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श्रीनाथजी ने अजमेर में लिया था 42 दिन का विश्राम, ब्रज से मेवड़ा पहुंचे थे प्रभु

  • नाथद्वारा मे विराजित हुए भगवान
  • भक्त को दिए दर्शन

अजमेर। भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को लेकर तैयारी जोर शेर से की जा रही है। भगवान श्री कृष्ण के पद्रेश में कई प्राचीन मंदिर है। अजमेर जिले में स्थित पितांबर की गाल मे भगवान श्रीनाथजी और नवनीत प्रिया की पवित्र बैठक पर भी हर वर्ष जन्माष्टमी पर श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। श्रीनाथजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। श्रीनाथजी की प्रतिमा को सन 1727 में मेवाड़ लाया गया था। मुगल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद हिंदू मंदिर तथा वहां रखी प्रतिमाओं को तोड़ा जा रहा था।

 

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श्रीनाथजी के रथ का पहिया थमा

पितांबर की गाल एक ऐसा स्थान है जहां भगवान श्रीनाथजी के रथ का पहिया थम गया था। जिसके बाद भगवान श्रीनाथजी ने यहा पड़ाव डाला और 42 दिनों तक विश्राम किया। श्रीनाथ जी की बैठक आज भी वहां मौजूद है। पीतांबर की गाल किशनगढ़ नसीराबद हाईवे पर सिलोरा ग्राम पंचायत के पितांबरपुर गांव की पहाड़ी की तलहटी के बीच घने वन क्षेत्र में स्थित है। श्रीनाथजी के पड़ाव के कारण यह तीर्थस्थल बन गया। पीतांबर की गाल मे कदम और पारस के कई पेड़ मौजूद है। श्रीनाथजी के आगमन से पहले यहा संत पीतांबर निवास किया करते थे। कहते है पीतांबर भगवान कृष्ण बहुत बड़े भक्त थे यही कारण था की भगवान ने लीला दिखाते हुए यहा पड़ाव लिया।

 

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हिंदू मंदिरो पर हुआ हमला

मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेंद्र शर्मा बताते है 1727 में मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा हिंदू मंदिरो पर हमला किया गया। इनमे से एक पितांबर की गाल भी शामिल थी। पीतांबर की गाल मे श्रीनाथजी ने सातवां पड़ाव लिया था। भगवान श्रीनाथ जी यहा बसंत पंचमी से लेकर चेत्र प्रतिपिदा तक रूके थे। इस दौरान श्रीनाथजी अपने के साथ यहा होली भी खेल कर गऐ। कहते है पड़ावों के दौरान श्रीनाथ जी गंगाबाई से ही बात किया करते थे।

नैसर्गिक सुंदरता आज भी कायम

गंगाबाई ने श्रीनाथजी से रथ रोकने का कारण पूछा तो कहा यहां कदम का पेड़ और जल का स्त्रोत भी है। और संत पीतांबर भी यही रहते है। पीतांबर बाबा को दर्शन देने के उद्देश्य से ही श्रीनाथ जी ने पड़ाव लिया। श्रीनाथजी जतीपुरा, पुछड़ी का लोठा, सतगरा, आगरा, ग्वालियर, कोटा, पीताम्बर की गाल, जोधपुर, घसियार तथा उसके बाद नाथद्वारा में विराजित हुए। जन्माष्टमी पर पितांबर की गाल में धार्मिक आयोजन किए जाते है। यहां की नैसर्गिक सुंदरता आज भी कायम है।

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