Lok Sabha Elections से पहले राजस्थान कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष और प्रदेशाध्यक्ष के पद पर बड़ा फैसला किया है। पहली बार दलित चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है तो Congress State President पद पर Govind Singh Dotasara को बरकरार रखकर जाट वोट बैंक को खुश कर दिया है। लेकिन दोनों नेताओं का नाम गहलोत गुट से होना पायलट के लिए बड़ा झटका है क्योंकि पायलट भी अपने खेमे के विधायक को यह पद दिलाने का प्रयास कर रहे थे।
दोनों बड़े पदों पर हुए इस फैसले के कांग्रेस की अंदरूनी सियासत में बड़ा बवाल मचा सकती है। जूली के नेता प्रतिपक्ष बनने के पीछे बड़ा कारण कांग्रेस के बड़े नेताओं का विश्वास है। जूली को नेता प्रतिपक्ष बनाने में सबसे ज्यादया योगदान गहलोत का रहा है और पूर्व सीएम चाहते थे कि दोनों महत्वपूर्ण पदों पर पायलट खेमे का विधायक नहीं बैठे।
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दोनों पद पायलट खेमे के पास नहीं
राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह के अलावा पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने पूर्व मंत्री टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष बनने के पीछे बड़ी भूमिका है। दोनों नहीं चाहते कि पायलट खेमे के किसी भी नेता को दोनों पदों मिले। टीकाराम जूली और प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दोनों गहलोत के साथ काम कर चुके हैं तो अब उनको किसी प्रकार का खतरा नहीं है।
दलित कार्ड खेला
कांग्रेस हमेशा दलित, किसान, आदिवासी वोट बैंक को अपना मानती है लेकिन पिछले लंबे समय से इस वोट बैंक में सेंध लगी है और इसके कारण वह कमजोर हुई है। ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस अब राज्यों में भी दलित कार्ड खेलने का काम कर रही है।
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राजस्थान कांग्रेस ही गहलोत
टीकाराम जूली के लिए नेता प्रतिपक्ष का पद चुनौतियों से भरा होगा। अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमों के बीच संतुलन बनाना और इसके अलावा जूली को अशोक गहलोत के साये से बाहर निकलने का भी काम होगा। परसराम मदेरणा के बादजितने भी नेता प्रतिपक्ष रहे हैं, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रही है कि वे Ashok Gehlot के साये से बाहर नहीं निकल पाए। राजस्थान में एक बार फिर साबित हो गया है कि गहलोत ही Congress है और पायलट को अभी इंतजार करना होगा।