जयपुर। गरीब और गरीबी घटाने के लिए किसने क्या किया,यह जनता देख रही हैं। जब नीति आयोग ने गरीब और गरीबी घटाने के आंकड़े जारी किए तो दंगल शुरू हो गया। गरीबी पर ऐसा संग्राम… चुनाव से पहले क्रेडिट लेने के लिए गरीबी हटाने का कार्ड खेला जा रहा है। जानिए 'गरीबी कैसे बनता गया सियासी मुद्दा?
साल था 1971…, चुनावी सरगर्मी के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया. इंदिरा का यह स्लोगन इतना लोकप्रिय हुआ कि वो एक मजबूत प्रधानमंत्री बन गईं।
साल 2023. संसद में बजट पेश करते हुए मोदी सरकार के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार का एक ही लक्ष्य है- देश में कोई भी गरीब भूखा नहीं सोए. दरअसल, इस स्लोगन के जरिए सरकार 80 करोड़ लोगों को एक साथ साधना चाहती है।
इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक. 52 साल के इस सियासी सफर में भारत को 12 प्रधानमंत्री मिले लेकिन गरीबी और भूख का मुद्दा जस का तस है। सभी प्रधानमंत्रियों ने गरीबी हटाने के पुरजोर दावे किए, लेकिन देश में गरीबी कितना हटी ये आंकड़ों तक ही सीमित है। 2022 के ग्लोबल हंगर इडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक भुखमरी के मामलों में भारत दुनिया के 121 देशों में 107वें नंबर पर है। हालांकि आंकड़ों को सरकार ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। 2011 में भी हंगर इंडेक्स के दावों को सरकार ने खारिज कर दिया था। देश में चुनावी मुद्दा बन चुकी गरीबी एक बार फिर सुर्खियों में है।
1971 में गरीबी आंकड़ा
1971 के जनगणना के मुताबिक भारत में उस वक्त करीब 54 करोड़ आबादी थी, जिसमें से 57% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. देश में 66 फीसदी लोग अनपढ़ थे। ग्रामीण से ज्यादा शहरी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही थी। 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध की वजह से अनाज की भारी कमी हो गई थी, जिससे कुपोषण के मामलों में भी बढ़ गए थे।
राजनीति मझधार में फंसी इंदिरा को गरीबों ने दी संजीवनी
1970 आते-आते इंदिरा गांधी के खिलाफ कांग्रेस के पुराने नेताओं ने मोर्चा खोल दिया था. के कामराज, मोरारजी देसाई जैसे नेताओं ने मिलकर अलग से कांग्रेस बना ली। 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के पुराने नेताओं के बीच कांटे की लड़ाई चल रही थी। इसी बीच एक रैली में इंदिरा ने कहा, 'वे (पुराने नेता) कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ'. इंदिरा का गरीबी हटाओ का स्लोगन काम कर गया और लोकसभा की 518 में से 352 सीटों पर इंदिरा कांग्रेस की जीत हुई।
कालेधन के खिलाफ मोरारजी सरकार ने किया था स्ट्राइक
1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद मोरारजी देसाई की सरकार बनी। देसाई ने कालाधन खत्म करने के लिए नोटबंदी की और 1000, 5000 और 10000 के नोट बंद करने के आदेश दे दिए। नोटबंदी का ज्यादा असर तो नहीं हुआ, लेकिन मोरारजी देसाई की सरकार जल्द ही गिर गई। मोरारजी के बाद चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन वे भी ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रहे।
घुसखोरी को राजीव गांधी ने मुद्दा बनाया
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को कांग्रेस और देश की बागडोर मिली। राजीव प्रधानमंत्री बनने के बाद कई क्रांतिकारी फैसले लिए, जिसमें इनफॉर्मेशन टेक्नॉलोजी प्रमुख था। राजीव ने घुसखोरी को बड़ा मुद्दा बनाया और कहा कि सरकार 100 रुपए भेजती तो आम लोगों के पास 19 रुपए ही पहुंचता है। राजीव का यह भाषण खूब लोकप्रिय हुआ और कई राज्यों में कांग्रेस को इसका फायदा भी मिला।
मंडल-कमंडल के बीच राव का उदारीकरण नीति
