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Ramgarh by-election result : रामगढ़। राजस्थान उपुचनाव का परिणाम आ चुका है, रामगढ़ से बीजेपी के सुखवंत सिंह ने कांग्रेस के प्रत्याशी आर्यन जुबेर खान को हराकर एक बड़ी जीत दर्ज की। सुखवंत सिंह ने कांग्रेस के आर्यन जुबेर को 13,636 वोटों से हराया है और इस जीत ने भाजपा को राज्य में एक और महत्वपूर्ण सीट दिलाई। इसी बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर रामगढ़ में सहानुभूति कार्ड क्यों नहीं चला। आखिर क्यो यहां से दिवंगत विधायक जुबैर खान के बेटे आर्यन हार गए?
सबसे पहले बात करते हैं भाजपा की जीत के कारणों की। भाजपा के लिए यह उपचुनाव जीतना काफी महत्वपूर्ण था और पार्टी ने इसके लिए कड़ी मेहनत की। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने रामगढ़ और बड़ौदामेव में सभाएं कीं, जिससे भाजपा के पक्ष में माहौल बना। इसके अलावा, भाजपा ने अपने कोर वोटर को बनाए रखने में सफलता पाई, और भीतरघात की समस्याओं पर भी काबू पाया।
भाजपा ने विशेष ध्यान दिया दलित वोटों पर। इसके लिए उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को मैदान में उतारा। इन नेताओं ने ताबड़तोड़ सभाएं कीं, जिससे दलित समुदाय के वोट भाजपा के पक्ष में आए। साथ ही, भाजपा ने प्रदेश सरकार के मंत्रियों जैसे गौतम दक, जवाहर सिंह बेढ़म और संजय शर्मा को भी प्रचार के लिए उतारा। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी सभाएं कीं, जो भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुईं।
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भाजपा ने बूथ मैनेजमेंट और घर-घर प्रचार पर भी विशेष ध्यान दिया। समय-समय पर सर्वे कराए गए, जिससे उन्हें चुनाव के हर दौर की सही स्थिति का अनुमान था। इस माइक्रो मैनेजमेंट और सही रणनीति के कारण भाजपा को रामगढ़ में जीत हासिल हुई। अब बात करते हैं कांग्रेस की हार के कारणों की, जो चुनावी माहौल में कई कमजोरियों का सामना किया। सबसे बड़ा कारण था एससी-एसटी वोटरों का बंट जाना। कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और भरतपुर सांसद संजना जाटव ने घर-घर जाकर वोट मांगे, लेकिन वे शत-प्रतिशत वोट जुटाने में सफल नहीं हो पाए।
कांग्रेस ने अपने बड़े नेताओं जैसे सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा और जितेंद्र सिंह को भी चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतारा, लेकिन इन नेताओं का प्रभाव वोटरों पर नहीं पड़ा। उनके वोटर्स एकजुट नहीं हो पाए, और इसका असर आर्यन जुबेर खान की हार में दिखा। कांग्रेस की हार का एक और कारण था उनका अति आत्मविश्वास। पिछले चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस को यह विश्वास था कि इस बार भी वे जीतेंगे, खासकर आर्यन जुबेर के निधन के बाद सहानुभूति की लहर पर भरोसा किया गया। लेकिन, यह रणनीति उलटी पड़ी और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, कांग्रेस ने पुराने बूथ मैनेजमेंट के तरीके अपनाए, जो अब समय के साथ प्रभावी नहीं रहे। इस कारण भी कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा और भाजपा को विजयी बना दिया।
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