जयपुर। राजस्थान में राजनीतिक सरगर्मी अपने उफान पर है। विधानसभा चुनाव की तिथियां कभी भी घोषित हो सकती है। ऐसे में राजनीतिक दलों और प्रशासनिक अधिकारियों ने तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है, लेकिन दोनों ही प्रमुख दलों यानी कांग्रेस बीजेपी में दबे पांव नज़र आता साइलेंट किलर का खतरा राजस्थान की राजनीति का पूरा खेल बिगाड़ सकता है जी हां हम बात कर रहे है। भाजपा में वसुंधरा और कांग्रेस से सचिन पायलट की।
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ये दोनो ही फिलहाल साइलेंट की भूमिका निभा रहे है, क्योंकि दोनों ही पार्टी से आलाकमान सीएम फेस को तवज्जो नहीं देकर हर हाल में अपनी अपनी पार्टी को एकजुट करने की कवायद में जुटी है और पूरा फोकस चुनाव जीतने को लेकर है, जहां कांग्रेस सरकार रिपिट होने को अपना टारगेट बना चुकी है वही भाजपा आलाकमान ने साफ तौर पर कह दिया है राज्य में कोई स्वयंभू नेता नही है पार्टी केवल पीएम मोदी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी।
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अब सवाल ये उठ रहा है की चुनाव की घोषणा होने तक क्या वसुंधरा राजे इंतजार करेगी या उसके बाद या पहले कोई कदम उठा सकती है। क्योंकि जयपुर में मोदी की सभा के बाद जो तस्वीर सामने आई वो खुद बयां कर रही की किस क़दर राजे की अनदेखी की गई। उसके बाद अमित शाह का जयपुर आना घंटो मीटिंग के बाद वसुंधरा के जो हाव भाव बया कर रहे थे, वो भी सब के सामने है। बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक के बाद जो तस्वीर सामने आई लोगों की नजर वसुंधरा के हाव भाव पर थी। सभी उनकी बॉडी लैंग्वेज देखना और उन्हें समझना चाह रहे थे। तस्वीरों में दिख रहा है कि वसुंधरा के एक तरफ गजेंद्र सिंह शेखावत बैठे हैं दूसरी तरफ राज्यवर्धन राठौर यह सीटिंग अरेंजमेंट तब तक का है जब तक अमित शाह और जेपी नड्डा मीटिंग के लिए पहुंचे नहीं थे जैसे ही दोनों नेता मीटिंग के लिए पहुंचे सीटिंग अरेंजमेंट बदल गया।
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ऐसे में एक बार फिर सवाल उठा क्या चुनाव के प्रचार प्रसार और उम्मीदवारोंको लेकर 6 घंटे से ज्यादा चली मीटिंग में जेपी नड्डा और अमित शाह वसुंधरा को मनाने में कामयाब हुए ? क्या मीटिंग में बनी रणनीति ने वसुंधरा को फिर से रेस में वापस ला दिया। ये तो कुछ ही दिनों में साफ हो जाएगा, लेकिन अगर बीजेपी में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच सब कुछ ठीक नहीं हुआ तो इसमें भी कोई दोराय नहीं की राजस्थान में थर्ड फ्रंट में वसुंधरा खड़ी नजर आए। यहीं हाल सचिन पायलट का भी है। ये दोनों ही सियासी शतरंज के वो मोहरे है जो चुनावी गणित को बिगाड़ सकते है। ऐसे में सवाल हैं कि क्या प्रदेश में एक बार फिर से उनके चेहरे को कमान दी जाएगी।
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बहरहाल वसुंधरा जनता जनार्दन के बीच में है। महिला शक्ति की ताकत के बाद अलवर की ये तस्वीर सामने आई है राजे जयपुर में बीजेपी के राष्ट्रध्यक्ष जेपी नड्डा, ग्रह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद सीधे अलवर जिले में सैन समाज के धार्मिक कार्यक्रम में शिरकत के लिए पहुंची । वसुंधरा का मानना है की जनता ही उसकी ईश्वर है। वो उसे कभी निराश नहीं करती है। राजनीतिक उठापटक और गुटबाजी को दरकिनार करके भाजपा को दिग्गज नेता वसुंधरा राजे अपने लोगों के करीब जाने का कोई मौका नहीं चूक रही है।
राजस्थान में वसुंधरा की भूमिका अहम
राजस्थान में वसुंधरा की भूमिका अहम मानी जाती है। प्रदेश में अब भी उनको भीड़ जुटाने वाली नेता के तौर पर जाना जाता है। पार्टी पॉलिटिक्स में भले ही खुद को साइड लाइन समझ रही थी लेकिन समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है। और माना जा रहा है कि इसी लोकप्रियता की बदौलत उन्होंने चुनावी रेस में वापसी की है। माना जा रहा है कि आरएसएस नेताओं ने वसुंधरा की पैरवी की है।
संघ का भी मानना है कि बिना क्षेत्रीय क्षत्रप को आगे रखे सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम पर विधानसभा का चुनाव नहीं जीता जा सकता। कर्नाटक की हार के बाद संघ के मुखपत्र में ये बातें कही गई थी। राजस्थान में आरएसएस की जड़ें गहरी हैं। सर्वे में भी वसुंधरा लोकप्रिय चेहरा बनी है। 36 फीसदी लोगों ने माना था कि वसुंधरा ही पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं, जबकि गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम लेने वाले महज 9 फीसदी लोग ही थे। वहीं राजेंद्र राठौर और अर्जुन मेघवाल का नाम 7 फीसदी लोगों ने लिया था।
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बीजेपी नहीं चाहती कि चुनाव से पहले किसी भी सूरत में आपसी गुटबाजी का असर चुनाव के नतीजों पर पड़े, यही वजह है कि प्रधानमंत्री के चेहरे को ही आगे रखकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई जा रही है। लेकिन 200 सीटों वाले राजस्थान में सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला और ये सच्चाई पार्टी भी समझती है। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जानता है कि राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा की जडें काफी गहरी है। इसलिए उनको नजरअंदाज करके सत्ता हासिल करना आसान नहीं रहने वाला। शायद यही वजह है कि वसुंधरा को साधे रखने के लिए नेतृत्व ने नई रणनीति बनाई है। अब ये रणनीति क्या है इसका खुलासा होना बाकी है।
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