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Ravindra Bhati News : जयपुर। राजस्थान में इस समय 5 हजार वर्ष तक जीवित रहने वाले खेजड़ी वृक्ष बचाने को लेकर तगड़ा माहौल बना हुआ है और तगड़ा माहौल बने भी क्यूं नहीं। विधायक रविंद्र सिंह भाटी और पश्चिमी राजस्थान के लाखों लोग उठा रहे हैं, इन लोगों के लिए खेजड़ी वृक्ष प्रकृति का बड़ा वरदान होने के साथ ही कल्पवृक्ष की तरह है। इतिहास गवाह है कि इस खेजड़ी वृक्ष को बचाने के लिए सैंकड़ों लोग अपने प्राणों की आहुतियां दे चुके हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि खेजड़ी कैसे एक चमत्कारी और जीवनदाता है और उसें बचाना कितना जरूरी है।
रविंद्र सिंह भाटी समेत पश्चिमी राजस्थान के लोग जिस खेजड़ी वृक्ष को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। उसका इतिहास भी जान लेना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि लोगों ने इसें बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए है, लेकिन इसें कटने नहीं दिया है। इसें 1983 में राजस्थान राजकीय वृक्ष भी घोषित किया गया था। यह पेड़ पश्चिमी राजस्थान व शेखावाटी क्षेत्र में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। जिसें बचाने के लिए सैंकड़ों लोग अपनी आहुतियां दे चुके हैं। आइए जानिए क्या है पूरा मामाला?
खेजड़ी वृक्ष बचाने के लिए 12 सितंबर, 1730 में जबरदस्त आंदोलन भी हुआ था। इस आंदोलन में अमृता देवी के नेतृत्व में 363 बिश्नोई समाज के महिला-पुरुषों और बच्चों ने खेजड़ी को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया था। इस घटना को खेजड़ली नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है। यह आंदोलन राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में हुआ था। अब आप समझ गए होंगे कि आखिर खेजड़ी लोगों को अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा है, यह लोगों के लिए पालनहार और जीवनदाता जैसा भी है, क्योंकि अकाल के समय इसी पेड़ ने लोगों का पेट भरा था। सन् 1899 में भयंकर छप्पनिया अकाल पड़ा था, तब रेगिस्तान के लोग खेजड़ी पेड़ के छिलके खाकर ही जीवित रहे थे और उस बेहद कठिन समय में यह लोगों व जानवरों के लिए जीवनदाता के रूप में साबित हुआ। खेजड़ी वृक्ष के धार्मिक महत्व की बात करें तो इसमें भगवान शिव का वास माना गया है, इसलिए इस पेड़ को जड़ से काटना पाप माना जाता है।
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अब खेजड़ी वृक्ष के मानव जीवन में आर्थिक महत्व की बात करें तो, इससें जलाने की लकड़ी मिलने के साथ ही पशुओं के लिए भरपूर चारा भी मिलता है। जिसें लूंग कहते हैं, लूंग को ऊंट और बकरियां बड़े चाव से खोते हैं। यह पेड़ मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाए रखने और अच्छी उपज सुनिश्चित करने में भी मदद करता है। खेजड़ी के फूल मधुमक्खियों के लिए एक बेहतरीन चारा हैं। गर्मियों के मौसम में तपते रेगिस्तान में जानवरों व लोगों के लिए धूप से बचने का एकमात्र सहारा खेजड़ी ही है, क्योंकि यहीं पेड़ छाया देता है।
खेजड़ वृक्ष की हर चीज बड़ी काम की है, इसकी छाल, पत्तियां, फल, फूल और बीज सभी औषधीय गुणों से भरे होते हैं। जिनका उपयोग खांसी, चर्म रोग, पाचन तंत्र मजबूत करने, पेट दर्द, अपच, कब्ज़ और बॉडी का इम्यूनिटी बढ़ाने की दवाइयां बनाने में किया जाता है, अब तो आप समझ गए होंगे कि खेजड़ी मात्र एक वृक्ष ही नहीं, बल्कि प्रकृति का एक वरदान है।
बता दें कि खेजड़ी वृक्ष काटने पर सजा का प्रावधान भी है, जी हां इसके लिए राजस्थान टिनेंसी एक्ट 1955 बना हुआ है। जिसकी धारा 80 से 86 तक एकबार खेजड़ी वृक्ष काटने पर 100 रुपए का जुर्माना है। दूसरी बार काटने पर 200 सौ रुपए का जुर्माना लगता है….हालांकि यह जुर्माना काफी नहीं। इसें बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि खेजड़ी काटने से पहले लोग 100 बार सोचें।
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