चुरू। शेखावटी के चुरू जिले में स्थित रतनगढ़ का सियासी इतिहास अपने आप में खासा महत्व रखता है। रतनगढ़ विधानसभा में तीन नगरपालिका शामिल है। जिसमें रतनगढ़, राजलदेसर तथा छापर है। रतनगढ़ विधानसभा की रातनीति पर मतदाताओं का खासा बोलबाला रहता है। रतनगढ़ की स्थापना बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह के द्वारा की गई थी और इसके साथ ही गीताप्रेस के संस्थापक भाईजी हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमि के नाम से भी इसे जाना जाता है।
ब्राह्मण चेहरे पर ही दांव
रतनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण बाहुल्य होने के कारण भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टीया ब्राह्मण चेहरे पर ही दांव खेलती है। ब्राह्मण पर दांव खेलने के कारण जाट प्रत्याशी बागी होकर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खेल देते है। ऐसे में कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। हालांकी चुनावों में ओबीसी, एससी, अल्पंख्यक तथा राजपूत मतदाता भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करते है।
भाजपा इस सीट पर परंपरागत जीत
रतनगढ़ में पिछलेक चुनाव के दौरान 35 वार्ड हुआ करते थे, जो अब 45 हो चुके है। लगातार 25 वर्षो से कांग्रेस लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन अपना विधायक नहीं बना सकी है। जिसका सबसे बड़ा कारण अपनों की बगावत है। रमनगढ़ सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। भाजपा इस सीट पर परंपरागत रूप से जीतती हुई आ रही है।
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भाजपा अंतर्कलह का शिकार
भाजपा के इस अभेद्य किले को कांग्रेस इस बार भेदने की पूरी कोशिश करेंगी। ऐसे में विधानसभा चुनाव में बदलते समीकरण भाजपा के लिए चिंताजनक है। जिसका मुख्य कारण विधायक की निष्क्रयता है। जिसका हर्जाना भाजपा को चुनाव के दौरान भुगतना पड़ सकता है। भाजपा अंतर्कलह का शिकार होती जा रही जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। भाजपा की कार्यशैली से नाराज होकर एक बड़ा खेमा भाजपा से टूटकर अलग हो गया है।