जयपुर। Haryana BJP Victory Reasons : हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी ने एग्जिट पोल को धत्ता बताते हुए जबरदस्त जीत हासिल की है। 90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा राज्य में भाजपा स्पष्ट बहुमत प्राप्त करती हुई दिख रही है। हालांकि, इससे पहले लगभग सभी एग्जिट पोल कांग्रेस की जीत बता रहे थे। ऐसे में आइए जानते हैं भाजपा की हरियाणा में जीत के वो 5 बड़े कारण जो कांग्रेस और राहुल गांधी समझ नहीं सके और वो महफिल लूट ले गई।
1. मनोहरलाल खट्टर की जगह सैनी मुख्यमंत्री बनाना
आपको बता दें कि भाजपा पहली बार 2014 में हरियाणा की सत्ता में आई थी। इसके बाद उसने 2019 में जेजेपी की मदद से गठबंधन सरकार बनाई। लेकिन 2 कार्यकाल सत्ता में रहने से एंटी-इन्कंबेंसी का जोखिम था। यही जोखिम खत्म करने के लिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपना जांचा-परखा, आजमाया दांव चला जो मुख्यमंत्री बदलने का था। उसने मनोहर लाल खट्टर की जगह पर उनके ही भरोसेमंद नायब सिंह सैनी को सीएम बना दिया। भाजपा का यह दांव कामयाब रहा जिसें कांग्रेस समझ नहीं सकी।
2. सीएम सैनी की वजह से ओबीसी वोट भाजपा के पक्ष में आया
दरअसल, सीएम नायब सिंह सैनी ओबीसी समुदाय से आते हैं। वो हरियाणा में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले ओबीसी समुदाय के पहले व्यक्ति हैं। इस वजह से उनके समुदाय के मतदाताओं का भाजपा ओर झुकाव बढ़ गया। हरियाणा में अहीर, गुज्जर और सैनी समुदाय करीब 11 फीसदी हैं, वहीं ओबीसी 34 प्रतिशत के करीब हैं जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला।
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3. गैर-जाट वोटों की की गई लामबंदी
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी का अति-आत्मविश्वास, भूपेंद्र सिंह हुड्डा को उम्मीदवार तय करने में फ्री हैंड के साथ बहुत अधिक अहमियत ने चुनाव में जाट बनाम गैर-जाट ध्रुवीकरण हो गया। इसके अलावा भाजपा ने नायब सिंह सैनी के तौर पर ओबीसी समुदाय का पहला सीएम देकर इस ध्रुवीकरण को और मजबूत कर दिया जिसका फायदा उसें मिला। हरियाणा जाट दबदबे वाला राज्य है जहां करीब 30 फीसदी जाट हैं। वहीं, पिछड़े वर्ग के वोटरों की संख्या करीब 34 प्रतिशत है। इनके अलावा 17 प्रतिशत दलित हैं। कांग्रेस में जाट समुदाय को बहुत ज्यादा अहमियत मिलने से कहीं न कहीं गैर-जाट वोटरों का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ा। बीजेपी को अंदाजा हो गया था कि उसे लेकर जाट वोटर में नाराजगी है इसलिए उसने इस समुदाय से बहुत ज्यादा उम्मीद तक नहीं पाली। चुनाव से पहले बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से दूरी बना ली जिसका कोर वोटर बेस जाट ही है। इसका भी बीजेपी को फायदा मिला।
4. नए उम्मीदवारों को मौका
भाजपा ने सत्ताविरोधी रुझान और स्थानीय स्तर पर विधायक के लेवल पर वोटरों में नाराजगी दूर करने के लिए सीएम बदलने के साथ ही एक और दांव ये चला कि उसने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया। इस वजह से कुछ सीटों पर उसें बगावत का भी सामना करना पड़ा लेकिन पार्टी ने उसे बहुत तवज्जो नहीं दी। चुनावों में भाजपा को इसका फायदा भी मिला।
5. दलित वोटर्स पर किया फोकस
हरियाणा में कांग्रेस अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी। वहीं, भाजपा को भी पता था कि इस बार राह आसान नहीं। इसके चलते भाजपा ने कांग्रेस की अंतर्कलह का फायदा उठाया। कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा बनाम कुमारी सैलजा की लड़ाई को उछाला। टिकट वितरण में हुड्डा खेमे की ही चली और अधिकतर उम्मीदवार वही बने, जिन पर पूर्व सीएम का हाथ था। सैलजा इससे असहज भी हुईं और वो चुनाव प्रचार से दूर हो गई। ऐसे में भाजपा ने ये प्रचारित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी कि कांग्रेस के भीतर दिग्गज दलित चेहरा सैलजा का अपमान किया जा रहा है। उनकी उपेक्षा हो रही है। इसके अलावा पार्टी ने मिर्चपुर कांड की याद दिलाकर दलितों को चेतावनी भी दी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो उनके समुदाय पर अत्याचार का दौर शुरू हो सकता है। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को दलित वोटरों को भी साधने में कामयाबी मिलती दिख रही है।
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