जयपुर। Maharana Pratap Jayanti : माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राण प्रताप। अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै साँप॥ हे माता ऐसे पुत्रों को जन्म दे, जैसा राणा प्रताप है। जिसको अकबर सिरहाने का साँप समझ कर सोता हुआ चौंक पड़ता है, ऐसे थे महाराणा प्रताप जिनकी आज जयंती है। राजस्थान की भूमि सदा से ही महापुरुषों और वीरों की रही है। यह धरती हमेशा से ही अपने वीर सपूतों पर गर्व करती रही है। ऐसे ही एक शूरवीर महाराणा प्रताप थे। ऐसे में आज उनकी जयंती पर जानते है कुछ खास बातें।
1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ था जिसकी आज भी पूरी दुनिया में मिसाल दी जाती है। महाराणा प्रताप ने बेहद शक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर की 85000 सैनिकों वाले विशाल सेना के सामने अपने सिर्फ 20000 सैनिक और थोड़े-से संसाधनों के बल पर स्वतंत्रता के लिए वर्षों संघर्ष किया। अकबर अपने 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद उन्हें बंदी नहीं बना सका।
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महाराणा प्रताप की वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु पर अकबर भी रोने लग गया था। महाराणा ने युद्ध में पकड़ी गई मुगल बेगमों को सम्मानपूर्वक वापस भेज दिया था। उन्होंने साधन सीमित होने के बावजूद दुश्मन के सामने सिर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे।
महाराणा प्रताप के साथ ही उनका घोड़ा चेतक भी उन्हें जीत दिलाने के लिए अंतिम समय तक लड़ता रहा। चेतक घोड़ा इतना ताकतवर था कि उसके मुंह के आगे हाथी कि सूंड लगाई जाती थी। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगे थी तब चेतक प्रताप को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया था जिसको मुगल पार नहीं कर सके थे।
कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप ने युद्ध लड़ा तब उनका भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। महाराणा प्रताप का भाला, कवच, ढाल और साथ में 2 तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। उनका स्वयं का वजन 110 किलो था। उनकी लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी। यह चौंकाने वाली बात है कि इतना वजन लेकर महाराणा प्रताप रणभूमि में लड़ते थे।
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