डॉ. उरुक्रम शर्मा
(DrUrukram Sharma)
जयपुर। कांग्रेस का जिन राज्यों में शासन है, वहां गुटबाजी चरम पर है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। राजस्थान का ही उदाहरण ले लें, तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट में खुली जंग चल रही है। पहले तो कांग्रेस के केन्द्रीय स्तर से पायलट को उडऩे की छूट दी गई, जब वो उडऩे लगे तो उनके पंख काट दिए। यह पहला अवसर है जब जिसके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस राजस्थान में सरकार बनाने में सफल रही, उसे साइड करके उपमुख्यमंत्री का झुंझुना थमा दिया। अब वो अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं और दिल्ली कोई सुनवाई नहीं कर रही है।
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भारत पर दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के भविष्य की तस्वीर धुंधलाने लगी है। कभी देश के हर राज्य में कांग्रेस का राज हुआ करता था। देश पर गांधी परिवार के अलावा किसी का डंका नहीं बजता था। आज स्थिति तेज गति से रसातल की ओर बढ़ रही है। कहीं ऐसा नहीं हो कि टीएमसी की तरह कांग्रेस किसी एक राज्य तक सिमट कर रह जाए। राष्ट्रीय की जगह क्षेत्रीय दल के रूप में पहचानी जाए।
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कांग्रेस की पतवार जिसके हाथ में हैं, वो हैं राहुल गांधी। जिनके पास ना तो अपील है, ना ही सुनवाई, ना ही कोई दलील। बस अपना फैसला। पिछले एक दशक पर ही निगाह डालें तो कांग्रेस में हर फैसले राहुल गांधी ही लेते हैं। सोनिया गांधी तक के फैसलों को पलट दिया जाता है। मनमोहन सिंह के शासन में सांसद और विधायक को किसी मामले में दो साल या इससे अधिक की सजा के मामले में लाए जा रहे अध्यादेश की कापी फाड़ दी गई थी। वो अध्यादेश आ जाता तो आज राहुल गांधी की सांसदी नहीं जाती। कांग्रेस के अब तक शासन में कोई गांधी परिवार का नेता नहीं हुआ, जिसे अदालत में माफी मांगनी पड़ी हो। अपने अडियल रवैये के कारण सांसदी गंवानी पड़ी हो। कांग्रेस छोड़ चुके दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने हाल ही कहा कि कांग्रेस में अब वो ही चल सकता है, जो बिना रीढ़ की हड्डी का हो। जी हुजूरी करने वाला हो तो टिक सकता है। यदि किसी नेता ने कोई सवाल किया तो उसे मोदी का आदमी बताकर साइड कर दिया जाता है। किसी मसले पर कोई चर्चा नहीं होती है, ना ही कोई बड़ा मुद्दा खड़ा करके मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया जा सका है। शरद पवार ने विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से नाता तोड़ लिया था। कुर्सी के लिए राजनीति में कोई सिद्धांत मायने नहीं रखते हैं, यही वजह है कि कुछ समय बाद ही सरकार का हिस्सा बन गए थे। हाल ही वीर सावरकर के मुद्दे पर उन्होंने राहुल गांधी को चुप रहने तक की सलाह दे डाली थी। अडाणी के मुद्दे पर जेपीसी की मांग से खुद को अलग करते हुए संसद ठप करने पर भी नाराजगी जताई। इतना ही नहीं नरेन्द्र मोदी के डिग्री प्रकरण को उन्होंने निराधार बताया।
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कांग्रेस का जिन राज्यों में शासन है, वहां गुटबाजी चरम पर है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। राजस्थान का ही उदाहरण ले लें, तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट में खुली जंग चल रही है। पहले तो कांग्रेस के केन्द्रीय स्तर से पायलट को उडऩे की छूट दी गई, जब वो उडऩे लगे तो उनके पंख काट दिए। यह पहला अवसर है जब जिसके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस राजस्थान में सरकार बनाने में सफल रही, उसे साइड करके उपमुख्यमंत्री का झुंझुना थमा दिया। अब वो अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं और दिल्ली कोई सुनवाई नहीं कर रही है। छत्तीसगढ़ को देख लें तो मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए टीएस सिंह देव कहते हैं कि अब बोलने पर रोक है। जहां सत्ता है वहां गुटबाजी है, जहां कुछ नहीं है वहां कांग्रेस का आधार और जनाधार गायब हो चुका। कर्नाटक में डीके शिवकुमार को लग गया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना क्षीण है तो मतदान से पहले ही उन्होंने दलित मुख्यमंत्री की मांग तेज कर दी।
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पंजाब से जिस तरह कैप्टेन को अलग करने के बाद कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया, वैसे ही हालत को लेकर नेताओं का राजस्थान के बारे में आंकलन हो रहा है। हालांकि अशोक गहलोत की राजनीतिक सूझबूझ, कूटनीति के कारण ही राजस्थान में विधायकों के इस्तीफा प्रकरण के बाद भी केन्द्र उनका बाल बांका नहीं कर सका। इधर पायलट के अनशन को लेकर राज्य प्रभारी रंधावा ने एक्शन लेने की बात कह डाली।
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एक तरह से देखा जाए तो जिस देश पर कांग्रेस दशकों तक अकेले राज करती रही, उसे आज मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए क्षेत्रीय दलों की ओर तांकना पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव अपने दम पर लडऩे की ताकत नहीं रही तो सबको मिलकर गठजोड़ की आवाज बुलंद हो रही है। कांग्रेस में स्थिति यह है कि जिसके पास आधार नहीं है वो नीति निर्धारक बन रहे हैं, जिनके पास आधार हैं वो बाहर बैठे हैं।
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हालत यह हो गई कि कांग्रेस के जहाज से उछल उछलकर नेता भाग रहे हैं। अलबत्ता कांग्रेस के लीडर राहुल गांधी को पहल करके अपने दम पर कांग्रेस में जान फूंकनी चाहिए। अपनी थोपने के बजाय नेताओं की सुननी चाहिए। तभी बहुत आगे बढ़ चुकी भाजपा को चुनौती दी जा सकेगी।