Jaipur ka Patang Udyog : राजस्थान में कला को कितना महत्व दिया जाता है, इस बात का पता इस एक तथ्य से चलता है कि यहां सालाना 3700 करोड़ के हस्तशिल्प (Rajasthan Handicraft Export) का निर्यात होता है। राजस्थान में गुलाबी नगर जयपुर अपनी अनूठी वैभवशाली पारंपरिक विशेषताओं के लिए मशहूर है। जयपुर को यूंही इंटरनेशनल क्राफ्ट सिटी का दर्जा नहीं दिया गया है। जयपुर में फलने फूलने वाली ऐसी कई कलाएं हैं जो नई पीढ़ी को दांतों तले उंगली दबाने पर मज़बूर कर देती है। आसमान में उन्मुक्त रूप से उड़ती हुई पतंग हमें ज़िंदगी के कई मायने सिखलाती है। मकर संक्रांति जिसे पतंगों का त्योहार (Makar Sakranti Jaipur Kite 2024) भी कहा जाता है, पतंग बनाने और उड़ाने वाले दोनों के लिए खुशियां लेकर आती हैं। रोजाना नीला नज़र आने वाला आसमान इस दिन रंग-बिरंगी उड़ती पतंगों से भर जाता है, मानों ऐसा लगता है जैसे यह इतरा रहा हो। बात जब पतंगों की चली है और जयपुर का ज़िक्र ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। राजस्थान की हस्तकलाएँ स्पेशल स्टोरी सीरीज में हम आपको आज पिंकसिटी जयपुर की नायाब कला पतंग उद्योग (Jaipur Patang Art) के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए जयपुर की पतंगों (Jaipur Kite Market) की उड़ान की दास्तान जान लेते हैं। राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बंदे (Jaipur Kite RAS notes pdf) ये पोस्ट जरूर शेयर करें।
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जयपुर का पतंग उद्योग (Jaipur ka Patang Udyog)
जयपुर की बनी हुई पतंगे देश विदेश में मशहूर हैं। अकेले जयपुर में 20 हजार से भी अधिक पतंग कारीगर हैं तथा सालाना 15 करोड़ तक का कारोबार होता है। दुनियाभर में आयोजित होने वाले काइट फेस्टिवल बिना जयपुरी पतंगों के अधूरे माने जाते हैं। जयपुर के 150 साल पुराने पतंग बाजार हांडीपुरा (Kite Market Handipura Jaipur) में मकर सक्रांति पर एक से एक पतंग मिलती हैं। जयपुर की पतंगों की खासियत है कि उनमें उस तरफ टेप नहीं होता है जो पतंगों को बेहतर पकड़ देता है। जयपुर की पतंगों में चमकीले रंग और तामझाम होते हैं जो लोगों को लुभाते हैं।
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जयपुर के पतंग उद्योग के सामने चुनौतियां (Jaipur Patang Art Challenges)
इतनी दुर्लभ कला होने के बावजूद वक्त की मार और आधुनिकता की चमक के चलते जयपुर का पतंग उद्योग धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। मौजूदा दौर में कोरोना और जीएसटी ने जयपुर के पतंग कारोबारियों की कमर तोड़कर रख दी है। पतंग व्यापारियों की मानें तो कागज पर पहले से ही 12 प्रतिशत टैक्स लगा हुआ है, इसके अलावा 5 प्रतिशत जीएसटी ने पतंग कारोबार (Jaipur Patang Art Challenges) की बुरी हालत कर दी है। कारीगर धीरे धीरे इस उद्योग से दूर हो गए। पतंग बनाने वाले कारीगरों की कमी आने के कारण स्टॉक कम हो गया। इन दिनों जयपुर में बरेली और कानपुर से पतंगें आ रही हैं, लेकिन उनके दाम अधिक हैं। कोरोना और बर्ड फ्लु जैसी बीमारियों की वजह से भी कई शहरों में काइट फेस्टिवल (Jaipur Kite Festival) होने बंद हो चुके हैं। ऊपर से चाइनीज पतंगों और मांझे की वजह से भी जयपुर के पतंग व्यापार को तगड़ा नुकसान पहुंचा है। अगर सरकारी योजनाओं की जानकारी इन व्यापारियों तक पहुंच सके तो गुलाबी नगरी का पतंग उद्योग फिर से नई ऊंचाईयां छू सकता है।
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राजस्थान सरकार क्या कर रही है
राजस्थान की भजनलाल सरकार (Bhajanlal Sarkar Rajasthan) ऐसी विषम परिस्थितियों में भी लगातार कोशिश कर रही है कि विश्व में जयपुर का गौरव कही जाने वाली ऐसी तमाम परपंरागत कलाओं और विलुप्त होते काम धंधों की फिर से कायापलट की जा सके। राजस्थान सरकार की ओर से इस कला के संरक्षण के लिए जल महल की पाल पर मकर सक्रांति के मौके पर काईट फेस्टिवल आयोजित किया जाता हैं। साथ ही जयपुर के प्रसिद्ध पतंग उद्योग (Jaipur Patang Udyog MSME Schemes) से जुड़े सभी मेहनतकश कारोबारी और हुनरमंद कारीगर राजस्थान सरकार के उद्धयोग मंत्रालय तथा MSME विभाग से संपर्क करके विभिन्न लाभकारी योजनाओं की जानकारी एवं समुचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।