छोटी सी उमर में परणाई रे बाबोसा।
अक्षय तृतीया वह अबूझ मुहूर्त है। जिसमें किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य बिना किसी पंडित या ज्योतिष से पूछे बिना बेझिझक किया जा सकता है। अक्षय तृतीया का विशेष धार्मिक महत्व है। लेकिन कुछ परंपरावादी लोगों ने इसमें भी रूढ़ियां और कुरीतियों का समावेश कर दिया। जिससे यह सकारात्मक धार्मिक पर्व कुछ वर्ग के लिए नकारात्मक साबित हुआ।
अबूझ सावे का फायदा उठाकर लोगों ने इसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया ।अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त का भी कुछ प्रांतों खासकर आज भी पिछड़े हुए क्षेत्रों और आदिवासी ग्रामीण अंचल में बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति को इस दिन बढ़ावा मिलता है।
माना पहले बहुत से कारण रहे होंगे। जिनकी वजह से बाल विवाह जैसी कुरीति पनपी। लेकिन आज जब हम 21वीं सदी में तब भी ऐसे बहुत से केस कोर्ट में पेंडिंग पड़े हैं। जो कि बाल विवाह से संबंधित है। इन बाल विवाह का दंश आज भी कुछ वर्ग को भुगतना पड़ रहा है।बहुत सी ऐसी लड़कियां है। जो गुड्डा- गुड्डी खिलाने की उम्र में शादी जैसे बंधन में बांध दी जाती है। ऐसे बच्चे जिनके विवाह 18 वर्ष से कम आयु में कर दिए गए। कुछ सफल हुए। कुछ असफल। ऐसे ही कुछ बहादुर पीड़ित महिलाएं भी हैं। जो शारीरिक, मानसिक शोषण के खिलाफ और बाल विवाह के खिलाफ कोर्ट तक पहुंची। जहां उनके विवाह को शून्य करार दिया गया।
अक्षय तृतीया और भंवरी देवी, विशाखा गाइडलाइन
भंवरी देवी केस तो आपको याद ही होगा ?
यह वही चर्चित केस है। जिसमें भंवरी देवी अक्षय तृतीया पर एक परिवार की बेटी की शादी रुकवाने पहुंचती है। जहां उसे ना सिर्फ अपमानित किया गया अपितु यातना का सामना करना पड़ता है । यहां तक कि समाज के कुछ ठेकेदार उसका बलात्कार कर उसे निर्वस्त्र होकर गांव में घुमाते हैं। इसी आधार पर राजस्थान सरकार ने विशाखा गाइडलाइन बनाई थी। महिला हिंसा, महिला शोषण और अन्याय के खिलाफ यह गाइडलाइन कितनी प्रासंगिक है ?इसका पता इस बात से लगता है कि आज भी अनेक केस धनबल, भुजबल के प्रभाव में रफा-दफा कर दिए जाते हैं। फिर भी विशाखा गाइडलाइन राजस्थान के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन तो लेकर आ पाई।