दिल्ली- दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का मुद्दा लगातार सुर्खियां बटोर रहा है। इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार व केजरीवाल की दिल्ली सरकार दोनों के बीच शह और मात का खेल चल रहा है। इस खेल में कभी केजरीवाल सरकार आगे तो कभी मोदी सरकार दोनों ही एक दूसरे की बांह मरोड़ने में लगे है। इस मामले को लेकर सुप्रिम कोर्ट ने फैसला मुख्यमंत्री केजरीवाल के पक्ष में सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ हो गया कि दिल्ली के असली बॉस केजरीवाल होंगे। उप-राज्यपाल सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह व सहयोग से ही करेंगे।
इस फैसले के बाद मोदी सरकार एक अध्यादेश लेकर आ गई और दिल्ली के बॉस को एक तगड़ा झटका दिया। इस आध्यादेश ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट कर रख दिया। केजरीवाल दिल्ली के बॉस की कुर्सी पर बैठे ही थे की मोदी सरकार ने बैठने से पहले ही कुर्सी खिच ली। अब मुख्यमंत्री केजरीवाल मोदी सरकार को मात देने और दिल्ली के बॉस फिर से बनने के लिए विपक्ष के बड़े नेताओं से सम्पर्क कर रहे है।
यह है पूरा मामला
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अपने अधिकारों की लड़ाई चल रही है। यह लड़ाई 2015 से हाईकोर्ट तक पहुंच गई। इस लड़ाई में जीत राज्यपाल की हुई क्योंकी हाईकोर्ट ने फैसला राज्यपाल के पक्ष में सुनाया और केजरीवाल सरकार को मुहं की खानी पड़ी, जिसके बाद दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी। जिसके बाद दिल्ली सरकार ने इसमें जीत हासिल की 5 सदस्य बेच ने 2016 में आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले के बाद केजरीवाल को दिल्ली का बॉस बनाया गया। फैसला सुनाते हुए कहा गया उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता के बिना काम नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मामलों में दो सदस्यीय बेंच को मामला भेजा गया। जब दौनों सदस्यों की राय एक नहीं हो पाई तो मामला तीन सदस्यों वाली बेंच के पास भेज दिया गया। संविधान बेंच ने 5 दिन तक इस मामले में सुनावई करी और मामले में फैसला सुरक्षित रखा सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को अपना फैसला सुनाया और फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में रखा, लेकिन मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला खास पसंद नहीं आया और केंद्र ने अध्यादेश जारी कर इस फैसले को ही पलट दिया।
दिल्ली सरकार अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में देंगी चुनौती
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट को ही चुनौती दे दी है। देश की सबसे बड़ी अदालत का अपमान किया गया है। केजरीवाल ने इस अध्यादेश को अलोकतांत्रिक करार दे दिया है। अब दिल्ली सरकार इस अध्यादेश के खिलाफ फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। हालांकी अभी संसद को दोनों सदनों में इस अध्यादेश का पास होना बाकी है। लोकसभा में तो अध्यादेश आसानी से पास हो सकता है, लेकिन रज्यसभा में अध्यादेश पारित करवाना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल होगा।
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