भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय का इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में नाम दर्ज है। अमर शहीद मंगल पाण्डेय ही वो वीर सैनिक थे जिन्होनें अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार चिंगारी फैलाई थी। ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने पर अंग्रेज इतना भयभीत हो गए थे कि 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई। स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और आजादी की लड़ाई के नायक के तौर पर हर हिंदुस्तानी उन्हें सम्मान देता है। मंगल पांडेय के सम्मान में 1984 में भारत सरकार ने उन पर डाक टिकट भी जारी किया।
विद्रोह की शुरुआत का मुख्य कारण कारतूस पर सूअर की चर्बी
1857 की क्रांति के समय अंग्रेजी सेना ने पहली बार रॉयल इनफील्ड रायफल के कारतूस में सूअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था। इस कारतूस को मुहं से खोलना पड़ता था। मंगल पांडेय ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। मंगल पांडेय सहित अन्य भारतीय सैनिकों ने इसका विरोध किया। 29 मार्च 1857 की रात को मंगल पांडेय ने अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूरसन की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस तरह 1857 की क्रांति की शुरुआत 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्ट्री ने की थी। इस घटना के बाद अंग्रेजी सेना ने मंगल पांडेय को गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी।
मंगल का जिंदा यहां स्वाभिमान है, जर्रा जर्रा इंकलाब विद्यमान है
जल्लादों ने भी फांसी देने से किया था मना
1857 की क्रांति के पहले शहीद मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को बलिया जिले के नगवा गावं में हुआ था। उन्होनें 22 वर्ष की उम्र में ही 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी को ज्वॉइन कर लिया था। 29 मार्च की घटना के बाद मंगल पांडेय को फांसी की सजा सुनाई गई। उसके लिए 7 अप्रैल की तारीख तय की गई थी। इसके लिए बैरकपुर छावनी के 2 जल्लादों को बुलाया गया था। ये जल्लाद मंगल पांडेय की देशभक्ति से बहुत अधिक प्रभावित थे। उनको पता चला कि मंगल पांडेय को सूली पर चढ़ाना है तो उन्होनें मना कर दिया। इसके बाद फांसी देने के लिए कलकत्ता से जल्लाद बुलाए गए और 8 अप्रैल को फांसी दी गई।