डॉ. उरुक्रम शर्मा
कांग्रेस किस दिशा में जा रही है। राजस्थान कांग्रेस को क्या किसी की नजर लग गई? या फिर महत्वाकांक्षा अति में बदल गई। क्या ये वो ही कांग्रेस है, जिसमें आलाकमान के नाम से बड़े बड़े नेताओं की रूह कांपा करती थी। एक झटके में दिल्ली से फरमान आता था और मुख्यमंत्री तक बदल जाते थे। हरिदेव जोशी का किस्सा सबसे चर्चित रहा है। अभी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के आपसी झगड़े ही नहीं सुलझ रहे हैं। कैबिनेट मिनिस्टर पार्टी लाइन से बाहर जाकर बात कर रहे हैं। राज्यमंत्री तक मुख्यमंत्री को सीधी चुनौती दे रहे हैं।
राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस की जमीनी स्तर पर कोई तैयारी नजर नहीं आ रही है। सरकार को घोषणाओं और नए जिलों के भरोसे रिपीट होने की उम्मीद है, लेकिन सरकार एंटी इनकंबैंसी फैक्टर को लेकर भी काफी चिंतित है। तभी तो राज्य प्रभारी के साथ फीड बैठक में 13 सूत्रीय फार्म में इससे कैसे निपटा जाए, इसके लिए सुझाव आमंत्रित किए गए। सरकार ने इसमें विधायकों से क्षेत्रीय जाति और धार्मिक समीकरण भी पूछे। इस मुद्दे को भाजपा आसानी से ले उड़ी और राहुल गांधी की सोच और राज्य कांग्रेस के इस सवाल पर घेर लिया। बैठे बिठाए भाजपा को मुद्दा थमा दिया। सचिन पायलट ना तो फीड बैक बैठक में गए बल्कि खेतड़ी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में पूरी तरह से सरकार के खिलाफ आग उगले।
उन्होंने कहा कि मैं विरोध करता हूं तो धुंआ निकाल देता हूं। पायलट की अशोक गहलोत से सीधी जंग चल रही है। ऐसे में यह चुनौती भी उनके लिए ही मानी जा रही है। पायलट ने कहा कि जब हमने अपनी घोषणाओं को ही पूरा नहीं किया तो जनता से वोट किस मुंह से मांगने जाएंगे। इसी सभा में सैनिक कल्याण राज्यमंत्री राजेन्द्र गुढ़ा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सीधी चुनौती दी। उन्होंने कहा कि किसी की मां ने दूध पिलाया है तो पायलट के खिलाफ एक्शन लेकर बताए, छठी का दूध याद दिला देंगे। इतना ही नहीं कांग्रेस के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा कि पायलट को आगे रखे बिना कांग्रेस का दुबारा आना संभव नहीं है। फीडबैक बैठक में भी कांग्रेस के राकेश पारीक और हरीश मीणा ने मानेसर प्रकरण का जिक्र होने पर नाराजगी जताते हुए राज्य प्रभारी रंधावा को दो टूक कही कि पायलट को साथ लिए बगैर सत्ता में आना मुश्किल है।
कैबिनेट मिनिस्टर प्रतापसिंह खाचरियावास अपने विभाग से फूड किट का काम छिनने पर खुलेआम नाराजगी जता चुके हैं। जयपुर को दो जिलों में बांटने का भी उन्होंने विरोध किया है। पायलट के भाजपा शासन के भ्रष्टाचार के मामलों में एक्शन लेने के मुद्दे का भी समर्थन किया है। सदन से सड़क और संगठन तक कांग्रेस के विधायकों, मंत्रियों और नेताओं के स्वर मुखर हो रहे हैं. किसी को नहीं पता, इन पर लगाम कैसे लगाई जाए? कांग्रेस विधायक रफीक खान ने तो नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल की खिंचाई करने तक में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे ही कई उदाहरण और हैं। हाल ही अनुसूचित जाति-जनजाति के महासम्मेलन में कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को बोलने नहीं दिया गया और उन्हें मंच छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
गहलोत की राजनीतिक सोच, कूटनीति, दूरदर्शिता जगजाहिर है। संकट के समय में कई बार प्रदेश कांग्रेस की सरकार को बचाने में कामयाबी हासिल की, वरना राजस्थान में भी मध्यप्रदेश और कर्नाटक जैसे हालत होने के आसार हो जाते। वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेस में संगठन जैसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। जिससे लगे कि संगठन चुनाव की दृष्टि से तैयार है। कांग्रेस के आपसी झगड़़ों में भाजपा अपना काम आसानी से करने में लगी है। गृह मंत्री अमित शाह की भरतपुर में बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं की बैठक में जोश भरने काम किया। एक तरह से चुनावी हुंकार भरी।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी लगातार संभाग स्तर पर जन आक्रोश रैली करके सरकार व कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने में पूरी ताकत लगाए हुए हैं। कांग्रेस अभी तक उसका कोई तोड़ नहीं निकाल पाई है। कांग्रेस के राज्य प्रभारी जयपुर के दौरे कर रहे हैं, लेकिन जिलों में जाकर संगठन में जोश भरने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा सके हैं। कांग्रेस आलाकमान ना तो गहलोत को नाराज करना चाहता है, ना ही पायलट को। दोनों को साथ रखना चाहता है, लेकिन वर्तमान हालत में दोनों एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं कर रहे हैं। आगे क्या होगा, यह देखना है।