जयपुर। Ayurvedic Kheer : अभी तक आपने एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट खीर खाई होगी जिसका स्वाद कई दिनों तक आपको याद रहता होगा। लेकिन राजस्थान की राजधानी जयपुर में मानसरोवर के विजय पथ पर स्थित श्याम मंदिर में ऐसी चमत्कारी और अनोखी खीर बनाई जाती है जिसें खाने से दमा व अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियां तुंरत ठीक हो जाती है। यह खीर पिछले 27 सालों से बनाई जा रही है जिसका लाभ हजारों लोग उठाते हैं और अपनी बीमारियों से निजात पाते हैं। तो आइए जानते हैं कि यह चमत्कारी कैसे बनाई जाती है और इसें खाने का तरीका क्या है जिससें अस्थमा व दमा जैसी बीमारियां फुर्र हो जाती है।
दमा व अस्थमा ठीक करने वाले यह स्वादिष्ट और चमत्कारी खीर (Ayurvedic Kheer) मानसरोवर के श्याम मंदिर में पिछले 27 सालों से बनाई जा रही है। यह अनोखी खीर अशोक खान चंदानी, दिनेश गोस्वामी और चौथमल द्वारा बनाकर फ्री में वितरित की जा रही है। हालांकि यह अनोखी खीर साल में सिर्फ एकबार शरद पूर्णिमा को ही बनाई जाती है। यह खीर रात्रि में चन्द्रोदय से पूर्व अरवा चावल और गाय के शुद्ध दूध से बनाई जाती है ठंडी होने पर यह आधा पाव खीर मिट्टी के बर्तन (कसोरा) में रखकर शुद्ध खुली जगह में चंद्रमा की रोशनी में खुला मुंह रखा जाता है।
इस खीर (Ayurvedic Kheer) में मिश्री, चीनी या गुड़ किसी किस्म का मीठा नहीं मिलाया जाता। खीर ठंडी होने पर प्रात:काल वितरित की जाती है। जिसें खाने से अस्थमा व दमा जैसी बीमारियां ठीक होती हैं। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा है होगा की शरद पूर्णिमा को सभी लोग खीर इसी तरह बनाते हैं तो यह चमत्कारी कैसे हुई तो जान लीजिए कि इस खीर के चमत्कारी होने का सबसे बड़ा राज इसमें मिलाई जाने वाली आयुर्वेदिक औषधि है। जी हां यह औषधि ही इसें चमत्कारी खीर बनाती है।
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यह आयुर्वेदिक औषधि (Ayurvedic Kheer) श्री वैद्यनाथ आयुर्वेदिक भवन, नैनी से प्राप्त की जाती है जो दमा की प्रसिद्ध महौषधि है। इस औषधि की एक खुराक में ऐसा चमत्कारिक असर होता है कि पुराना से पुराना दमा भी प्राय: हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। यह औषधि मिलाकर बनाई हुई खीर लगातार 4 वर्षों तक सेवन करने से दमा व अस्थमा पूरी तरह ठीक हो जाता है। अब यह भी जान लेते हैं कि इस आयुर्वेदिक औषधि से बिना चीनी, मिश्री या गुड़ के बनाई जाने वाली इस चमत्कारी खीर को खाया कैसे जाता है ताकि यह औषधि का काम करे।
यह अनोखी खीर (Ayurvedic Kheer) तैयार करने के लिए उसमें चन्द्रमा की रोशनी (चाँदनी) पड़ती रहती है और उसके सामने रोगी को ईश्वर का भजन करते हुए रात भर जागरण कराया जाता है। प्रातःकाल ब्रह्ममुहुर्त में 4 से 5 बजे बजे शौच, दातून आदि से निवृत होने के बाद औषधि वाली खीर पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखकर खाया जाता है। इसके बाद रोगी को 2 से 3 टहलना होता है। इसके बाद किसी देवता का दर्शन कर थोड़ा विश्राम करने के बाद स्नानादि क्रिया से निवृत होकर गेहूँ की सूखी (बिना घी लगी हुई) रोटी और जल में उबाली हुई पत्ती सहित मूली की तरकारी खाकर कुछ देर सोना चाहिए। इसके बाद शाम को सूर्यास्त के पूर्व साबूत या छिलकेदार मूंग की दाल और चोकर सहित गेहूँ की रोटी खानी चाहिए। मूली की तरकारी उस दिन सिर्फ प्रातः के समय अवश्य लेनी चाहिए। इसके बाद 15 दिनों तक शाम के समय भी भोजन साधारण हल्की तरकारी आदि के साथ रोटी ही खानी चाहिए। हालांकि, 15 दिनों के बाद अपनी रूचि के अनुसार भोजन कर सकते है। हालांकि तामसी प्रवृति के भोजन से परहेज करना चाहिए। तो मजेदार और चमत्कारी खीर जो स्वादिष्ट होने के साथ ही दवाई का काम करती है। शरद पूर्णिमा को आप भी यह खीर खाकर स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं। हालांकि, यह खीर खाने का आनंद लेने के लिए आपको मानसरोवर के श्याम मंदिर में जाना होगा जहां खीर खाने के साथ ही भगवान के भजनों का भी आनंद आएगा।
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