Jaipur ki Blue Pottery : राजस्थान रंगों का प्रदेश है कलाओं का संगम है वीरता और शौर्य की गाथा है। जयपुर में एक से बढ़कर एक हस्तकलाएँ मौजूद हैं जिनसे आज की युवा पीढ़ी अनजान है। हमने ये राजस्थान की हस्तकलाएँ स्पेशल स्टोरी (Rajasthan Ki Hastkalaye Special Story) सीरीज शुरु ही इसीलिए की है ताकि युवा पीढ़ी को राजस्थान की समृद्ध विरासत से रूबरू करवाया जा सके। महज किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के लिए राजस्थान का सामान्य ज्ञान न पढ़ा जाए बल्कि हमारे यहां की कलाओं को नई सोच के साथ आगे बढ़ाया जाए। राजा-महाराजाओं का शहर जयपुर अपने अंदर कई तरह की कलाएं सहेजे हुए हैं। पिंकसिटी में दुनिया की एक से बढ़कर एक औद्योगिक विरासत मौजूद है। ऐसी ही एक कला है जयपुर के ‘नीली मिट्टी के बर्तन’। जिसे ब्लू पॉटरी (Jaipur ki Blue Pottery) के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए हम आपको आज जयपुर की ब्लू पॉटरी की दास्तान सुनाते है।
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ब्लू पॉटरी (Jaipur ki Blue Pottery) के नाम से मशहूर ये ख़ूबसूरत कला 17वी सदी में फ़ारसी कलाकारों के ज़रिये गुलाबी नगरी में आई थी। मन मोह लेने वाली डिजाइन से सजे हुए ये नीले बर्तन शाही परिवारों की पहली पसंद हुआ करते थे। नीले चटख रंग वाले ये बर्तन पूरी दुनिया में जयपुर की कलात्मक विरासत को पेश करते हैं। इन नीले बर्तनों को जयपुर का नील मृद्भाण्ड भी कहा जाता है।
Blue Pottery बनाने में पिसा हुआ कांच, क्वार्ट्ज पाउडर, अर्थ फुलर्स, बोरेक्स, गोंद, सोडा बाइकार्बोनेट और पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इस पाउडर से तैयार आटे को सांचे में डालकर सुखाया जाता है। नीली मिट्टी के बर्तन चमकीले और कम ज्वलनशील होते हैं। सांचे से निकालकर नीले बर्तनों को आग में पकाया जाता है। फिर इन पर नीले कलर की कलाकारी की जाती है। जयपुर ब्लू पॉटरी को भारत में जीआई (Jaipur Blue Pottery GI Tag) का दर्जा दिया गया है। पद्मश्री कृपाल सिंह शेखावत को ब्लू पॉटरी का जनक कहा जाता है।
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वक़्त की मार अच्छी से अच्छी कला को भी हाशिये पर ला देती है। किसी ज़माने में हाथ से बने ये मनमोहक बर्तन (Jaipur ki Blue Pottery) जयपुर की शान हुआ करते थे, लेकिन मौजूदा दौर में नकली माल और चीनी क्रॉकरी के सामने इनकी चमक फीकी पड़ती जा रही है। दिन रात की मेहनत के बाद भी इन कामगारों को अपने परिश्रम का फल नहीं मिल पाता है। कोरोना काल में इस पुश्तैनी उद्योग की मुश्किलें (Blue Pottery Problems) और भी बढ़ गई हैं। कीमत ज्यादा होने की वजह से विदेशी सैलानी या अमीर लोग ही इसे खरीद पाते हैं। मुनाफे का मोटा हिस्सा दुकानदारों के पास चला जाता है, असली कारीगर तो बस नाममात्र ही पाते हैं।
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अगर सरकारी नियंत्रण और संरक्षण मिले तथा इन कारीगरों तक सरकार की योजनाओं की जानकारी पहुंच सके तो जयपुर का ब्लू पॉटरी (Jaipur ki Blue Pottery) उद्यम फिर से बुलंदियों पर पहुंच सकता है। राजस्थान की भजनलाल सरकार (Bhajanlal Sarkar Hindi) का लगातार यही प्रयास रहा है कि जयपुर में फलने फूलने वाली ऐसी समस्त परपंरागत कलाओं और पुश्तैनी उद्योग धंधों को एक नई दिशा दी जा सके। ब्लू पॉटरी उद्योग से जुड़े सभी व्यापारी और कामगार राजस्थान सरकार के उद्योग मंत्रालय और MSME विभाग से संपर्क करके विभिन्न लाभकारी योजनाओं की जानकारी एवं समुचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
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