जयपुर। Rajasthan Loksabha Chunav 2024 भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। भाजपा 25 सीटों पर जीतकर ही नाक बचा सकती है और राजस्थान में मोदी का जलवा होने पर पूरी तरह मुहर लगा सकती है। वहीं, कांग्रेस विधानसभा चुनाव की हार का बदला लेने के लिए छटपटा रही है। येन केन प्रकारेण कांग्रेस भाजपा को राजस्थान में तीसरी बार क्लीन स्वीप नहीं करने देने के लिए कटिबद्ध है। हालांकि, ये बात दूसरी है कि दोनों ही पार्टियों में भितरघात से बचना मुश्किल नजर आ रहा है। कांग्रेस में अशोक गहलोत ज्यादातर समय अपने बेटे वैभव गहलोत की जालोर सिरोही को दे रहे हैं तो सचिन पायलट गति नहीं पकड़ पा रहे हैं। भाजपा में वसुंधरा राजे अपने बेटे के झालावाड-बारां लोकसभा सीट पर ही सिमट कर रह गई है। इस चुनाव परिणाम से दोनों ही पार्टियों के कई प्रमुख नेताओं का या तो ग्राफ बढ़ जाएगा, या फिर वो पूरी तरह से राजनीति के नेपथ्य में चले जाएंगे।
राजस्थान में भाजपा पूरी तरह नरेन्द्र मोदी पर निर्भर है। भाजपाइयों का मानना है कि मोदी ही पार लगाएंगे। इस बार चुनाव में मुख्यमंत्री भजनलाल और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी की भी अग्नि परीक्षा है। चुनाव के बाद परिणाम इनका भी मूल्यांकन करेंगे। सीपी जोशी चित्तौड़ से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन हाल ही विधानसभा चुनाव में वे चित्तौडग़ढ़ सीट से ही भाजपा को जीत नहीं दिला सके थे। इस सीट पर सीपी जोशी के लिए अंदरखाने घात लगने की संभावना सबसे ज्यादा नजर आ रही है। भाजपा नीत सरकार के चार केन्द्रीय मंत्री भी चुनाव मैदान में उतरे हैं। केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जोधपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।
अशोक गहलोत का यह गृह जिला है और शेखावत से उनकी राजनीतिक शत्रुता है। ऐसे में गहलोत किसी भी सूरत में शेखावत को रोकने की कोशिश करेंगे। बीकानेर से केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का मुकाबला कांग्रेस के गोविन्द मेघवाल से है। दोनों एक ही जाति के हैं। कांग्रेस केन्द्रीय मंत्रियों के खिलाफ पुख्ता प्लान बनाकर मैदान में हैं। कितना सफल होते हैं यह तो चार जून को ही पता चलेगा।
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चूरू सीट भाजपा के लिए मूंछ का बाल बन चुकी। चूरू में कस्वां परिवार का कई दशकों से दबदबा है। वरिष्ठ नेता राजेन्द्र राठौड़ भी इसी क्षेत्र से हैं। दोनों ही परिवारों में 36 का आंकड़ा है। हाल ही राजेन्द्र राठौड़ को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, जिसका ठीकरा उन्होंने मौजूदा सांसद राहुल कस्वां पर फोड़ा। आपसी लड़ाई के चलते इस बार राहुल कस्वां को भाजपा से टिकट नहीं लेने दिया गया। कस्वां इस पर चुप नहीं रहे और भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम मैदान में कूद गए। कस्वां के साथ कौम पूरी तरह सेजुड़ गई। इस सीट की अहमियत इसी से जानी जा सकती है कि नरेन्द्र मोदी की शुरूआती दौर की सभा चूरू में करवाई गई।
भाजपा ने इस बार 11 मौजूदा सांसदों के टिकट काटकर उनकी जगह नए लोगों को मौका दिया है, ताकि एंटी इनकंबेंसी से बचा जा सके। वैसे तो केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव को अलवर से उतारा गया है, लेकिन उन्हें कांग्रेस की भितरघात के कारण ज्यादा जोर आने की संभावना नहीं है। बाडमेर से केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को मैदान में उतार तो दिया गया, लेकिन निर्दलीय रविन्द्र सिंह भाटी ने उनकी नींदें उड़ा दी। कांग्रेस ने भी आरएलपी से आए उम्मेदाराम पर दाव खेला है, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी वो अभी रफ्तार नहीं पकड़ पा रहे हैं। सट्टा बाजार के कारण भी भाजपा के होश उड़े हुए हैं, इसे देखते हुए योगी आदित्यनाथ और बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री को प्रचार में उतारने का फैसला किया।
इसके अलावा टोंक-सवाई माधोपुर, करोली-धोलपुर, भरतपुर, दौसा सीट पर सचिन पायलट कांग्रेस को जिताने में लगे हैं। इन क्षेत्रों पर पायलट की पकड़ मजबूत है। भरतपुर में जाट आरक्षण को लेकर अभी कौम की बात नहीं बनी है, हालांकि चुनाव के रूख के आधार पर वो आगे के आंदोलन की रणनीति तय करेंगे। करोली सीट से भाजपा ने नए पर दाव खेला है, इसलिए भी मुश्किलें आ रही है।
डा. उरुक्रम शर्मा
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