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महाराणा प्रताप के वंशज ने किया यज्ञ, 484 किलो चूरमे का लगाया भोग

Maharana Pratap ki Jayanti : माई ऐडा पूत जण जैडा महाराणा प्रताप, अकबर सोतो उज के जाणे सिराणे साँप…..महाराणा प्रताप, हिंदुस्तान के इतिहास का एक ऐसा नाम जिसे सुनकर सोई हुई वीरता जाग उठती है, जिसके शौर्य की अमर गाथाएं सुनकर लोगों के रक्त में उबाल आ जाता है। आज महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती है। आज के दिन ही इस वीर शिरोमणि का जन्म (Maharana Pratap Jayanti 2024) हुआ था। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। हालांकि कई लोग अंग्रेजी तारीख 9 मई 1540 को उनकी जयंती मनाते हैं। लेकिन मेवाड़ का राज घराना इसी तिथि को Maharana Pratap ki Jayanti मनाता है। इस अवसर पर प्रदेशभर में विशेष आयोजन किए जा रहे हैं। वाकई में वीरता की अद्भुत मिसाल पेश करते हैं महाराणा प्रताप जिनकी हर एक कहानी प्रेरणादायी है। आज की युवा पीढ़ी के लिए वे आदर्श है।

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484 किलो चूरमे के लड्डू का भोग

उदयपुर में रविवार सुबह 7.30 बजे मोती मगरी स्थित महाराणा प्रताप गौरव केंद्र में 57 फीट की महाराणा की अश्वारोही प्रतिमा का फायर ब्रिगेड से जलाभिषेक (Maharana Pratap ki Jayanti) किया गया। इस मौके पर महाराणा प्रताप के वंशज और मेवाड़ पूर्व राज परिवार के सदस्य डॉ लक्ष्यराज सिंह मेवाड ने महाराणा प्रताप को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए चूरमे का भोग लगाया। लक्ष्यराज मेवाड़ (Lakshyaraj Singh Mewar) ने महाराणा प्रताप को 484 किलो चूरमे के लड्डू का भोग लगाया। प्रदेश में महाराणा प्रताप जयंती को लेकर विभिन्न जिलों में अलग-अलग कार्यक्रम किए जा रहे हैं। कहीं बाइक रैली तो कहीं विचार गोष्ठी आयोजित हो रही है।

महाराणा प्रताप गौरव केंद्र उदयपुर

महाराणा प्रताप गौरव केंद्र उदयपुर में मोती मगरी (Maharana Pratap ki Jayanti) आपने जरूर देखा होगा। वहां पर महाराणा की 57 फीट ऊंची अश्वारोही अष्ट धातु की प्रतिमा लगी हुई है। गौरतलब है कि महाराणा प्रताप का निधन भी 57 साल की उम्र में हुआ था। इसलिए प्रतिमा की ऊंचाई भी 57 फीट ही रखी गई है। महाराणा प्रताप जयंती के शुभ अवसर पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा है कि उदयपुर में 100 करोड़ रुपयों की लागत से महाराणा प्रताप टूरिस्ट सर्किट विकसित किया जाएगा जिससे आने वाली पीढ़ी तक महाराणा प्रताप की शौर्य गाथाएं बिना किसी रुकावट के पहुंचती रहे। मेवाड़ के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड (Lakshyaraj Singh Mewar) ने महाराणा प्रताप जयंती पर प्रताप की वीरता और बलिदान को याद करते हुए कहा कि मेवाड़ में हिंदी तिथि के अनुसार जयंती मनाने की परंपरा है। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप के वंशज होने का एहसास अपने आप में बहुत खास है।

यह भी पढ़ें : महाराणा प्रताप जयंती दो बार क्यों मनाते हैं

महाराणा प्रताप के वंशज ने किया यज्ञ

महाराणा प्रताप के वंशज और मेवाड़ पूर्व राज परिवार के सदस्य डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड (Dr. Lakshyaraj Singh Mewar) ने महाराणा प्रताप जंयती के मौके पर मोती मगरी में चूरमे के लड्डू का भोग लगाने के बाद एक विशेष हवन में आहुति भी पेश की। लक्ष्यराज सिंह मेवाड ने आहुतियां देकर अपने मेवाड़ के राजपरिवार (Maharana Pratap ki Jayanti) की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि हर भारतवासी को महाराणा की जीवनी को आत्मसात करना चाहिए।

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