जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बच चुकी है। चुनावी बिगुल के बजते ही सत्ताधारी कांग्रेस व भाजपा के बीच सत्ता का संघर्ष भी शुरू हो चुका है। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्य भूमिका में रहने वाले है। गहलोत को इस बार भी चुनाव कि चौसर में सचिन पायलट के साथ बंटवारा करना होगा। पायलट वो नेता है जो भीड़ के जादूगर है। पायलट ने 26 साल की उम्र में अपने पिता की विरासत संभाली और दौसा से सांसद बने। पायलट देश के सबसे युवा सांसद है। 2009 में पायलट फिर चुनाव लड़ा और सांसद बने।
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2018 में बने उप मुख्यमंत्री
2009 के चुनाव में पायलट को दौसा छोड़कर अजमेर का रूख करना पड़ा था। पायलट केंद्र सरकार में 2013 तक मंत्री भी रहे। पायलट को राजस्थान में केंद्र नेता के रूप में देखा जाता है। 2013 में कांग्रेस पार्टी को केंद्र में हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में पायलट को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। पायलट की शुरूआत काफी खराब रही। पायलट को चुनाव से ठिक पहले अध्यक्ष बनाया गया था इसलिए हार का ठीकरा भी पायेलट के सिर नहीं फूटा। जिसके बाद पायलट 2018 में विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी और पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया गया।
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पता चला संघर्ष का असली मायना
गहलोत को एक बार फिर राजस्थान की कमान सौप दी गई। जहां पायलट और गहलोत के रिश्ते खराब होने लगे। पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जिसके कारण पायलट को अपना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी गंवाना पड़ा। तीन साल के लंबे इंतजार के बाद पायलट को फिर से पद दिया गया। पायलट को कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल किया। पायलट एक बार फिर से “Mob Catcher” के रूप में दिखाई देने वाले है। राजेश पायलट के कारण पायलट को चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाला नेता माना जाता है। हालांकी पालयट अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार अपने कद के लिए संघर्ष करते हुए नजर आए थे।
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