जयपुर। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि प्रत्यर्पण निदेशालय यानी ईडी को आरोपी की गिरफ्तारी के समय लिखित में गिरफ्तारी का आधार बताना चाहिए। ईडी एक अहम जांच एजेंसी है। उस पर जिम्मेदारी है कि आर्थिक अपराध को रोके। ईडी के तमाम एक्शन में पारदर्शिता दिखनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, यह जरूरी है कि आरोपी को गिरफ्तारी के बारे में बताया जाए कि उसकी गिरफ्तारी का आधार क्या है। यह लिखित में बताना जरूरी है। इसके लिए कोई अपवाद नहीं हो सकता। गुड़गांव की एक रियल इस्टेट कंपनी के डायरेक्टर पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है।
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जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने कहा, ‘न्यायालय को लगता है कि यह जरूरी है। इसलिए आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले, उसे लिखित में वजह बतानी चाहिए। इसमें किसी भी तरह की छूट नहीं है’ न्यायालय ने एजेंसी को पारदर्शी और साफ-सुथरे तरीके से काम करने का भी निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट रियल एस्टेट ग्रुप M3M के डायरेक्टर पंकज बंसल और बसंत बंसल की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में दोनों ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उसे आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें न्यायालय ने पीएमएलए के तहत उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि गिरफ्तारी के दौरान दोनों आरोपियों को सिर्फ मौखिक तौर पर आरोपों की जानकारी दी गई थी और लिखित में कुछ नहीं बताया गया था तो न्यायालय ने नाराजगी जाहिर की। कहा कि इससे मनमानेपन की बू आती है। कोर्ट ने कहा कि पूरी क्रोनोलॉजी पर नजर डालें तो इससे पता लगता है कि ईडी कितने खराब तरीके से काम कर रही है और उसकी कार्य प्रणाली का भी पता लगता।
लिखित में कारण न बताना संविधान का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को अवैध ठहराते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने सिर्फ मौखिक तौर पर गिरफ्तारी की वजह बताई। यह संविधान के आर्टिकल 22 (1) और पीएमएलए एक्ट के 19 (1) का भी उल्लंघन करता है। बेंच ने कहा कि ईडी देश की प्रीमियम जांच एजेंसी है, ऐसे में उसके कंधों पर बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां हैं। इसलिए हर कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही भी दिखनी चाहिए।
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