उदयपुर। उदयपुर सीट का सीधा प्रभाव वागड़ की 30 से ज्यादा सीटों पर देखने को मिलता है। 2003 से इस सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है। गुलाबचंद कटारिया को चुनाव से ठिक पहले असम का राज्यपाल बना दिया गया। ऐसे में यह सीट खाली है। आसानी से जीती जाने वाली सीट अब भाजपा के लिए चुनौती बनती जा रही है। उदयपुर की सीट खाली होने के कारण इस सीट पर अब कांग्रेस की नजरे टीकी हुई है। भाजपा की परंपरागत सीट पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा राहुल गांधी के करीबी गौरव वल्लभ तथा सीएम अशोक गहलोत के करीबी दिनेश खोड़निया की नजरे टिकी हुई है।
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कटारिया के करीबी नेताओं ने शुरू की जुगत
कटारिया के जाने के बाद अब कांग्रेस इस मौके को खोना नहीं चहाती। वहीं दूसरी और कांग्रेस की सबसे ज्यादा गुटबाजी उदयपुर में देखने को मिलती है। ऐसे में टिकट वितरण कांग्रेस के लिए भी सरर्दद बन सकता है। कटारिया के बाद इस सीट पर करीबी नेताओं ने टिकट की जुगत लगानी शुरू कर दी है। दूसरी और राजपरिवार के लक्ष्यराज सिंह की भाजपा नेताओं से नजदिकियां सियासी चर्चाओं को हवा देने का काम कर रही है। वहीं सियासी जानकारों का कहना है लक्ष्यराज सिंह विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। आगामी दिनों में चित्तौडगढ़ लोकसभा से अपनी दावेदारी पेश कर सकते है।
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भाजपा के लिए बनी चुनौती
6 महीनों से सीट के खाली होने के कारण भाजपा के लिए चुनौती बन गई है। भाजपा कटारिया के बाद उदयपुर की कमान किसके हाथों में देंगी। शहर जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली, उमपमहापौर पारस सिंघवी, सहित कई बड़े नाम इस दौड़ में शामिल है। कटारिया के करीबी माने जाने वाले प्रमोद सामर तथा रजनी डांगी इस सीट पर ताल ठोकते हुए नजर आ रहे है। वहीं पारस सिंघवी संघ तथा स्थानीय पदाधिकारियों की पसंद बने हुए है।
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