जयपुर। राजस्थान में चुनावी प्रचार का शोर थम चुका है। अब राज्य के लगभग 5 करोड़ वोटर्स उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। राज्य में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। हालांकि, हनुमान बेनीवाल की पार्टी चंद्रशेखर आजाद के साथ गठबंधन कर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में लगी हुई है। राजस्थान में 30 सालों के इतिहास के सहारे भाजपा सत्ता पलटने की कोशिश में लगी है। वहीं, कांग्रेस को गहलोत की गारंटी से रिवाज बदलने की कयावद में लगी है। इन चुनावों मतें मुख्य मुद्दे पेपर लीक, भ्रष्टाचार और विकास रहे हैं। अंतिम वक्त में कांग्रेस के अंदर Ashok Gehlot और Sachin Pilot की तारतम्यता भी कई नेताओं को चौंकाने वाली रही। लेकिन अब चर्चा जीत-हार के फैक्टर पर भी की जा रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस चुनाव में वोटिंग का पैटर्न क्या रहेगा और 5 वो फैक्टर जो दोनों ही पार्टिंयों की जीत और हार में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
1993 से लेकर अब तक प्रत्येक 5 साल में राज्य में सरकार बदलती रही है। आपको बता दें कि 1993 में भाजपा से भैरो सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद 1998 में कांग्रेस की सरकार आई और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। वहीं, 2003 में Ashok Gehlot हार गए और Vasundhara Raje सीएम बनी। जबकि, 2008 में वसुंधरा भी हार गई और गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। 2013 में वसुंधरा ने फिर से भाजपा की सरकार बना ली। परंतु 2018 में भाजपा हार गई और गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। इसबार भाजपा इसी रिवाज के भरोसे में है और पार्टी को उम्मीद है की राज्य में इस बार कमल खिलेगा।
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राजस्थान के इन चुनावों में ओल्ड पेंशन स्कीम को एक बड़ा फैक्टर माना जा रहा है। राजस्थान में 7.7 लाख सरकारी कर्मचारी और 3.3 लाख पेंशनभोगी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि एक सरकारी कर्मचारी के परिवार में औसतन 4 वोटर्स भी हुए, तो यह संख्या 40 लाख पार कर रही है। सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस बड़ा मुद्दा रहा है, वही पेंशन जो साल 2004 से पहले रिटायर होने के बाद हर महीने पूर्व सरकारी कर्मचारी को दी जाती थी। यह पेंशन राशि उनके वेतन की आधी होती थी। यही नहीं कर्मचारी की मौत के बाद भी उनके परिजनों को पेंशन की राशि दी जाती थी। 2014 में मोदी सरकार ने OPS हटाकर NPS लागू कर दिया। हालांकि, कई नॉन भाजपा राज्य सरकारों ने फिर से OPS लागू कर दिया। अब कांग्रेस इस मुद्दे के साथ चुनावी मैदान में है।
राजस्थान में गैस सिलेंडर और पेट्रोलियम पदार्थों की तेजी से बढ़ रही कीमत भी बड़ा मुद्दा रही है। देश का पहला राज्य है राजस्थान, जहां भाजपा ने कांग्रेस के 500 रुपये सिलेंडर देने के वादे को काटते हए 450 रुपये में सिलेंडर देने का वादा किया हैं। इसके बाद कांग्रेस ने फिर 400 रुपये में सिलेंडर देने का वादा कर लिया। गौरतलब है कि राज्य में 1।75 करोड़ लोग एलपीजी गैस के उपभोक्ता है। आबादी के हिसाब से यह आंकड़ा कुल वोटर्स का 25 फीसदी है।
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बागी प्रत्याशियों ने भी भाजपा-कांग्रेस की टेंशन को बढ़ा दिया है। प्रदेश की कई सीटों पर बागी नेता कड़ी चुनौती पेश कर रहे है, जो नई सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। इस बार चुनावी मैदान में भाजपा की तरफ से पूर्व मंत्री यूनुस खान (डीडवाना), चंद्रभान आक्या (चित्तौड़गढ़), बंशीधर बाजिया (खंडेला), रविंद्र भाटी (शिव), प्रियंका चौधरी (बाड़मेर) और आशु सिंह (झोटवाड़ा) जैसे बड़े नाम बागी होकर लड़ रहे है। वहीं, कांग्रेस की तरफ से आलोक बेनीवाल (शाहपुरा), खिलाड़ी लाल बैरवा (बसेड़ी) नरेश मीणा (छबरा-छपरौद) और ओम बिश्नोई (सादुलशहर) से मैदान में है।
2023 के इन विद्यानसभा चुनावों में भाजपा-कांग्रेस को चुनौती देने के लिए चार अन्य राजनीतिक दल भी मैदान में है। इनमें बहुजन समाज पार्टी (BSP), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP), आजाद समाज पार्टी (ASP) और ट्राइबल पार्टी से टूटकर बनी बीएपी पार्टी पूरे दमखम के साथ मैदान में है। पिछले चुनावों में BAP को 2 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं RLP ने भी 3 सीटों पर जीत हासिल की थी। इन चार दल ने 10 प्रतिशत वोट भी हासिल किये तो बड़ा खेला होगा।
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