मार्निंग न्यूज इंडिया की ओर से पा एक विश्वास काव्य धारा कार्यक्रम का किया गया आयोजन
पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है और पिता सृष्टि में निर्माण की अभिव्यक्ति है। पिता ऐसी हस्ती है, कि उनके जीते जी बिरले ही उनको पहचान पाते हैं। पिता की अहमियत हमारी जिंदगी में क्या होती है, इसे सीमित शब्दों में बयां करना आसान नहीं है।
कुछ ऐसी ही भावनाओं को नामचीन कवियों ने अपनी कविता के जरिए प्रकट किया। मौका था 8 जून गुरुवार को मॉर्निंग न्यूज इंडिया, मॉर्निंग न्यूज और ईवनिंग प्लस की ओर से आयोजित काव्य धारा कार्यक्रम पा एक विश्वास के तहत फादर्स डे को लेकर आयोजित कार्यक्रम का।
जहां कई कवियों ने अपनी शानदार कविताओं के माध्यम से पिता के बारे में अपनी भावनाएं व्यक्त की। जहां पिता के समर्पण, उसके बलिदान और बिना कुछ कहे ही बच्चे की हर जरूरत को समझ, उसकी हर गल्ती को भी समझ जाने वाले पिता के बारे में भावनाएं अपनी कविताओं के जरिये प्रकट की गई। संस्थान के कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम का संचालन अम्बिका शर्मा ने किया।
पिता के साथ में रहने से, जीवन में सदा मंगल
पिता उम्मीद हिम्मत से बने, विश्वास में रहते हैं।
भले काया बने कैसी, पिता पहचान बनते है।।
पिता के साथ में रहने से, जीवन में सदा मंगल।
बिना बाबा के, सहरा भी लगे विराम इक जंगल।।
अपनी कविता के जरिए कवियित्री पारिक ने बताया कि पिता ऐसा खजाना है, जो कभी भी रीतता नहीं है। पिता अपनों के सपनों को हमेशा पलकों पर लेके घूमता है। पिता वो है, जो मां के मन की बातों को बिना कहे समझ जाता है और हमेशा बच्चों की खुशियों की दुआ करता है। जिसके लिए पूरा जीवन और खुशियां भी त्याग देता है।
मीनाक्षी पारीक
जब दुख बांटने का समय आया तब पिता स्वार्थी हो गए
पिता की थाली में आई रोटी पिता ने आधी दे दी।
पिता की जेब में आए सिक्के पिता ने आधे दे दिए।।
एक दिन दुख आया तो पिता ने सारा रख लिया।
ऐसा ही हुआ जब जब दुख बांटने का समय आया
तब पिता स्वार्थी हो गए।।
अपने हिस्से की सारी खुशियां हमारे नाम कर दी।।
बहुत ही सुंदर शब्दों में पिता के स्वभाव को व्यक्त किया। एक पिता अपने जीवन के हिस्से की हर एक चीज अपने परिवार को खुशी-खुशी दे देता है, लेकिन जब पिता पर दुख आते हैं तो सारे दुख अपने पास रख लेता है। जीवन की भागमभाग में पिता इतने व्यस्त हो जाते है कि खुद के बारे में कभी नहीं सोचते। वे हमेशा अपनों के बारे में सोचते हैं और जीवन जीते हैं।
जीनस कंवर
तेरे बिन अधूरी है ये जिंदगानी
कि पिता तू हमारे लिए आसमां है।
दुआओं से तेरी ये सारा जमां है।।
तेरे बिन अधूरी है ये जिंदगानी।
तू मेरी अंधेरी गली की शमां है।।
जो सागर की गहराई लेकर शांत दिखाई देता है
जो संभ्रांत दिखाई देता है
एक लाइन में पिता की अहमियत का बखान कैसे किया जाता है। पिता हर बच्चे के लिए आसमान हैं, यही नहीं कैसे पिता को हमेशा पता होता है कि बच्चा कहां पर गलत कर रहा है। यह नजर पिता में ही होती है। इन पंक्तियों से समझा जा सकता है कि, हमारी जिंदगी में पिता क्या है। आज जो भी अस्तित्व इस दुनिया में है वो सब पिता की वजह से ही है। आजाद ने बताया कि जो सागर की गहराई लेकर भी शांत रहे वो पिता है।
