'पा… एक विश्वास' संस्मरण
दो पल की खुशी के लिए ना जाने क्या कर जाता है, एक पिता ही होता है जो बच्चों की खुशियों के लिए अंगारों पर चल जाता है। पिता हर बच्चे के जीवन में रोटी, कपड़ा और मकान है। हमारी परवरिश अगर मां करती है, तो पिता वो जीवन में जरूरी हर सुविधा जुटाते हैं। ऐसी ही कुछ अनकहीं बातों और पिता के साथ जुड़ी यादों को पापा की परियों ने प्रकट किया। यहां हर क्षेत्र में अपने कार्यों से पहचान बनाने वाली महिलाओं ने अपने जीवन में पिता की उन यादों को सांझा किया, जिन्होंने उन्हें सफलता में मदद की।
मौका था 14 जून बुधवार को मॉर्निंग न्यूज, ईवनिंग प्लस और माॅर्निंग न्यूज इंडिया की ओर से फादर्स डे के उपलक्ष्य पर आयोजित पा… एक विश्वास-संस्मरण कार्यक्रम का। संस्थान के कार्यालय में आयोजित किए इस कार्यक्रम में आई महिलाओं ने यादों के झरोखों से पिता के साथ हुए कुछ खास पलों को शेयर किया। कार्यक्रम का संचालन अम्बिका शर्मा ने किया।
वीडियो देखें: फादर्स डे पर 'पा एक विश्वास'
1.बेटी होती हैं मां के करीब
पूरी दुनिया में अगर कोई आपको आगे बढ़ता देखना चाहते हैं तो वो सिर्फ माता-पिता होते हैं। पिता हमेशा अपने बच्चों को खुदसे आगे बढ़ता देखना चाहता है। यह कहना है स्नेहलता साबू का। उन्होनें कहा कि बेटों से ज्यादा बेटियां पापा के करीब होती हैं। पिता के साथ अपनी यादें शेयर करते हुए उन्होनें बताया कि जब वो 10वीं क्लास पास करके आगे पढ़ना चाहती थी, तब दादी ने कहा था कि शादी कर दो। जिसका पिता ने विरोध किया और मेरा 11वीं में एडमिशन करवाया। उसके बाद जब कॉलेज में एडमिशन की बात आई तो पूरा परिवार इसके खिलाफ था। पिताजी ने सबके खिलाफ जाकर मुझे पढ़ाया।
पापा मेरी गलतियों को सुधारने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। अंतिम समय में भी जब वे बहुत बीमार थे, तब उन्होनें मेरी डायरेक्टी देखी और मुझे सुधार के लिए कहा था।
स्नेहलता साबू
2. लाखों के मिल जाने से पिता की कमी पूरी नहीं हुआ करती
पापा से बढ़कर मेरे लिए कोई नहीं है। मैं पापा की परी हूं। भले ही पापा हमारे साथ नहीं है, लेकिन आज मैं जो भी हूं वो सब पापा की बदौलत हूं। कहते है किसी के चले जाने से जिंदगी नहीं रुका करती, लाखों के मिल जाने से पिता की कमी पूरी नहीं हुआ करती। मीना श्रीवास्तव ने पापा के साथ बचपन की यादें ताजा करते हुए बताया कि पापा हमें पढ़ने के लिए सुबह 4 बजे उठा देते थे। सर्दियों में जब हमारी रजाई छीन ली जाती थी बहुत गुस्सा आता था। ये बाद में समझ आया कि पापा ऐसा क्यों किया करते थे। उनकी वजह से ही आज मैं हूं। पापा 2 साल पहले हमें छोड़कर चले गए। अब बस उनकी बातें याद आती हैं।
मीना श्रीवास्तव
3. जीवन का एक छोर मां हैं तो दूसरा पिता
