने, तिल का दान और प्रसाद में चढ़ी तिल की मिठाई का सेवन करना जरूरी होता है। शास्त्रों के मुताबिक माघ माह की चतुर्थी के दिन ही भगवान गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर अपनी बुद्धि और ज्ञान का परिचय दिया था। इससे प्रसन्न होकर उनके पिता भगवान शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें प्रथमपूज्य होने का वर दिया था।