जयपुर। राजस्थान फोरम की डेजर्ट सोल्स सीरीज में सोमवार को प्रदेश के जाने-माने नाट्य लेखक, निर्देशक, फिल्म एवं रंगमंच अभिनेता तथा तमाशा गुरू वासुदेव भट्ट शहर के संस्कृति प्रेमियों से रूबरू हुए। इस मौके पर वरिष्ठ रंगकर्मी राजेन्द्र सिंह पायल ने विभिन्न रोचक सवालों के जरिए वासुदेव भट्ट की साठ वर्ष से भी अधिक रंगमंच, फिल्म और तमाशा साधना की यात्रा में आए विभिन्न पड़ावों और वासुदेव द्वारा इस क्षेत्र में किए गए कार्यों को वहां मौजूद श्रोताओं के समक्ष रखा।
डेजर्ट सोल सीरीज में राजस्थान की उन हस्तियों के कृतित्व पर चर्चा की जाती है जिन्होंने राजस्थान में ही रहकर जीवन पर्यन्त उल्लेखनीय कार्य किया है। डेजर्ट सोल सीरीज राजस्थान फोरम की पहल है, जिसका आयोजन आईटीसी राजपूताना के सहयोग से किया जाता है, एवम् ये सीरीज श्री सीमेंट के सीएसआर इनिशिएटिव के तहत सपोर्टेड है।
अपनी कला के सफर के बारे में बताते हुए वासुदेव ने कहा कि पांचध्छरू वर्ष के थे तभी से हम कानों में तमाशा शैली के पद सुनते आ रहे हैं। गोपीनाथ भट्ट और कथावाचक राधेश्याम के भागवत के नाटकों में आठ वर्ष की उम्र से ही अभिनय शुरू किया। सत्रह वर्ष की उम्र तक आते-आते लगा कि अब तो अभिनय के लिए मुंबई जाना हैं। पर पिताजी ने बीकानेर में नौकरी लगवा दी। अभिनय का कीड़ा मुझे हमेशा काटता रहा और यही वजह रही की बीकानेर में एक नाटक में अभिनय करने का मौका मिला तो उसमें ऐसा प्रदर्शन किया की प्रथम पुरस्कार मिला। जयपुर वापस आने के बाद आकाशवाणी में ऑडिशन दिया। वहीं से मुंबई जाकर अभिनय करने का मौका मिला और वहां भी प्रथम पुरस्कार मिला।
वासुदेव जी ने बताया कि दक्षिण भारत से पिता के दादा बंशीधर भट्ट जी अपने पिता के साथ उत्तर भारत की तरफ आए। बाद में राजघरानें में बंशीधर जी को दरबारी गायक नियुक्त किया। पर उनके मन में हमेशा रहा कि उनकी यह कला आम लोगों तक पहुंचे। फिर उन्होंने इन पारंपरिक गाथाओं को प्रश्न-उत्तर की भाषा में पदों के जरिए सबके समक्ष प्रस्तुत किया और इस तरह तमाशा का प्रचलन शुरू हुआ। यह तमाशा शैली धीरे-धीरे मॉडर्न थिएटर से भी जुड़ने लगी। उन्होंने कहा कि कला को जिंदा रखना हमेशा कर्तव्य समझा तभी आज बड़ी-बड़ी रियासतें जागीरें खत्म हो गई परंतु यह कला आज भी जिंदा हैं। उन्होंने बताया मुझे अभिनय हमेशा पूजा लगी और अभिनय करते हुए सबसे ज्यादा आनंद आया मैं सिर्फ एक अभिनेता हूं।
उन्होंने बताया राजघराने में आज भी पोथी खाने में बंशीधर भट्ट के लिखे हुए पदों के रचना ग्रंथ मौजूद हैं।उनकी यह बात सुनकर पंडित विश्व मोहन भट्ट ने बड़े भावुक होकर इस बारे में बात की , उन्होंने कहा कि कैसे हम इन ग्रंथों को दुबारा हासिल कर सकते है और सबके सामने ला सकते है।अंत में जाते जाते वरिष्ठ रंग कर्मी पायल ने वासुदेव को कविता के जरिए विदा किया और कहा ष्भले जहर ही मिले, तुम सदा अमृत ही देना।
इससे पूर्व राजस्थान फोरम की एग्जीक्यूटिव सैक्रेटरी अपरा कुच्छल ने कार्यक्रम में आए अतिथियों और कलाकारों का अभिनंदन किया। टॉक शो में मौजूद फोरम के सभापति पद्मभूषण पं. विश्व मोहन भट्ट ने वासुदेव भट्ट एवम् राजेंद्र सिंह पायल को स्मृति चिन्ह भेंट कर फोरम की ओर से उनका अभिनंदन किया। इस मौके पर राजस्थान फोरम के सदस्य पद्माश्री शाकिर अली, पद्माश्री तिलक गिताई, डॉक्टर विद्या सागर उपाध्याय, डॉक्टर मधु भट्ट तैलंग और अशोक राही सहित शहर के चुनिंदा संस्कृति प्रेमी भी मौजूद थे।
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