जयपुर- कर्नाटक में चुनाव हारने के बाद अब भाजपा को पूरा ध्यान राजस्थान पर है। भाजपा राजस्थान में सत्ता में आने के लिए हर संभव प्रयास करती हुई नजर आ रही। अब सवाल यह उठता है की चुनाव से ठीक पहले ही भाजपा को शेखावत क्यों याद आए है। कही भाजपा भैरोंसिंह शेखावत के जरिए राजपूत वोटो को तो साधने का प्रयास नहीं कर रही। क्योकी इससे पहले राजपूतों की नाराजगी भाजपा पर भारी पड़ी थी। भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। अब ऐसे में चुनाव से ठीक पहले भैरोंसिंह को याद करना राजस्थान की सियासत में चर्चा का विषय बना हुआ है। दरसल प्रदेश में 85 ऐसी सीटें है जहां राजपूतों को सिधा प्रभाव है। पिछली बार राजपूतों की नाराजगी का खामीयाजा 32 सीटें गवाकर भुगतना पड़ा था।
2018 में चुनाव हारने का कारण भाजपा राजपूत समाज की नाराजगी को मानती है। यही कारण है की भाजपा फिर से यह गलती नहीं दोहराना चाहती, इसलिए भाजपा ने शेखावत के जरिए बिगड़े समीकरणों को सुधारने का प्रयास किया है। इसके साथ ही भाजपा इसके जरिए पुराने कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ने का प्रयास भी कर रही है। भाजपा 23 अक्टूबर का भैरोंसिंह शेखावत का जन्मदिन भी मनाने जा रही है इससे पहले भाजपा शेखावत के जन्म दिवस को जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में मनाकर वोट अपने पक्ष में करने का प्रयास करेगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री का टिकट काटना पड़ा था भारी
2014 लोकसभा चुनाव की बात करे तो 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल का टिकट काटकर कर्नल सोनाराम को टिकट थमा दिया था। जसवंत सिंह की छवि बड़े राजपूत लीडर के रूप में थी। ऐसे में उन्हें पार्टी का नजरअंदाज करना राजपूत समाज को रास नहीं आया। पार्टी से नाराज जसवंत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गए पर राजपूत समाज का दिल जीत गए। 2018 में जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह कांग्रेस से टिकट लेकर मैदान में उतरे लेकिन वसुंधरा के सामन मानवेंद्र को हार का मुंह देखना पड़ा था। पिता और फिर पुत्र के साथ भाजपा का रवैया राजपूतों को रास नहीं आया और इसका खामियाजा दुसरी सीटों पर भुगतना पड़ा।
राजपूत समाज का आनंदपाल एनकाउंटर के बाद एक जुट होना
गैंगस्टर आनंदपाल की 24 जून 2017 को पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई। जिसके बाद राजपूत समाज सड़कों पर आ गया। और भाजपा नेताओं पर आरोप लगाए। इस मुद्दे ने लगातार तुल पकड़े रखा, और बढ़ी संख्या में राजपूत समाज सांवराद में एकत्र हो गया। इस दौरान हुई हिंसा को लेकर राजपूत समसाज के नेताओं की जांच शुरू कर दि गई। चुनाव आने तक यह मुद्दा इतना सुलग चुका था कि इसकी आग की लपटे भाजपा तक पहुंची और भाजपा उस आग से बच नहीं पाई।
पदमावत फिल्म पर बवाल
रानी पदामावती पर बनी फिल्म में दिखाए कुछ दृश्यों को लेकर राजपूत समाज में आक्रोश फैल गया। इस को लेकर लंबे समय तक देश भर में विरोध प्रदर्शन किया गया। राजपूत समाज ने विरोध के दौरान चित्तौड़ का किला तक बंद कर दिया। भाजपा नेताओं की बात करें तो इस दौरान नरपतसिंह दो दिन तक चित्तौड़ किले के बाहर धरने पर बैठे रहे थे। हालांकि इसके बाद फिल्म में कई बदलाव किए गए पर राजपूत समाज बैन की मांग पर अड़ा रहा और और वसुंधरा सरकार ने राजस्थान में फिल्म रिलीज नहीं होने दि।
शेखावत के अध्यक्ष नहीं बनने से नाराज
भाजपा द्वारा जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष की कमान नहीं सौपने पर राजपूत समाज में नाराजगी बढ़ गई। शेखावत को राजस्थान की कमान सोपी जानी थी लेकिन नेताओं के विरोध के कारण शेखावत अध्यक्ष नहीं बन पाए। जिसके चलते राजपूत समाज के साथ क्षत्रिय युवक संघ खुलकर भाजपा के विरोध में समाने आया।
वह सीटें जहां राजपूत समाज का प्रभाव
राजस्थान में अगर राजपूत समाज की बात की जाए तो कई सीटें ऐसी है जहां राजपूत समाज अपना प्रभाव रखता है, लेकिन रतनगढ़, कपासन, शिव, जैतारण, हिंडौली, मेड़ता, सरदारपुरा, लाडपुरा, विराटनगर, सादुलपसुर, राजसमंद, लोहावट, मारवाड़ जंक्शन, शाहपुरा, वल्लभनगर, बाड़ी, आसींद, आहोर, मांडलगढ़, चित्तौड़गढ़, डीडवाणा, खेतड़ी, पिलानी, जालोर, ओसियां, सुमेरपुर, श्रीमाधोपुर, मावली, तारानगर, फलोदी, विधाधरनगर, तारानगर, धोद, बाली, भीनमाल, छबड़ा, सिविल लाइंस, बेगूं, नोखा, झुन्झुनूं, कोलायत, सरदारशहर, सांगोद, पचपदरा, सुजानगढ़, शेरगढ़, लाडनूं, बाड़मेर, नागौर, केकड़ी, सपोटरा, मसूदा, नवलगढ़, चुरू, उदयपुरवाटी, कोटपूतली, पीपल्दा, परबतसर, मांडल, जैसलमेर, मकराना, राजाखेड़ा, बड़ी सादड़ी, झोटवाड़ा, डेगाना, दांतारामगढ़, बानसूर, पोकरण, सोजत, बीकानेर पूर्व, नाथद्वारा, सांचोर, भीम, सूरजगढ़, कुंभलगढ़, नीमकाथाना, सिवाना, बिलाड़ा, खींवसर, नावां, लूणी, सिरोही सीटे ऐसी है जिन्हें राजपूत समाज सिधा प्रभावित करता है। इन सीटों पर राजपूत समाज को समर्थन जीत व हार में अपनी अहम भूमिका निभाता है।