पिता के लिए जितना कहा जाए उतना कम है। पिता को कोई भी शब्दों में परिभाषित नहीं कर सकता। मेरे जीवन की एक साइड मां ने तो दूसरी साइड पिता ने संभाली है। यह कहना है, लक्ष्मी अशोक का। उन्होनें कहा कि मेरे लिए हमेशा मेरे पापा मोटिवेटर और रक्षक बनकर रहे। मुझे बेधड़क बनाने वाले मेरे पापा ही हैं। पापा हमेशा कहते थे, कि कुछ ऐसा करो जिसकी उम्मीद दुनिया वाले कभी नहीं कर सकते। पिता ने हमेशा बेटों की तरह पाला। जब मुझे प्रिजनर्स वेलफेयर के लिए काम करने का ऑफर मिला तो पापा ने कहा इसमें डरने जैसा कुछ नहीं है। पापा के फुल सपोर्ट के कारण ही मैं सहज तरीके से प्रिजनर्स और उनके परिवार के साथ काम कर पाई।
लक्ष्मी अशोक
4. अनुभवों की खान होते हैं पिता
पिता के पास कटु अनुभवों की भी खान होती है, जो वो कभी परिवार और बच्चों के सामने नहीं आने देते। प्रियंका गुप्ता का कहना है, कि बेटी के साथ हमेशा खड़ा रहने वाला पिता ही होता है। मुझे आत्मनिर्भर बनाने में पापा ने हमेशा प्रेरित किया। भले ही घर की आर्थिक स्थिति उस समय अनुकूल नहीं थी। फिर भी सिविल सर्विसेज की तैयारी करवाई। मेरा यूपीएससी क्लीयर होने पर पापा ही सबसे ज्यादा खुश हुए। बचपन का किस्सा सुनाते हुए प्रियंका गुप्ता ने बताया, उन्हें 10वीं के बाद पढ़ने के लिए बाहर हॉस्टल में भेजा गया था। पापा ने कैसे भी इंतजाम करके स्कूल और हॉस्टल की फीस जमा करा दी। मैनें तीसरे दिन पापा को फोन करके कहा कि मुझे यहां नहीं रहना, तो वो तुरंत मुझे आकर ले गए। इतनी भारी-भरकम फीस जो जमा की थी, उसकी भी पापा ने परवाह नहीं की और मुझे घर ले गए।
प्रियंका गुप्ता
5. पिता की तीन सीख बनी मेरी पहचान
आज मेरी जो भी पहचान है वो पिता की सीख से बनी है। पिता ने मुझे 3 सीख दी। पहली मुसीबत से भागना नहीं, सामना करना है। दूसरी कभी जिंदगी में डरना नहीं और तीसरी आप भला तो जग भला। ये तीनों सीख मेरी जिंदगी के लिए महत्वपूर्ण रही। यह कहना है, डॉ. योगिता जोशी का। उन्होनें कहा कि मेरे पिता ने मुझे पूरा आसमान दिया। मैं जो करना चाहती थी, वो सब करने की मुझे आजादी दी। डॉ. योगिता ने बताया कि उस समय गांव में हाई स्कूल नहीं था। पढ़ने के लिए बाहर जाना था। पास में ही सालों से एक बॉयज स्कूल चलता था। उस स्कूल में पहली लड़की मैं ही थी। जिसने वहां पढ़ना शुरू किया। मुझे रानी लक्ष्मीबाई जैसा बनने के लिए प्रेरित करने वाले मेरे पिता ही थे।
डॉ. योगिता जोशी
6. पापा मेरे पापा… चेहरे की मुस्कुराहट हैं मेरे पापा
मां धरती है तो पिता आसमान हैं। उन्हीं की छत्रछाया में हम फलते-फूलते हैं। मैं उस बाप की बेटी हूं जो खाने की थाली छोड़कर लोगों की सेवा करने निकल जात थे। अपर्णा बाजपेयी का कहना है कि उन्हें समाजसेवा पिताजी से विरासत में मिली है। उन्होनें कहा कि पापा कहते हैं कि खुशी में तो हर कोई मुस्कुराता है जो दुख के समय में भी चेहरे पर स्माइल रखे वो इंसान होता है। जिंदगी में कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ऐसा ही एक अपने पिता का किस्सा उन्होनें सुनाया। 2004 में जब पिताजी बैंक के लिए निकले तो ड्राइव करते समय उन्हें सीने में दर्द होने लगा। इस तरह एक वीक में 3 बार अटैक की शिकायत हुई। जब पापा को शक हुआ तो वो अकेले ही हॉस्पिटल गए और डॉक्टर को दिखाया।
अपर्णा बाजपेयी
7.सबकुछ पा लेने का नाम है पापा
