जयपुर। 10 महीने की बच्ची को सिर के बराबर की गांठ ये मामला कोटा का सामने आया है। पांच हजार बर्थ में ऐसा एक केस सामने आता है। बच्ची का मेडिकल कॉलेज अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग में ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन जटिल था और रिस्क बहुत था। न्यूरोसर्जन डॉ.एसएन गौतम ने बताया कि दस महीने की बच्ची के सिर के पीछे उसके सिर के बराबर की गांठ थी। जो कि सिर की तरह ही दिखती थी। इस बीमारी को ओकसिपीटल एनकेफेलोसील कहते है। बच्ची को शिशु रोग विशेषज्ञ को घरवालों ने दिखाया था जिसके बाद उसे न्यूरोसर्जरी विभाग में भेजा गया। बच्ची की जांचे की गई। बच्ची बहुत छोटी थी, साथ ही उसका सिर भी काफी बड़ा था लेकिन सांस की नली का रास्ता छोटे बच्चे जैसा ही था, साथ ही सिर की गांठ काफी बड़ी थी।
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ऐसे केस बहुत दुर्लभ होते हैं। पांच हजार बर्थ में एक केस रिपोर्ट होता है। ऐसे मरीजों में अन्य जन्मजात विकृतियां जैसे हृदय की विकृतियां, किडनी की विकृति, आंतों की विकृति, वेक्टर्ल सिंड्रोम होने के चांस ज्यादा होते हैं। डॉ. एसएन गौतम ने बताया कि पंद्रह दिन पहले घरवाले बच्ची को लेकर उनके पास अस्पताल पहुंचे थे और बच्ची को भर्ती करवाया गया। बच्ची की जांच के बाद 12 दिन पहले बच्ची का ऑपरेशन का निर्णय कर ऑपरेशन थियेटर में लिया गया। मरीज का ऑपरेशन के दौरान टेंपरेचर मेंटेन रखा गया जिसके लिए लगातार टैम्परेचर मॉनिटरिंग की गई क्योंकि इन मरीजों में हाइपोथर्मिया का रिस्क रहता है। मरीज को ऑपरेशन के बाद दर्द ना हो इसका पूरा ध्यान रखा गया। मरीज को सिर की गांठ व लार्ज साइज की वजह से इंट्राक्रेनियल प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ था। जिसको कम करने के लिए पहले वीपी शंट किया गया जिसमें सिर से पेट तक नली डालकर प्रेशर कम किया गया, फिर मरीज को उल्टा लिटा कर सिर की गांठ निकालने का ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन सफल रहा। बच्ची अब बिल्कुल ठीक है। ऑपरेशन में चार डॉक्टर्स की टीम शामिल रही।
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ऑपरेशन तीन घंटे तक चला। बच्ची की गांठ को अलग कर दिया गया है। दस दिन तक बच्ची को निगरानी में रखने के बाद अब उसे छुटटी देने की तैयारी है। डॉ.गौतम ने बताया कि इस गांठ का होने का कारण है कि छोटे बच्चों में ब्रेन की झिल्ली, आवरण का हडडी में से बाहर निकल जाना। दरअसल, छोटे बच्चों के दिमाग की हडडी में पिछली तरफ गेप होता है। समय के साथ साथ यह बंद होता जाता है। जन्मजाम विकृति होने के चलते इस गेप में से दिमाग का आवरण, झिल्ली बाहर निकलने लगती है और गेप को बढ़ाती है। इसके साथ ही फ्लूड भी निकल कर दूसरी तरफ भरने लग जाता है। जिसकी वजह से यह गांठ बनती है। जन्म से ही यह बीमारी होती है। धीरे धीरे गांठ बड़ी होने लगती है। अगर समय पर इसका इलाज नही करवाया जाए तो गांठ या तो बाहर की तरफ बढती रहकर उसमें से रिसाव शुरू हो सकता है और मौत हो सकती है। या फिर अंदर की तरफ बढने लगे तो भी नुकसानदायक है। दोनों ही स्थिति में मरीज के जीवन को खतरा होता है। विकलांगता हो सकती है।
क्यों होती है यह बीमारी
डॉ. एसएन गौतम ने बताया कि ओकसिपीटल एनकेफेलोसील, स्पाइना बाईफ़िडा बीमारी का ही एक रूप है। स्पाइना बाईफ़िडा होने के कई कारण हो सकते है जिनमे मुख्य रूप से आनुवंशिक कमी ,गर्भावस्था में मां का रेडीएशन के सम्पर्क में आना ,गर्भावस्था में फोलिक ऐसिड की कमी विटामिन बी 9 ,अधिक उम्र में गर्भ धारण होना एवं गर्भावस्था में हानिकारक दवाओं का सेवन इसका कारण बनता है। यहीं अलग अलग विकृतियां पैदा करती है। विश्व स्तर पर 1,000 जीवित जन्मे बच्चों में स्पाइना बाईफ़िडा के केवल 1-2 मामले पाए जाते है जबकि भारत में यह संख्या प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 4 से 8 तक होती है, जो अलग-अलग राज्यों में अलग अलग हो सकती है। जबकि ओकसिपीटल एनकेफेलोसील पांच हजार में से एक बच्चे को होता है। इसके कई लक्षण हो सकते हे जैसे कि कभी-कभी रीढ़ की हड्डी में त्वचा पर बालों का एक असामान्य गुच्छा, एक बर्थमार्क या उभरी हुई रीढ़ की हड्डी के ऊतक और सिस्ट शामिल हैं। इसके अलावा कई गंभीर प्रकार की परेशानियां भी हो सकती हे जैसे कि आंत में रुकावट,मांसपेशियों में कमजोरी, बौद्धिक क्षमता में कमी,कूबड़ निकलना ,एक या दोनो पैरों में लकवा हो सकता है।