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शौर्य, बलिदान की धरती है राजस्थान

एकता शर्मा

कितने आश्चर्य की बात है? हिंदी पंचांग के अनुसार 16 दिन की गणगौर के पर्व के दौरान ही अक्सर राजस्थान दिवस आता है। तब याद आती है। 16 महाजनपद की ,16 महाजनपद में मत्स्य संघ अपनी अलग ही पहचान रखता था। जिसका उल्लेख महाभारत के। महाकाव्य में भी मिलता है। मत्स्य संघ जिसकी राजधानी विराटनगर थी। यह वही विराटनगर है। जहां पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान खेजड़ी के जो कि राजस्थान का राज्य वृक्ष है। उस पर अपने अस्त्र शस्त्र छुपाए थे। राजस्थान का इतिहास अपने आप में विश्व में अपनी अनोखी और अलग पहचान छुपाए हुए हैं। 

30 मार्च 1949 चैत्र शुक्ल एकम को हमने राजस्थान दिवस मनाया था। राजस्थान एकीकरण के विभिन्न सात चरणों में चतुर्थ चरण जिसमें जयपुर ,जोधपुर बीकानेर ,जैसलमेर का विलय राजस्थान संघ में किया गया ।वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसी दिन जयपुर को राजस्थान की राजधानी भी घोषित किया गया ।सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्हें
भारत के बिस्मार्क के रूप में जाना जाता हैं। इस एकीकरण में उनकी भूमिका अविस्मरणीय है।यह वही चैत्र शुक्ल है। जब नव संवत्सर की शुरुआत होती है । इन्हीं दिनों में नवरात्रि और गणगौर का पर्व आता है । यहां के लोकगीत ,लोकनाट्य, लोक देवता लोक देवी, वाद्य यंत्र कला संस्कृति सभी अद्भुत है। घूमर जहां स्टेट डांस की श्रेणी में आता है। वही केसरिया बालम गाने के साथ साथ अपनी स्वागत परंपरा, अतिथि देवो भव और शौर्यता का भी परिचायक है ।

ब्रिटिश काल में राजपूताना शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जॉर्ज थॉमस ने 1800 में किया । वही कर्नल टॉड, जिन्हें राजस्थान के इतिहास का पितामह  कहा जाता है। उन्होंने अपनी किताब *द एनल्स एंड एंटीक्विटीज आफ राजस्थान में राजस्थान शब्द का प्रयोग किया है। वर्तमान में राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। जिसका एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ। 19 रियासतों 3 ठिकानों और 1 केंद्र शासित प्रदेश को मिलाकर राजस्थान का एकीकरण किया गया। यह 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण हुआ। उस समय मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया और राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह को बनाया गया। माना जाता है, उन्हें आधुनिक राजस्थान का निर्माता भी कहा जाता है। वीर, वीरांगनाओं , रणबांकुरों की जननी इस भूमि के इतिहास से सभी को परिचित होना चाहिए।

गौरवशाली इतिहास

राजस्थान का इतिहास ना केवल अपनी वीरता के लिए अपितु गौरवशाली वैभव और संस्कृति के लिए भी पहचाना जाता है। कालीबंगा जो सिंधु घाटी का एक प्रमुख स्थल थी । आहड़, गणेश्वर बालाथल ,बैराठ ऐसे पुरातत्व स्थल है। जहां से प्राचीन राजस्थान के शिलालेख ,अभिलेख प्राप्त हुए हैं। यहां के उत्खनन से हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता का पता चलता है। हिंदू ही नहीं जैन और बौद्ध धर्म के दर्शन भी राजस्थान के शिलालेख, अभिलेखों में मिलते हैं। बड़ली ,बसंतगढ़, बिजोलिया, मान मौर्य से लेकर घोसुंडी अभिलेख इस बात के साक्षी हैं कि हमारा इतिहास कितना प्राचीन है? इसी श्रृंखला में बहुत से प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण भी राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलते है। दिलवाड़ा का जैन मंदिर अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। वही उदयपुर का एकलिंग जी का मंदिर, गोविंद देव जी जयपुर का मंदिर हो या फिर सांवरिया सेठ का मंदिर यही नहीं अजमेर पुष्कर में स्थित ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर  और ख्वाजा साहब की दरगाह ढाई दिन का झोपड़ा भी दर्शनीय स्थलों की श्रेणी में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। रणकपुर का जैन मंदिर अद्भुत सौंदर्य के साथ-साथ अपनी अनोखी बनावट के लिए जग प्रसिद्ध है।

