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Rajkumar Roat : डूंगरपुर। राजस्थान के डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर भारत आदिवासी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। इस सीट पर बाप पार्टी और राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) के दबदबे को तोड़ना भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। यहां कांग्रसे से भी ज्यादा भाजपा कमजोर स्थिति में है, क्योंकि रोजकुमार रोत से पहले इस सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा था।
डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में भारत आदिवासी पार्टी ने बीजेपी और कांग्रेस की सांसें फूला दी है। यहां बाप पार्टी के दबदबे को तोड़ना दोनों पार्टियों के लिए चुनौती बना हुआ है। यह सीट लगातार दो बार से आदिवासी बाहुल्य वाली पार्टियों बीटीपी और बीएपी के नेता राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) के कब्जे में रही है। यहां पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां आदिवासियों के वोटों में सेंध लगाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। वहीं बाप पार्टी अपने वोटर्स को और मजबूत करने में जुटी है। राजस्थान उपचुनावों में चौरासी सीट पर सभी की निगाहें टिकी है, चौरासी सीट भारतीय आदिवासी पार्टी के विधायक राजकुमार रोत के बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद चुने जाने के कारण खाली हुई है। लिहाजा बाप इसे किसी हालत में अपने हाथ जानें नहीं देना चाहती है। गुजरात से सटे राजस्थान के इस इलाके में आदिवासी मतदाताओं की बहुलता है. बीजेपी और कांग्रेस की लंबे समय से इस सीट पर निगाहें हैं लेकिन वह आदिवासी वोटों में अभी तक पूरी तरह से सेंध नहीं लगा पाई है।
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चौरासी सीट पर 13 नवंबर को मतदान होना है। इससे पहले होम वोटिंग शुरू हो गई है। 8 नवंबर तक होम वोटिंग के दौरान 319 बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाता वोट करेंगे। इस चुनाव में राजनीतिक दलों और निर्दलीय सहित 10 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। इनमें मुख्य मुकाबला बीएपी, कांग्रेस ओर बीजेपी के बीच देखने को मिल रहा है। बीएपी के अनिल कटारा, कांग्रेस के महेश रोत और बीजेपी के कारीलाल ननोमा ने प्रचार अभियान में पूरी ताकत झोंक दी है। उम्मीदवार गांव- गांव जाकर दिनभर में एक दर्जन से अधिक चुनावी सभाएं कर रहे मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं।
इस सीट का इतिहास देखें तो सामने आता है कि यहां अब तक 12 बार हुए चुनावों में से आधी बार कांग्रेस जीती है. कभी यह पहले कांग्रेस की परंपरागत सीट रही थी. चौरासी विधानसभा सीट पर भाजपा को 1967 से लेकर 24 साल बाद 1990 में पहली बार जीत मिली थी. उस समय भाजपा से जीवराम कटारा ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2003 में इसी सीट पर जीवराम कटारा के बेटे सुशील कटारा को मौका मिला और जीते. हालांकि वे 2008 में हार गए. लेकिन 2013 में सुशील कटारा को फिर से जीत मिली. ऐसे में 3 बार बीजेपी जीती लेकिन ये सीट पिता पुत्र के पास ही रही। 2018 से यह सीट कांग्रेस और बीजेपी से छीन गई. इस पर सीट पर राजकुमार रोत 2018 में बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) और उसके बाद 2023 में भारत आदिवासी पार्टी से विधायक बने. इस दौरान रोत ने आदिवासी समाज के साथ मिलकर यहां अपनी नई पार्टी बीएपी को काफी मजबूत कर लिया। रौत (Rajkumar Roat) ने साल 2023 का विधानसभा चुनाव इस सीट से 69 हजार के बड़े अंतर से चुनाव जीता था। इससे पहले कभी किसी ने इतने बड़े मार्जिन से यहां जीत हासिल नहीं की थी, लिहाजा यहां कांग्रेस और बीजेपी बुरी तरह से फंसी हुई है।
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