- सियासी दलों की दशा तय करती है बड़ी चौपड़ की दिशाएं
- सत्ता पक्ष और विपक्ष बखुबी निभाते है परंपरा
जयपुर। 15 अगस्त 1947 ये वो दिन था जिस दिन देशवासियों ने आजाद भारत की सुबह देखी थी। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रदेश की राजधानी जयपुर की बड़ी चौपड़ अनूठी सियासत की साक्षी बनती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही यह अपनी परंपरा को बखुबी निभाते है। बड़ी चौपड़ जहां 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी सत्ता पक्ष और विपक्ष एक साथ नजर आते है। जहां फर्क होता है तो बस दिशाओं का। बड़ी चौपड़ पर सत्ता पक्ष पूर्व मुखी होकर तो विपक्ष दक्षिण मुखी होकर तिरंगा फहराता है।
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यह रवायत बन चुकी है गुलाबी नगरी की तहजीब का हिस्सा
बड़ी चौपड़ पर अनोखा नजारा देखने को मिलता है। सत्ता पक्ष के मुख्यमंत्री तिरंगा फहराते है तो वहीं विपक्ष की और से नेता प्रतिपक्ष इस परंपरा को निभाते है। यह परंपरा आज से नहीं बल्की 1947 से चली आ रही है। 1947 में मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल के द्वारा झंडारोहण किया गया था। उसके बाद कांग्रेस के नेता गोकुल भाई भट्ट की और से इस परंपरा को आगे बढ़ाया गया। यह रवायत गुलाबी नगरी की तहजीब का हिस्सा बन चुकी है। जिस दिशा में सीएम तिरंगा फहराते है उसकी विपरीत दिशा में विपक्ष की और से तिरंगा लहराया जाता है।
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अनोखी सियासत की साक्षी बनती है बड़ी चौपड़
हर साल जयपुर का ह्दय कही जानी वाली बड़ी चौपड़ आजादी के पर्व पर अनोखी सियासत की साक्षी बनती है। बड़ी चौपड़ को माणक चौक चौपड़ भी कहा जाता है। बड़ी चौपड़ राजनीति को केंद्र बिंदु हुआ करता था। बड़ी चौपड़ से मोहनलाल सुखाड़िया से जुड़ा एक किस्सा खुब प्रचलित है। मोहनलाल सुखाड़िया ने जब झंडारोहण किया तो उस दौरान विपक्ष के नेता कुंभाराम आ रहे थे। दोनों ने झंडारोहण कर एक दूसरे को मिठाई खिलाई। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान युवाओं की और से बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करना शुरू किया गया था।