राजस्थान की लाइफ लाइन  अरावली 

राजस्थान दुनिया में अपनी अद्भुत ,अद्वितीय बसावट ,बनावट वास्तु शास्त्र और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण  अलग ही छवि प्रस्तुत करता है। देखा जाए तो पर्यटन की पुरानी टैगलाइन *जाने क्या दिख जाए राजस्थान के संदर्भ में सटीक महसूस होती है। इस की भौगोलिक स्थिति और विविधता बिलकुल न्यारी और प्यारी है। गुजरात से शुरू हुई दिल्ली के रायसिना हिल्स तक पहुंचने वाली अरावली हिल्स जिस पर भारत के  प्रथम नागरिक राष्ट्रपति का राष्ट्रपति  भवन बना हुआ है । अपने अलग महत्व को उजागर करती है। अरावली का अधिकांश हिस्सा राजस्थान से ही गुजर कर जाता है। जिसकी कंदराओं में अनेक प्राचीन माताओं के मंदिर अवस्थित है।  अरावली पर्वत श्रृंखला नहीं, हमारी अमूर्त धरोहर है। उस धरोहर को जीवित रखना आज समाज और सरकार का प्राथमिक दायित्व होना चाहिए। जिस प्रकार से अरावली का सौंदर्य बिगड़ रहा है। वह ना केवल पर्यावरणीय चिंता का विषय बना है। अपितु हमारी सांस्कृतिक धरोहर जिसमें अनेक प्राचीनतम मंदिर ,गुफाएं ,देवस्थल स्थापित हैं। उनको भी खतरा बना हुआ है। अरावली जहां से राजस्थान की छोटी बड़ी अनेक नदियों का जन्म होता है। वन्यजीवों की शरण स्थली अरावली प्राचीनतम पहाड़ियों में से एक है। इस पहाड़ी को बचाने क्यों ना राजस्थान दिवस पर हम एक प्रण ले ? इसे अवैध उत्खनन और अतिक्रमण से बचाएं।

थार का रेगिस्तान
रेतीले धोरे ,बरखान ,अर्धचंद्राकार आकृति लिए खूबसूरत मिट्टी के टीले सूर्य उदय के समय अलग स्थान पर तो सूर्यास्त के समय किसी दूसरे स्थान पर नजर आते हैं। एक घुमक्कड़ जनजाति जैसे जेटली एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते  प्रतीत होते हैं। इन खूबसूरत रेत के धोरों के बारे में धरती धोरा री में जिस उत्कृष्टता के साथ इसका वर्णन मिलता है। वह कहीं और देखने को नहीं मिलता ।यही साक्षात सत्य भी है इन सुंदर धोरों को देखने भारत के विभिन्न प्रांतों से ही नहीं, विदेशों से भी सैलानी यहां घूमने आते हैं। तभी इसे धरती धोरा री कहते हैं।

नदियां
जिस सरस्वती का उल्लेख ऋग्वेद में भी आता है। विलुप्त सरस्वती का यहां पर किसी समय अस्तित्व था। ऐसा वैज्ञानिक शोधों में भी पता चला है । आज के समय बनास ,चंबल ,माही लूणी के अलावा कई नदियां इस क्षेत्र में प्रवाहित है। इनमें भी सबसे खास अपना अलग ही स्थान रखने वाली नदी है लूणी। हां, यह वही नदी है। जिसका वर्णन कालिदास ने अपने महाकाव्य में भी अंत सलीला के रूप में किया है। जहां सभी नदियां समुंद्र में मिलने को आतुर रहती है। वही हमारी लूणी सबसे अलग और अनोखी है ।क्योंकि ना तो यह डेल्टा बना कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। ना ही ऐस्रचुरी बनाकर अरब सागर में मिलती है। अपितु यह तो रण के कछ में जाकर विलीन हो जाती है। इस नदी का भी राजस्थान के इतिहास में कम महत्व नहीं है । झिलों में सबसे महत्वपूर्ण झील सांभर झील है ।जिसके किनारे अनेक राजपूत वंशों का उदय हुआ। ऊंचे ऊंचे सुंदर सफेद नमक के पहाड़ सर्दियों में अपनी अलग ही अनूठी छटा बिखेरते हैं। दुर्भाग्यवश यह भी अब पर्यावरण प्रदूषण अतिक्रमण और अवैध निर्माण का शिकार हो रही है। बाहर से आने वाले खूबसूरत पक्षी हजारों की संख्या में यहां मृत पाई जा रहे हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

पर्यटन स्थल
राजस्थान का पर्यटन पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र है। ऐसे पर्यटन स्थल शायद ही किसी दूसरे देश में हो? यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं मौजूद है । राजस्थान के दुर्ग ,महल, हवेलिया अनुपम सौंदर्य और भव्यता के उदाहरण है । जिन्हें यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में बड़ी संख्या में शामिल किया गया है।आमेर, गागरोन ,कुंभलगढ़, जैसलमेर रणथंबोर ,चित्तौड़गढ़ प्रसिद्ध दुर्ग है, वही मुकुंदरा हिल्स ,नेशनल मरुभूमि ,सीता माता अभ्यारण के साथ-साथ रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र बिंदु है। इसी श्रेणी में जयपुर के वास्तु शास्त्र ,बसावट जंतर मंतर को कैसे भुला जा सकता है? नाहरगढ़, जयगढ़ जिनका मध्यकालीन इतिहास में अलग ही महत्व है ।पर्यटन की दृष्टि से अपना विशेष महत्व रखते हैं।