पापा का मतलब है, सबकुछ पा लेना। अगर पापा का साथ जीवन में है तो आपने जंदगी में सबकुछ पा लिया है। यह कहना था कार्यक्रम में बोल रही सीता रघु का। उन्होनें बताया कि पापा की एक दुकान हुआ करती थी। जहां वे महीने में 2 दिन की छुट्टी लेकर परिवार के सभी सदस्यों से मिलने जाते थे। बचपन की एक बात साझा करते हुए सीता रघु ने बताया कि पापा कभी-कभी नशा करते थे। एक बार प्रजापिता ब्रह्मकुमारी की पैदल यात्रा आई। जिसमें नशा छुड़ाने के लिए फॉर्म भरवा रहे थे। मैनें भी पापा से कहा कि पापा आप भी भर दीजिए। पापा ने मेरी बात सुनते ही तुरंत फॉर्म उठाया और भर दिया। उसके बाद पापा नशे से हमेशा के लिए दूर रहे।
सीता रघु
8. पिता की फटी जेब से होती हर ख्वाहिश पूरी
पिता की फटी जेब से भी हर ख्वाहिश पूरी होती है। मैं उस फैमिली से हूं, जहां लड़कियों को नॉर्मल स्टडी करवाकर शादी करा दी जाती थी। मेरे पापा ने कभी ऐसा नहीं सोचा और हमेशा मेरा साथ दिया। टीना शर्मा बताती हैं, कि उनकी जिंदगी कभी आसान नहीं रही। लेकिन पिता के साथ से सबकुछ संभव हो पाया। बचपन की याद साझा करते वे बताती हैं। जब वो 8वीं क्लास में थी तब मम्मी-पापा के बीच बहस हो रही थी कि इसे आगे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया जाएगा। 11वीं मेरा साइंस सब्जेक्ट के साथ अंग्रेजी माध्यम स्कूल में एडमिशन हो गया। हिंदी मीडियम से इंग्लिश मीडियम और विषय साइंस। मैं फेल हो गई। उस समय पिताजी ने कहा कि भरोसा रखो सब कुछ अच्छा होगा। पिताजी का दिया हौंसला मेरे जीवन को बदलने में काम आया।
टीना शर्मा
9. पिता की राहों पर चलती हूं
पिता कभी डांटकर तो कभी तो कभी प्यार से पुकार लेते थे। बचपन की यादें अब तस्वीरों में ही रह गई हैं। अमिता मधुप ने पिता को याद करते हुए कहा कि मैं पिता की राहों पर ही चलती आई हूं। पिता से मैंने हमेशा सच बोलना और झूठ का विरोध करना सीखा। उन्होनें बताया कि बचपन में एक बार मुझे खेलते हुए चोट लग गई थी। उस समय गांव में ना ही तो अस्पताल था और ना घर पर कोई दवाई। पापा ने मकड़ी के जाले से ही मेरी चोट ठीक कर दी। आज भी चोट का निशान पापा की याद दिलाता है।
अमिता मधुप
10. पापा से ही होता है हर दिन खास
मेरे लिए सबकुछ पापा ही हैं। पापा के साथ हर दिन खास होता है। 5 बहनों में सबसे छोटी हूं मैं और पापा का ही प्रोत्साहन रहा कि मैं हमेशा आगे बढ़ती रही। यह कहना है दिव्या गुप्ता का। उन्होनें बताया कि पापा ने हमें हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका दिया। अगर हमें कुछ होता है, तो मां के बजाय हम पापा को पुकारते हैं। बचपन की यादों का एक किस्सा सुनाते हुए दिव्या गुप्ता बताती हैं कि जब हम परिवार सहित शादी में जा रहे थे तो नदी से निकलते समय अचानक गाड़ी एक जगह स्लीप हो गई। उस समय पापा ने हम बेटियों की जान बचाने के लिए खुद को जोखिम में डाल दिया और गाड़ी का सारा बोझ खुद पर लेकर हमें बचा लिया। जिसके बाद उन्हें कई स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां भी आई। जिन्हें उन्होंने हंसते-हंसते सह लिया।
दिव्या गुप्ता
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