Water on Moon : पिछले कुछ सालों से चंद्रमा पर दुनिया भर के देश अपने-अपने अंतरिक्ष यान भेजने की दौड़ में जी जान से जुटे हुए हैं। हमारा चंद्रयान 3 भी चांद के साउथ वाले हिस्से पर उतरने में कामयाब रहा है। इसरो की ये अग्नि परीक्षा थी। इससे पहले रूसी अंतरिक्ष यान लूना 25 जो कि हमसे पहले चांद पर उतरने वाला था वो बदक़िस्मती से असफल हो गया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब यही है कि आखिर पूरी दुनिया चांद के इस अंधेरे में डूबे खतरनाक दक्षिणी हिस्से के पीछे क्यों पड़ी हुई है? तो चलिए आज चंदा मामा की इसी पहेली का जवाब खोजते हैं हम।
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सबसे पहले चांद के इस साउथ वाले हिस्से की गणित समझ लेते हैं उसके बाद बाक़ी जवाब अपने आप मिलते चले जाएंगे। चंद्रयान – 3 ने दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग करके चांद पर पानी (Water on Moon) खोजने की संभावनाओं को नया जन्म दे दिया है। दुनिया का कोई भी देश अब तक चांद के इस हिस्से पर सॉफ़्ट लैंडिंग करने में कामयाब नहीं हो पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह इस क्षेत्र की विशेष भौगोलिक पृष्ठभूमि है। ये जगह चांद के उस हिस्से की (South Pole Moon) तुलना में काफ़ी अलग और रहस्यमयी है जहां अब तक दुनिया भर के देशों की ओर से स्पेस मिशन भेजे गए हैं।
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चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कई ज्वालामुखी हैं और यहां की ज़मीन बेहद ऊबड़-खाबड़ है। इस क्षेत्र में Water on Moon Waterकई आसमान छूने वाले पर्वत और गहरे गड्ढे मौजूद हैं जो रोशनी वाले दिनों में भी अंधेरे में डूबे रहते हैं। इनमें से एक पर्वत की ऊंचाई साढ़े सात हज़ार मीटर है। इन गड्ढों और पर्वतों की छांव में आने वाले हिस्सों में तापमान -203 डिग्री सेल्सियस से -243 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। तो आप अंदाजा लगा लीजिए दुनिया क्यों इस हिस्से के पीछे पड़ी है।
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विशेषज्ञों के मुताबिक़, इस लूनर रेस के पीछे तमाम वजहों में से एक वजह पानी की मौजूदगी है। नासा के अंतरिक्ष यान लूनर रिकानसंस ऑर्बिटर की ओर से जुटाए गए आंकड़ों से संकेत मिलता है कि चंद्रमा पर मौजूद अंधेरे में डूबे गहरे गड्ढों में बर्फ मौजूद है। चांद पर पानी (Water on Moon) मिलने की संभावनाएं कई उम्मीदों को जन्म देती हैं। दुनिया के कई देश चंद्रमा पर इंसानों को भेजने की योजना बना रहे हैं। लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर रहने के लिए पानी की ज़रूरत होगी। और पृथ्वी से चंद्रमा तक पानी पहुंचाना एक बेहद महंगा सौदा है। क्योंकि पृथ्वी से एक किलोग्राम सामान बाहर ले जाने की कीमत एक मिलियन डॉलर है। कुल मिलाकर इंसान अब चांद पर भी बहुमूल्य पानी का बिजनेस करने की फिराक में है। खैर यह तो भविष्य में ही पता चलेगा कि चांद पर मौजूद संभावित बर्फ से क्या क्या होगा?
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