विश्व स्वास्थ्य दिवस, 7 अप्रैल
इस बार विश्व स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम है। सबके लिए स्वास्थ्य। आखिर क्यों आवश्यकता पड़ी इसकी?
जब दुनिया में ऐसी बीमारियां जो महामारी के रूप में सामने आई। उन से निजात पाने के लिए विश्व स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ बनाया गया। इस साल इसकी थीम रखी गई है। सबके लिए स्वास्थ्य। क्या यह कोई नई अवधारणा है? नहीं यह तो हमारे बड़े बुजुर्ग शुरू से कहते आए हैं। पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख घर में हो माया। इसी आधार पर प्रत्येक व्यक्ति की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई।स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है। जो एक गरीब इंसान से लेकर हर वर्ग को प्रभावित करता है। आज इस क्षेत्र में जहां सबसे अधिक कमाई है। वही सबसे अधिक खर्चा भी,एक आम इंसान को उठाना पड़ रहा है। ऐसे में जब कोई गंभीर बीमारी हमें जकड़ लेती है।
तब क्या हो उसका समाधान? हर आम बीमार इंसान इलाज की पहुंच तक पहुंच सके। इसके लिए वैश्विक स्तर पर इस संस्था का गठन किया गया। हमारे देश में भी स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे अब सरकार की नजर में आने लगे हैं। यही कारण है कि राजस्थान में राइट टो हेल्थ बिल को पास किया गया। भारत ने भी 1978 में अल्मा अता घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर वर्ष 2000 तक सबके लिए स्वास्थ्य लक्ष्य पाने की प्रतिबद्धता जताई थी। वैसे वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सूचकांक में भारत की स्थिति अभी भी दयनीय बनी हुई है। इसी प्रकार भारत के राज्य भी स्वास्थ्य इंडेक्स में बहुत पिछड़ रहे हैं।राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो देश की कुल जीडीपी का लगभग 2% स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च होता है। जो की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिहाज से बहुत कम है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाए।
हमें भी विकसित और यूरोपियन देशों की तरह यूनिवर्सल हेल्थ सिस्टम बनाना चाहिए। ऐसा हेल्थसिस्टम जो सभी को समान स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करें। ऐसे में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चे में कमी आएगी। देश में असमानता की खाई कम होगी। देखा जाए तो आज आम इंसान अत्यधिक स्वास्थ्य पर व्यय करने के कारण गरीबी रेखा के नीचे वाले पायदान पर पहुंच रहा है ।ऐसे में गंभीर रोग कैंसर, एड्स, हृदय से संबंधित रोगों में एक बहुत बड़ी राशि खर्च हो जाती है। इतना ही नहीं डायबिटीज, हाइपरटेंशन मनोविकार भी बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह यूनिवर्सल हेल्थ सिस्टम लाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो सिर्फ संतुलित भोजन ही मनुष्य का प्राथमिक अधिकार नहीं अपितु इसमें उसका मानसिक विकास भी शामिल होता है। ऐसे में बीमारियों का ना होना ही बीमारी नहीं वरन शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति भी स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य विषय है।
क्या हो आगे की राह?
विश्व स्वास्थ्य संगठन आज दुनिया भर में जागरूकता अभियान चला रहा है। जिससे कि व्यक्ति अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव लाए।
इस संगठन की माने तो विश्व भर में हाइपरटेंशन ,स्वास्थ्य संबंधित कैंसर और हृदय से संबंधित रोग दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। यह स्थिति अब भारत में भी तेजी से बढ़ती जा रही है। इससे बचाव के लिए सरकार को जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। एलोपैथिक के साथ-साथ आयुर्वेद, यूनानी पद्धति, और होम्योपैथी को भी बढ़ावा मिलना चाहिए।साथ ही बढ़ती मिलावटखोरी को रोका जाए और शराब, तंबाकू, गुटके के सेवन से दूर रहने का भी संदेश देना चाहिए।
स्वास्थ्य की उपादेयता तभी होगी। जब वह वहनीय भी हो। ऐसे में महंगी दवाइयों पर एमआरपी भी कम होनी चाहिए। जिससे यह गरीब आदमी की पहुंच तक भी पहुंचे। योगा, खानपान, दिनचर्या ,नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद और तनाव रहित वातावरण निर्मित हो।इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जाए। आज जो बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं हैं। वो भी कहीं ना कहीं स्वास्थ्य से संबंधित है। अक्सर लोग तनाव में घर से निकलते हैं। जिससे दुर्घटनाएं बढ़ रही है। केंद्र हो या राज्य हो उसका प्राथमिक कार्य जनकल्याण जनहित होता है। ऐसे में स्वास्थ्य को सर्वोपरि रखते हुए पहला सुख निरोगी काया को अपनाना और उसे क्रियान्वित करना प्राथमिकताओं के केंद्र में होना ही चाहिए ।इसके लिए यूनिवर्सल हेल्थ सिस्टम भारत की आवश्यकता बनकर उभर रहा है।
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