अमित आजाद
इतना प्रेम किया था क्योंकर जो कि आज संत्रास बन गया
ममता उनकी धरा बन गई और प्यार आकाश बन गया।
इतना प्रेम किया था क्योंकर जो कि आज संत्रास बन गया।
जिसमें चिड़ियों का कलरव था जिसमें शिशुओं का शैशव था
वही हास परिहास बन गया। वही आज इतिहास बन गया।
पिता के कारण ही बच्चों का जीवन सफल होता है। यह कहना है कि प्रेम पहाड़ पुरी का। उन्होनें अपनी कविता में पिता का वर्णन कुछ इस तरह से किया कि अगर हमारी जिंदगी में पिता का साया नहीं है, तो कुछ कमी हमेशा रहती है। पिता के कारण ही हंसना, रोना है तो पिता के अपने साथ होने से ही जिंदगी सफल हो जाती है। वहीं आज लोगों को अपनो से ज्यादा दूसरों पर विश्वास करने पर भी उन्होंने अपने भावों को कविता के जरिये प्रकट किया।
प्रेम पहाड़ पुरी
रहे चाहे फटे हालात ये ऐस रखता नहीं हमको
खिलौना हाथ का बनकर खिलौने घर वो लाता।
मुलायम नायियल जैसा खोल दृढतम दिखाता है।।
रहे चाहे फटे हालात ये ऐस रखता नहीं हमको।
उजड़कर खुद पिता खुदको सकल मधुबन बनाता ह।।
पिता के स्वभाव को कविता के जरिए कवि ने बखूबी पेश किया। उन्होनें बताया कि पिता खुद उजड़कर अपनी संतान के जीवन को खूबसूरत बनाता है। बाहर से एकदम सख्ती से पेश आने वाले पिता का दिल बहुत ही नरम होता है। चाहे जैसे भी हालात हो लेकिन पिता घर को हमेशा मधुबन जैसा बनाकर रखता है। बच्चों और परिवार को किसी भी तरह की परेशानी नहीं होने देता।
रितेश कुमार शर्मा पथिक
पापा तुम नहीं दिखते आस पास तो मन हो जाता है उदास
एक दिन मेरे पिता सपने में आ कहने लगे।
ऐ मेरे बच्चों तुम क्यों उदास रहने लगे ।।
पापा तुम नहीं दिखते आस पास तो मन हो जाता है उदास ।
तो पापा ने मां को अपने पास बुलाया और कहा मैं यहीं हूं आस पास।।
अपने पिता की स्मृति में अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए, उन्होंने कहा कि कैसे पिता न होकर भी उनके पास हैं। उन्होनें अपनी कविता में बताया कि पिता के जाने के बाद किस तरह बच्चे खुद को संभालना सीख जाते है। जब तक पिता साथ होते हैं तो परिवार में किसी तरह की कोई टेंशन नहीं होती। लेकिन जिस दिन पिता हमारे साथ इस दुनिया में नहीं होते, तो बच्चे तुरंत बड़े हो जाते है। अपने पिता की तरह सारी जिम्मेदारियों को निभाने लगते हैं।
कमलेश शर्मा
पिता पावन प्यार है देता है उपहार
पिता पावन प्यार है देता है उपहार।
जीवन भर मेहनत करे बच्चों संग हर बार ।।
मैं किसे पुकारूं कौन सुनेगा अल्ला या भगवान।
नफरत न बाटों इक दूजे के दर्द को बांटो सबको दो सम्मान।।
पिता का प्यार एकदम पवित्र होता है। किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती है। इस कविता में कुछ ऐसी ही बातों को बताने की कोशिश की। पिता का अपने बच्चों के लिए प्यार पावन होता है। अपनी संतान की खुशियों के लिए पिता जीवन भर मेहनत करता रहता है।
केसर लाल केसर
