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गंगा दशहरा पर भूलकर भी ना करें ऐसी गलती, पड़ेगी बहुत भारी

नदी जो हौसला देती है। हर उस इंसान को जिसने कभी उसे गहराई से देखा हो? भारत ना सिर्फ सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण है अपितु भौगोलिक और सामाजिक, राजनीतिक विविधताओं से भी परिपूर्ण है। आज हम बात कर रहे हैं गंगा नदी की।

जी हां, गंगा वही नदी जिसका उद्गम स्थल गंगोत्री हिमनद है। भारत की सबसे पवित्र ही नहीं, सबसे लंबी नदी भी है। जिसकी लंबाई लगभग 2500 किलोमीटर है। इसके अनेक नाम है। कहीं गंगा तो कहीं पदमा कभी जमुना, भागीरथी, यही नहीं इसमें अनेक बड़ी नदियां भी आकर मिलती हैं यमुना, गंडक, घागरा, कोसी आदि और अंत में महानंदा मिलती है। क्या, उद्गम स्थल से यह नदी गंगा नदी कहलाती है? यह गंगा तब बनती है। जब भागीरथी नदी देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है।
 

आज भी क्यों प्रासंगिक?

जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भारतवर्ष में गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। जिसे सनातन काल से भारत में मनाया जा रहा है। इस बार यह तिथि 29 मई सोमवार सुबह 11:49 से प्रारंभ होगी। वही 30 मई मंगलवार को दोपहर 1:07 पर समाप्त होगी। भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में इस नदी की ख्याति है।

गंगा दशहरा विशेषकर काशी गंगा घाट पर आयोजित किया जाता है। जहां लाखों की संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु, भक्तगण और पर्यटक यहां पहुंचते हैं और विभिन्न घाटों पर डुबकी लगाकर अध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शांति का अनुभव करते हैं।

माना जाता है कि आज ही के दिन भागीरथ इसे धरती पर लाए थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूर्ण श्रद्धा के साथ गंगा स्नान सुख, शांति, समृद्धि का वरदान लाता है। ऐसी मान्यता है कि गंगा में स्नान करते समय तन के साथ-साथ मन की शुद्धता भी आवश्यक है। तभी आपको पापों से मुक्ति मिलेगी।
 

एक संदेश

अक्सर जब हम नदी रूपी तीर्थ स्थलों पर जाते हैं। तब पाते हैं कि कुछ लोग इन पवित्र नदियों में भी साबुन- सर्फ रासायनिक प्रोडक्ट का इस्तेमाल करते हैं। अपने पशुओं को स्नान कर आते हैं। सीवर लाइन का कनेक्शन इसी में जोड़ देते हैं।
क्या यह उचित है?

कृपया अपनी सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करें

नदियों को पवित्र और स्वच्छ, निर्मल रखने में सहयोग करें। कहते हैं जल में लक्ष्मी का वास होता है। जो जल को अपवित्र करता है। उसके यहां धन-धान्य और लक्ष्मी नहीं आती। ऐसे में स्वयं भी नदियों में सिर्फ, साबुन और प्लास्टिक प्रोडक्ट ना डालें तथा दूसरों को भी ऐसा करने से रोके। क्योंकि इससे नदियों का बीओडी लेवल( BOD) लेबल बिगड़ता है। इसमें रहने वाले जीवो की जान पर खतरा मंडराता है।

जल में ऑक्सीजन लेवल का कम होना बहुत सी समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है। हमारी संस्कृति हमारे साथ साथ अन्य जीवो की भी सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन देने में मदद करती है। ऐसे में नदी की पवित्रता, शुद्धता, स्वच्छता बनाए रखना हर भारतीय का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। तभी आपको मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक शांति का अनुभव होगा, अन्यथा नहीं।

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