- मीणा हाईकोर्ट के जज होते हैं सांसद किरोड़ीलाल मीणा
- पीएम मोदी और राहुल गांधी भी लगा चुके हाजिरी
- काले कोट में नहीं होते वकील
- चिलम फूंकते बुजर्ग करते हैं फैसला
आदिवासी समुदाय के लोग समाज के पुरातन ज्ञान को सेलिब्रेट करने के लिए 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाते है। राजस्थान में विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी लोग इसे अपने-अपने तरीके से मनाते हैं। राजस्थान में एक अनोखा हाईकोर्ट है जिसकी कमान राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा के हाथ में होती है। यहां के अनोखे किस्से हैं जिन्हें जानकर आप हैरान होंगे। तो चलिए जानतें है इस स्पेशल हाईकोर्ट की कहानी के बारे में-
बड़े-बड़े नेता भी लगाते हैं हाजिरी
दौसा जिले में स्थित मीणा हाईकोर्ट में पिछले 5 सालों से लगातार विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र नांगल प्यारी वास में स्थित इस हाईकोर्ट की बड़ी दिलचस्प कहानी है। यहां पर सासंद किरोड़ीलाल मीणा सहित कई बड़े नेता हाजिरी लगा चुके हैं। किरोड़ीलाल मीणा ने यहीं से कई सारे आंदोलन को मजबूती के साथ शुरू किया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान एक विशाल जनसभा का आयोजन कर चुके हैं। खबरों के मुताबिक कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान यहां रूके थे। ऐसा कहा जाता है कि मीणा हाईकोर्ट से अगर कोई रैली या आंदोलन शुरू किया जाता है तो उसका संदेश पूरे प्रदेश में जाता है।
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पूरी हुई तैयारियां
हर साल की तरह इस बार भी विश्व आदिवासी दिवस को धूमधाम से मनाया जाएगा। इसके लिए मीणा हाईकोर्ट को रोशनी से सजाया गया है। आज के कार्यक्रम की सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है। किरोड़ीलाल मीणा के मीडिया प्रभारी ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि हमेशा की तरह किरोड़ीलाल मीणा हाईकोर्ट पहुंचेंगे। इस मौके पर 2 लाख से भी अधिक लोगों के इसमें शामिल होने की संभावना है। इस दौरान आदिवासी लड़कियों की ओर से आदिवासी नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा।
चिलम फूंकते मीणा समाज के बुजुर्ग होते है इसके जज
हाईकोर्ट का नाम आते है ही दिमाग में छवि बनती है काले कोट वाले जज और वकील की। कोर्ट के अंदर जाने से हर कोई डरता है। कोई भी नहीं चाहता है कि उसे जिंदगी में ऐसी कोई परेशानी हो कि जिसकी वजह से उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ लेकिन दौसा जिले का मीणा हाईकोर्ट बहुत ही विचित्र है। यहां पर फैसला काले कोट वाले जज नहीं करते और ना ही वकील किसी केस की पैरवी करता है बल्कि चिलम फूंकते मीणा समाज के बुजुर्ग लोग ही यहां फैसला लेते हैं।
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मीणा हाईकोर्ट बनने की कहानी
बात 1993 की है जब एक विवाहिता ने मां, उसके प्रेमी चाचा के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी थी। इसकी नांगल राजावतथाने में एफआईआर दर्ज हुई लेकिन ग्रामीण इससे संतुष्ट नहीं हुए। इसके बाद डियावास गांव में 11 गांवों की महापंचायत में पंच पटेलों ने महिला और उसके प्रेमी को हत्या को दोषी मानते हुए दोनों को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाने की सजा दी। इसके कारण पुलिस ने दौसा, नांगल राजावतान पुलिस ने प्यारीवास से पंचों को गिरफ्तार कर लिया था। इन पंच पटेलों की जमानत के लिए ग्रामीणों न्यायालय के चक्कर लगाएं लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसेक बाद किरोड़ीलाल मीणा की मदद से ग्रामीणों ने दौसा कूच का आह्वान किया। कहा कि हमें बिना जमानत के पंच पटेल वापस चाहिए। तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने सभी पंच पटेलों को बिना जमानत के छोड़ दिया। तब से ही नांगल प्यारी वास को मीणा हाईकोर्ट के नाम से जाना जाता है।