वीर वीरांगनाओं की भूमि
राजस्थान का नाम आते हैं मस्तिष्क में सबसे पहले यहां के वीर वीरांगनाओं और  रणबांकुरों की याद आती है। पृथ्वीराज चौहान , हमीर,महाराणा प्रताप राणा सांगा को कौन नहीं जानता? वही त्याग और बलिदान की मूर्ति हाड़ी रानी सहल कंवर और हाडी रानी भान कंवर वीरांगनाओं में आती है। जिन्होंने अपने पति को रण में भेजने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। बात जब स्वाभिमान की आती है तो उमा दे कभी नहीं बुलाई जा सकती। वही स्वामी भक्ति का पर्याय भी राजस्थान ही माना जाता है ।जहां आल्हा ऊदल, जयमल की वीरता तो पन्नाधाय के त्याग को हम नहीं भूल सकते ।वही भक्ति की बात आती है । तब मीराबाई और करमा बाई को कैसे भुला जा सकता है? राजस्थान का केसरिया ,जोहर जो मिलकर साका  बनता है। वह प्रतीक है यहां के शौर्य ,वीरता और साहस का। हमीर देव की पत्नी रानी रंगा देवी और राजा रतन सिंह की रानी पद्मावती के जौहर को कोई कैसे भूल सकता है?

खानपान
राजस्थान अपने रहन सहन के साथ-साथ खानपान के लिए भी दुनिया में प्रसिद्ध है ।यहां के विभिन्न उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है जिसमें बीकानेरी भुजिया प्रसिद्ध है। वैसे जब राजस्थान के व्यंजनों का नाम आता है तब दाल ,बाटी ,चूरमा और लहसुन की चटनी सुनते ही मुंह में पानी आना स्वाभाविक है। देखा जाए तो राजस्थान का परंपरागत भोजन आज दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है ।2018 में शुरू हुआ मिलेट्स अभियान संकल्प से सिद्धि की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इसी का परिणाम है कि यूएन ने 2023 को मिलेट्स वर्ष घोषित किया है ।यह सम्मान है हमारे पूर्वजों के आहार विहार का। हमारा भोजन हमेशा से अपनी अलग पहचान के साथ दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ है ।मोटा अनाज जिसे आज सभी खाना पसंद कर रहे हैं। वह हमारे पूर्वजों की ही  देन है। पोषण , पौष्टिकता  से भरपूर इस भोजन को अपनी थाली में स्थान देना होगा। रोग से पूर्व आरोग्य हमारे आयुर्वेद का वरदान है ।इसी को देखते हुए 16 नवंबर को राष्ट्रीय ज्वार बाजरा दिवस घोषित किया गया । जो सम्मान है हमारे अन्न का।

पर्यावरण प्रेमी
राजस्थान और राजस्थान वासी हमेशा से प्रकृति और पर्यावरण प्रेमी रहे हैं ।इसी का साक्षात उदाहरण है खेजड़ली का आंदोलन जिसमें अमृता बिश्नोई ने  और उनके साथियों ने अपना बलिदान दिया वही जांभोजी महाराज के वचन जिसमें वे कहते हैं ।सिर साठे रूख़ रहे तो भी सस्ता जान ।अर्थात सिर कट जाने पर भी अगर पेड़ जिंदा रहे। तो यह सबसे बड़ी बात होती है।
ऐसे अनेक उदाहरणों से राजस्थान का इतिहास भरा हुआ है जिसमें पर्यावरण के प्रति हमारा प्रेम और समर्पण प्रगट होता है। आज के संदर्भ में भी हमें इसे जन जागरूकता में लाना होगा। बढ़ता रेगिस्तान इस बात का परिचायक है कि समय रहते इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

राजस्थान  लोक संस्कृति, लोक देवता, लोकगीत
राजस्थान की लोक संस्कृति विविधताओं से परिपूर्ण है जहां कोस कोस पर वाणी और पानी दोनों बदलते हैं ऐसी अद्भुत लोक संस्कृति कहीं और दिखना मुश्किल है यहां के वस्त्र आभूषण जूतियां प्रिंट सभी कुछ अपनी अलग पहचान किए हैं वही राजस्थान की भूमि लोक देवताओं और देवियों की भी भूमि है जहां पंच पीर सर्वधर्म समभाव की भावना से पूजनीय है वही स्थानीय कुलदेवी इष्ट देवी के प्रसिद्ध प्रांगण है जिनकी प्रसिद्धि और आस्था राजस्थान से बाहर भी है।

प्रवासी राजस्थानी
जब कभी कहीं राजस्थान शब्द का नाम आता है तब याद किया जाता है । हां की वीरता ,शौर्य और बलिदान को यही नहीं यहां के लोगों की एक पहचान यह भी है कि यह कर्म को प्रधानता देते हैं। इसी कर्म की प्रधानता के बल पर आज दुनिया में ऐसा कोई विरला ही देश होगा जहां राजस्थानी ना दिखाई दे राजस्थानी होने ना केवल बाहर जाकर राजस्थान का नाम रोशन किया बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि की। सच तो यह है कि राजस्थान की भूमि वीर, वीरांगनाओं, रणबांकुरों के साथ-साथ अनेक कर्म वीरों की भूमि है।

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