खुद जलकर रोशन करे बच्चों का संसार
होता पिता चिराग है जलता बारम्बार।
खुद जलकर रोशन करे बच्चों का संसार।।
जला रहा है धूप में खुदको अपने आप।
बच्चे सुख से रह सकें इस आशा में बाप।।
पिता की छांया और आशीर्वाद से बच्चे हों या बड़े सभी की परेशानियां कैसे दूर हो जाती हैं। यही भाव अपने शब्दों से पिरोये राष्ट्रीय कवि अब्दुल अय्यूब गौरी ने। उन्होंने अपनी कविता के जरिये, हर इंसान के जीवन में पिता के महत्व को दर्शाया। जिसे सुनाते हुए कभी उनका सीना गर्व से चैड़ा हुआ तो कभी उनकी आंखे नम भी हुई।
अब्दुल अय्यूब गौरी
पिता से बढ़कर इस दुनिया में दूजा कोई धाम नहीं
जात धर्म पंथ देख लिए कहीं मिला तुम्हे सम्मान नहीं ।
मंदिर मंदिर घूम रहा हूं कही मिला मुझे सम्मान नहीं।।
रामयण पढ़ने बैठा तो राम यही समझाते है।
पिता से बढ़कर इस दुनिया में दूजा कोई धाम नहीं ।।
पिता के नाम के आगे कोई भी पूजा, या कोई पाठ सभी कम पड़ते हैं। जब कोई बेटा अपने पिता के सम्मान और भारत माता के गौरव के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करता है। तब वो मन ही मन क्या सोचता है, यह भी शब्दों में बयां किया। वीर रस में लाड़ले तिरंगे पर जान को लुटाने वाले वीरों को भी सलाम पेश किया। हर गोली पर वीरों के मन से निकलने वाली भावनाओं को भी शब्द दिए।
सतपाल सोनी
मैं कोसता रहा मुकद्दर को वो पसीने से नहाता रहा
महंगे कपड़े पहनकर मैंने खुद को नंगा पाया।
जब मैं पिताजी की फटी बनियान के सामने आया।।
मैं कोसता रहा मुकद्दर को वो पसीने से नहाता रहा।
आसमां की चाहत रखने वाला जमीन पर भटकता रहा।।
दो जून की रोटी पर नींद भी बेचता है, पिता और कैसे जीवन भी दौड़ता रहता है। वो कैसे बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करता है। पिता के लिए हमेशा से बहुत कम लिखा जाता है, कि कैसे पिता अपनी खुशियों को मारकर अपने बच्चों के लिए जीते हैं। पिता कैसे खुदकी जरूरतों को भूल घर की जिम्मेदारियां निभाते हैं। वहीं समाज की स्थितियां ऐसी हैं कि खुद्दारियों का दौर कुछ यूं गुजर रहा है, कि जान कहकर भी जान ले लेते हैं लोग। वहीं गांवों में आज भी अपनेपन की रिवायत को निभाया जा रहा है और शहरों में यह खोता जा रहा है।
अरविंद विश्वेन्द्रा
मेरी पहचान थे मेरे पापा जान थे मेरे पापा और भगवान थे मेरे पापा
आसमान के चांद सितारों में ढूंढती हैं निगाहे उस प्यारे सितारे को
जो छोड़ गया हम सभी को हां पापा आप ही तो हमारे प्यारे सितारे थे।
अब भी निगाहें ढूंढती हैं उस प्यारे सितारे को आप ही तो हमारा मान स्वाभिमान थे।
मेरी पहचान थे मेरे पापा जान थे मेरे पापा और भगवान थे मेरे पापा।।
पिता के लिए हर शब्द कम पड़ते हैं। फिर भी कुछ शब्दों को यदि कोई पिरोये तो ऐसी ही पंक्तियां सामने आए। पिता कैसे पहाड़ बनकर बच्चों को कैसे सुरक्षा देता है और दुनियां के सामने कैसे सुरक्षित करते हैं। वहीं सामने न होकर भी कैसे पिता अपना आशीर्वाद बच्चों को देता रहता है।
रजनी माथुर
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