1990 के शुरुआती दौर में भारत राजनीतिक स्थितरता से गुजर रहा था। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने। मंडल-कमंडल के इस दौर में भारत का विदेशी खजाना पूरी तरह खाली होने के कगार पर था। राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। सिंह उदारीकरण की नीति लेकर आए, जिससे भारत आर्थिक कंगाल होने से बच गया। नरसिम्हा राव सरकार ने मिड-डे मिल जैसी योजना की शुरुआत की। इसमें प्राथमिक वर्ग के बच्चों को स्कूल में एक समय का भोजन दिया जाता था।
अटल बिहारी का अंत्योदय योजना
1999 में सियासी उठापटक के बाद अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने। गरीबी के आंकड़ों में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आया था। अटल सरकार ने गरीबों को राहत देने के लिए अंत्योदय अन्न, ग्रामोदय और रोजगार जैसी कई योजनाएं शुरू कीे। इन योजनाओं का धरातल पर जरूर कुछ प्रभाव दिखा, लेकिन गरीबों की संख्या में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ। 1993 में भारत में जहां 45 फीसदी लोग गरीब थे, वहीं 2004 में यह आंकड़ा 37 फीसदी के पास पहुंच गया।
मनमोहन सिंह और मनरेगा
2004 में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने के बाद मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। सिंह ने गरीबी हटाने के लिए मनरेगा योजना की शुरुआत की। इस स्कीम के तहत ग्रामीण लोगों को साल में 100 दिन का निश्चित रोजगार देने की बात कही गई। मनमोहन सरकार की यह योजना खूब लोकप्रिय हुई और 2009 में दोबारा चुनाव जीतने भी मददगार साबित हुई। 2013 में मनमोहन सरकार फूड सिक्योरिटी कानून लाई इसके तहत 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा के तहत कम दाम पर 5 किलो अनाज देने की घोषणा की गई।
गरीब और गरीबी को मुद्दा बनाकर आई मोदी सरकार
2014 में बीजेपी गरीबी और महंगाई को मुद्दा बनाकर केंद्र की सत्ता में आई। 2014 के चुनावी रैलियों में पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी खुद को गरीब का बेटा बताते रहे। सत्ता में आने के बाद शुरुआती सालों में गरीबी हटाने के लिए कई दावे किए गए। मसलन- 2022 तक सबको आवास और किसानों की दोगुनी आय करने की घोषणा। लेकिन 2022 जाते-जाते सरकार बैकफुट पर आ गई। सरकार ने अब फिर से 2030 तक गरीबी हटाने का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे कई राज्यों में अब भी गरीबी सबसे ज्यादा है। जहां यह सिर्फ चुनावी मुद्दा बनता है। हाल ही में गुजरात चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी को मुद्दा बनाते हुए कहा था कि कांग्रेस ने सिर्फ नारा दिया। कांग्रेस अगर काम करती तो गरीबी कब का हट गई होती।
गरीबी पर राजनीति करने में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टी पीछे नहीं है। पार्टी के नेता आंकड़ों के हवाले से सरकार और योजनाओं पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई मेट्रो की दो लाइनों का उद्घाटन समारोह में कहा, था ''आज़ादी के बाद पहली बार आज भारत बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने का साहस कर रहा है, वरना हमारे यहां तो पिछली सदी का एक लंबा कालखंड सिर्फ गरीबी की चर्चा करना, दुनिया से मदद मांगना, जैसे-तैसे गुजारा करने में ही बीत गया''
उधर, राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहां था ,मोदी सरकार गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है। दरअसल, 2024 चुनाव को गरीबी बनाम अमीर का मुद्दा बनाया जा रहा है। बहरहाल चुनाव नजदीक है ऐसे में गरीब और गरीबी एक बार फिर से मुद्दा बनकर उभर रही है। आज की तारीख में देश में 22 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। सरकार ने आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं। यह बात कई दफा संघ नेता दत्तात्रेय होसबोले ने कहा है।आज 80 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर निर्भर हैं। गरीबी के आंकड़े डराते हैं। तो आज का सबसे बड़ा सवाल यही है कि 2024 की लड़ाई…गरीबी पर आई? क्या मोदीराज में गरीबी घटी या बढ़ी?