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Rajkumar Roat News : चौरासी सीट को भले ही राजकुमार रोत का गढ़ माना जा रहा हो, लेकिन यहां से 2 बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री रहे सुशील कटारा भी रोत को कड़ी टक्कर दे सकते है। सुशील कटारा ही चौरासी से भाजपा के प्रबल दावेदार है। कटारा की संघ और भाजपा में तो मजबूत पगड़ है ही इसके साथ ही क्षेत्र में भी अच्छी पकड़ है। तो चलिए विस्तार से जातने है कि भाजपा के प्रबल दावेदार सुशील कटारा के बारे में…
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चौरासी विधानसभा सीट की बात करे तो भारत आदिवासी पार्टी के विधायक राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) के सांसद बनने के बाद डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर खाली हो गई है और यहां भी उपचुनाव होने है। चौरासी विधानसभा सीट पर BAP की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस एक बार फिर अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाशने में जुटी हुई हैं। इसी बीच चौरासी सीट से भाजपा के सबसे प्रबल दावेदार सुशील कटारा भी चर्चा में बने हुए है।
सुशील कटारा की बात करे तो पूर्व विधायक सुशील कटारा एक बार फिर चौरासी विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। कटारा की चौरासी सीट से BJP के प्रबल दावेदार है कटाराहै, लेकिन लगातार दो चुनाव हारने का टैग उनके लिए परेशानी भी खड़ी कर सकता है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस से भाजपा में आए चिखली के पूर्व प्रधान महेंद्र बरजोड़, सीमलवाड़ा से भाजपा के पूर्व प्रधान नानूराम परमार भी इस बार भारतीय जनता पार्टी से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। अगर सुशील कटारा के राजनीतिक करियर की बात करे तो…सुशील कटारा ने छात्र राजनीति से राजनीति की शुरुआत की थी। उन्होंने सन् 2000 में छात्रसंघ चनाव जीतकर डूंगरपुर जिले के सबसे बड़े एसबीपी कॉलेज के अध्यक्ष बन गए थे। 3 साल बाद ही छात्र राजनीति से सीधे विधानसभा का टिकट मिला. और 2003 चौरासी विधानसभा सीट से भाजपा से विधायक बने।
हालांकि ये टिकट राज्यमंत्री रहे उनके पिता जीवराम कटारा से विरासत में मिली, लेकिन युवाओं में अच्छी पकड़ और छात्र राजनीति में सक्रिय रहने से जीत दर्ज कर ली, बाद में कटारा 2006 में भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री बने। 2008 में बीजेपी ने फिर उम्मीदवार बनाया, लेकिन हार गए। 2013 में फिर भाजपा ने मैदान में उतारा। इस बार जीत मिली ओर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। 2016 में सुशील कटारा को पहली बार पीएचईडी राज्यमंत्री बनाया गया। लेकिन 2018 के चुनाव में वे बीटीपी के उम्मीदवार के सामने हार गए। इसके बाद भाजपा ने 2023 में भी कटारा को राजकुमार रोत से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बार भी चौरासी सीट से भाजपा से प्रबल दावेदार सुशील कटारा ही है।
हालांकि अब देखना होगा कि इस बार वह भारत आदिवासी पार्टी को टक्कर दे पाते है या नहीं। हालांकि एक बात तो तय है कि इस सीट पर सुशील कटारा के सामने चुनौती कम नहीं है। लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद भी वह एक बार फिर मैदान में आने को तैयार है। अगर इस बार भाजपा कटारा को टिकट देती है, तो वह लगातार चौथी बार भाजपा के प्रत्याशी होंगे। सुशील कटारा के अलावा इस सीट से कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीया को भी पार्टी प्रत्याशी बना सकती है। हालांकि मालवीया बांसवाड़ा से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। वही कांग्रेस की बात करे तो कांग्रेस पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा या उनके परिवार में किसी अन्य सदस्य को मौका दे सकती है। भगोरा परिवार चौरासी विधानसभा क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखता है। ऐसे में अगर ताराचंद किसी कारण से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो कांग्रेस उनके भतीजे रूपचंद भगोरा और बेटे महेंद्र भगोरा को उम्मीदवार बना सकती है। इसके अलावा भारत आदिवासी पार्टी पोपटलाल खोखरिया को उम्मीदवार बनाने पर मंथन कर रही है।
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