वैशाख माह की एकादशी के महत्व से तो आप परिचित हैं। इसके बाद 2 मई वैशाख महीने की द्वादशी आ रही है। इस दिन उपवास, व्रत, दान दक्षिणा का विशेष महत्व है। विभिन्न पुराणों में भी इस दिन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर एक चांडाल भगवान कमलापति (विष्णु) की कमल से पूजा करके पुण्यवान राजा बन गया था।
वैशाख माह में द्वादशी तिथि पर पवित्र नदियों में स्थान की भी परंपरा है। इस दिन गंगा, यमुना अथवा आस पास जो भी उपलब्ध नदी हो। उसमें आप स्नान कर सकते हैं। यह भी उपलब्ध ना हो तो आप अपने नहाने के पात्र में गंगा, यमुना, कावेरी जैसी नदियों का स्मरण कर इच्छानुसार उसमें कुछ बूंदे गंगाजल डालकर भी स्नान कर सकते हैं।
स्कंद पुराण, पद्म पुराण में वैशाख माह के दान पुण्य और विष्णु जी की पूजा का विशेष विधान बताया गया है। वही वराह पुराण के मुताबिक इस दिन तांबे की उत्पत्ति हुई थी। मान्यता है कि भगवान विष्णु की तपस्या करने वाले असुर के मांस से बनी थी, यह धातु। कथा के अनुसार एक असुर ने सालों तक भगवान विष्णु की तपस्या कर वरदान मांगा था। उसी वरदान के अनुसार उसके शरीर की भी पूजा होती है।
वह राक्षस भगवान का भक्त था। इसलिए भगवान विष्णु को तांबा प्रिय है। इसीलिए तांबे के पात्र से पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।
मान्यता है कि इस दिन स्नान दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। भक्तों को पूजा-पाठ करने के बाद अन्न, जल ,वस्त्र और तिल का दान करना चाहिए। पुराणों में कहा गया है कि ऐसा करने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता।