Jaipur Hathi Dant Art : राजस्थान में गुलाबी नगर जयपुर अपनी अनूठी वैभवशाली पारंपरिक विशेषताओं के लिए मशहूर है। राजस्थान की हस्तकलाएँ स्पेशल स्टोरी सीरीज में हम आपको आज पिंकसिटी जयपुर की नायाब कला हाथी दांत उद्योग (Jaipur Hathi Dant Art) के बारे में बताने जा रहे हैं। राजस्थान में हाथी दांत के आभूषणों (Ivory Jewellery In Rajasthan in Hindi) का प्रयोग प्राचीन एवं मध्यकाल से ही होता आ रहा है। रियासतों के आगमन के बाद से इसे राजस्थान में और भी विकसित किया गया है। अन्य शिल्पों की तुलना में राजस्थान में हाथीदांत के आभूषण लाजवाब हैं। तो चलिए जयपुर के हाथी दांत (Jaipur Hathi Dant Art) की दास्तान जान लेते हैं। राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बंदे ये पोस्ट जरूर शेयर करें।
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हाथी दांत शिल्प कम से कम 4000 साल पुरानी कला है, जो आधुनिक युग तक जीवित है। हाथी दांत की नक्काशी का उल्लेख भारत के सबसे पुराने वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है। जयपुर का हाथी दांत शिल्प (Ivory Jewellery In Rajasthan in Hindi) ऐसा है, जिसका कोई सानी नहीं है। जयपुर की हाथी दांत कला (Jaipur Hathi Dant Art) की खासियत है इसकी विश्वसनीयता। मौजूदा दौर में जयपुर में लगभग डेढ़-दो हजार शिल्पी हैं जो हाथी दांत पर कारीगरी कर रहे हैं। ये लोग मुख्यरूप से हाथी, गणेश, बुद्ध और सुंदर चिड़िया बनाते हैं। यह काम ज्यादातर कुमावत जाति के लोग ही करते हैं।
जयपुर में हाथी दांत के आभूषण (Jaipur Hathi Dant Ornaments Making Process) का बारीक काम होता है। सबसे पहले जटिल डिजाइनों को पहले हाथी दांत पर स्केच किया जाता है, फिर सावधानीपूर्वक नक्काशी की जाती है। इन नक्काशीदार हाथी दांतों को सैंडपेपर की मदद से चिकना किया जाता है। इसके बाद पानी और हाइड्रोजन पेरोक्साइड के मिश्रण में हाथी दांत (Ivory Jewellery In Jaipur in Hindi) को धोया जाता है ताकि वह एकदम सफ़ेद हो जाए। इसके बाद हाथी दांत के पीस को मिथाइलेटेड स्पिरिट से रगड़ा जाता है। आखिर में चमचमाता हाथी दांत का आभूषण तैयार हो जाता है।
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इतनी दुर्लभ कला होने के बावजूद वक्त की मार और आधुनिकता की चमक के चलते जयपुर का हाथी दांत उद्योग धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। इस समय हाथी दांत हजार से लेकर पंद्रह सौ रुपए प्रति किलोग्राम के बीच मिलता है। इसलिए अब हाथी दांत (Jaipur Hathi Dant Art Challenges) की चीजों के दाम भी बढ़ गए हैं। साथ ही वन्य जीव संरक्षण नियमों की वजह से भी हाथी दांत कला धीरे धीरे पिछड़ गई है। अधिकतर शिल्पकार ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। उनके घरों में काम की न तो समुचित सुविधा है और न ही स्थान। सरकारी योजनाओं की जानकारी न होने से यह धंधा रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। जिन व्यापारियों के पास थोड़ी बहुत पूंजी है, वे लोग अपने यहां ठेके पर मजदूर रख कर उनसे अपना काम कराते हैं। घंटों मेहनत करने के बाद मजदूरों को बहुत कम पारिश्रमिक दिया जाता है। अगर सरकार इन्हें आर्थिक मदद उपलब्ध कराए तो ये लोग जहां अपने कार्य का विस्तार कर सकते हैं, वहीं दूसरे लोग भी इस कारोबार से जुड़ सकते हैं।
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राजस्थान की भजनलाल सरकार (Bhajanlal Sarkar Rajasthan) ऐसी विषम परिस्थितियों में भी लगातार कोशिश कर रही है कि विश्व में जयपुर का गौरव कही जाने वाली ऐसी तमाम परपंरागत कलाओं और विलुप्त होते काम धंधों की फिर से कायापलट की जा सके। राजस्थान सरकार की ओर से इस कला के संरक्षण के लिए फेस्टिवल आयोजित किये जा रहे हैं। साथ ही जयपुर के प्रसिद्ध हाथी दांत उद्योग (Jaipur ka Galicha MSME Schemes) से जुड़े सभी मेहनतकश कारोबारी और हुनरमंद कारीगर राजस्थान सरकार के उद्धयोग मंत्रालय तथा MSME विभाग से संपर्क करके विभिन्न लाभकारी योजनाओं की जानकारी एवं समुचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
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