आजकल हर त्योहार दो दिन मनाने की व्यवस्था दे दी जाती है। एकादशी दो, होली दो, दिवाली दो। इस तरह हमारे अनेक त्यौहार ज्योतिष की आड़ लेकर विभिन्न धर्माचार्य एवं विद्वानों द्वारा जनता को भ्रमित करने का काम किया जा रहा है। एवं अन्य धर्मों के सामने हंसी का पात्र बनाकर समाज मे असमंजस की स्तिथिया पैदा की जा रही हैं। जब कि ये हमारे उल्लास के पर्व हैं। और हमारे पवित्र शास्त्र यथा वेद उपनिषद और गीता आदि को बिल्कुल दरकिनार कर जैसे भुला दिया गया है एवं जनता में भय की स्थापना कर दी गई है।
ऐसे ही हालात रूस में भी दसवीं शताब्दी में हुए थे। रूस में दसवीं शताब्दी तक हिंदू धर्म का बोलबाला था, परंतु इस पोंगापंथी के चलते वहां का राजा अत्यंत व्यथित हो गया, और उसने मुस्लिम और ईसाई धर्माचार्यों को बुलाकर उनसे चर्चा कर दसवीं शताब्दी के बाद रूस में ईसाई धर्म का प्रचलन करवा दिया। वही हालत अब यहां भी परिलक्षित हो रहे हैं।इस साल भी रक्षाबंधन पर फिर से भद्रा का डर पैदा कर दिया गया है।
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ब्रह्मयामल ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है,कि जो रात्रि की लगी हुई भद्रा दिन में भी हो, और दिन में लगी भद्रा रात में हो तो वह शुभ कार्यों में त्यागने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा पुरातन आचार्य कहते हैं। ब्रह्मयामले दिन भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा, यथा दिवान त्याज्या शुभ कार्येषु प्राहुरेवं पुरातनता।ऐसा ब्रह्मयामल ग्रंथ में लिखा है। इसी तरह निर्णय सिंधु के प्रमाण के अनुसार 30 अगस्त 2023 को दिन में राखी बांधना शुभ है, क्योंकि उत्तम त्यौहार का दिन अबूझ होता है। हम विभिन्न कार्य अबूझ मुहूर्त में अबूझ दिन करते आए हैं, यह हमारी सनातन परंपराएं हैं जिसमें कि आखातीज, दशहरा, फुलेरा दोज, धनतेरस आदि शामिल है। इसी तरह से हमने सारे ग्रंथो में श्रीमदभागवत गीता को सर्वोच्च माना है, परंतु हमने वर्तमान संदर्भ में गीता को बिल्कुल ही भुला दिया है। कृष्ण की शिक्षाओं से हम विमुख हो गए हैं। जबकि पूरा संसार गीता के अनुसार आचरण कर रहा है।
श्रीमद् भागवत गीता के 9वें अध्याय के 27 और 28वें श्लोक में भगवान स्वयं कह रहे हैं कि, तू जो भी कुछ करता है वह मुझे अर्पण कर दे, इसे तू सभी पापों और विहित कर्मों से मुक्त हो जाएगा, और मुझे प्राप्त हो जाएगा। इसी तरह से श्रीमद् भागवत गीता के 18वें अध्याय के 65 वे श्लोक में वह स्वयं प्रतिज्ञा करते हुए कह रहे हैं, कि तू मुझ में मन वाला हो जा, मेरा भक्त हो जा, मैं प्रतिज्ञा करता हूं, कि तू मुझे ही प्राप्त हो जाएगा। इसी तरह से 18वें अध्याय के 66वें श्लोक में भी स्पष्ट कहा है कि तू सब धर्मो का आश्रय लेकर छोड़कर मेरी शरण में आजा, मैं तुझे सारे पापों से मुक्त कर दूंगा। यानी कि यदि हम ईश्वर की पूर्ण शरण में होकर कोई भी कार्य करेंगे, तो हमारे द्वारा किये गए सभी कर्मों, सारे पापों का भार भी भगवान स्वयम ले लेंगे,यह गीता में स्पष्टतः भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अनेक स्थानों पर कहा है।
परंतु हम वेद उपनिषद गीता को भूलकर केवल अनर्गल चीजों पर जा रहे हैं, जबकि यदि राखी बांधनी है तो सबसे पहले भगवान को राखी अर्पण कर दी जाए, और भगवान की शरण में होकर यदि हम रक्षाबंधन का त्यौहार मनाते हैं तो गीता के निर्णयानुसार क्या हमारा कहीं कुछ अनर्थ हो सकता है?? पर गीता के उपदेश पूरी तरह भुला दिए जा रहे हैं, इसका कहीं कोई उल्लेख ही नही है, जानकी गीता में हमारी सभी जिज्ञासाओं के जवाब दिए गए हैं, जीना कैसे है यह सिखाया गया है। अब भाई बहन के प्रेम को भी घंटो में बांधने जी चेष्टा की जा रही है। जबकि शास्त्रो का मत तो यहां तक है कि- आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति!
इसी तरह से भारत के ज्योतिष के प्राचीन विद्वान वराह मिहिर द्वारा विभिन्न अबूझ मुहूर्त दिए गए हैं, इनके मुहूर्त के अनुसार इसमें ना चंद्रबल देखना है न,ग्रह बल देखना है, न अन्य योग देखने की जरूरत है, ना तिथि देखनी है न नक्षत्र देखना है, ना योग देखना है, ना करण देखना है, ना शिवयोगआज्ञा देखनी है, न वार देखना है, ना ग्रहों को देखना है,ना व्यतिपात देखना है, ना विष्टि देखनी है, ना दिशाशूल देखना है, ना चंद्रमा देखने की आवश्यकता है, न पंचांग देखने की आवश्यकता ही है। इनको अबूझ मुहूर्त कहा गया है। परंतु हमें अब इनका भी ज्ञान नहीं रहा है।।
वराह मिहिर के मुहूर्त के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा यदि बुधवार को है तो दिन में 3.36 से 4.24 तक बड़े आराम से अबूझ मुहूर्त में आप राखी बांध सकते हैं। अतः आप सभी से आग्रह है कि, भ्रम से बाहर निकलें, असलियत जानें, और भगवान की शरण होकर उल्लास से पर्व मनाएं। बाकि तो भगवान कृष्ण की गीता की आज्ञा के अनुसार तो जो भी कार्य उनका स्मरण कर उनकी शरण मे होकर करेंगे, वह उन्ही को प्राप्त होगा। भगवान श्री कृष्ण के पास राखी का एक धागा भी रखते ही भद्रा सुभद्रा में बदल जाएगी। अतः उनकी शरण ग्रहण करे। और आनन्द से राखी मनाये।
अर्जुन ने तो उनके शरण होकर महाभारत युद्ध ही जीत लिया था, बाकी हरि इच्छा!
शुभम भवतु कल्याणं
पंकज ओझा RAS
सनातनी जिज्ञासु एवम गीता मनीषी
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