जाति का जहर आखिर कब तक इस देश को पीना होगा? जाति के सहारे कब तक नेता अपना उल्लू सीधा करेंगे? जाति के नाम पर कब तक दंगे फसाद होंगे? या करवाए जायेंगे? भारत में रहकर क्यों नही सब भारतीय या हिंदुस्तानी हो जाते, ताकि देश तरक्की कर सके।
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चुनाव में जाति की जगह देश की तरक्की के नाम पर वोट डाले जा सके। अनपढ़, गंवार, जाहिल, गुंडे, अपराधी सत्ता से दूर रह सके। क्यों नही इस दिशा में सोचा जाता है। वैसे नेताओं और राजनीतिक दलों से इसकी उम्मीद करना खुद दीवार से अपना सिर फोड़ना है। इसके लिए युवा तरुणाई को कदम बढ़ाना होगा। राजस्थान में हाल ही हुए यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के चुनाव में जिस तरह से जाति का जहर घोलकर छात्र शक्ति से वोट लिए गए, उन्हें जाति के नाम पर बहकाया गया, समझ नहीं आ रहा, आखिर किस दिशा में जाने की सोच रहे हैं। चुनाव में शिक्षा और रोजगार के मुद्दों से कोई सरोकार ही नहीं था। संस्कारों की कोई बात नहीं थी। गुंडागर्दी के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था।
देश भले की आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है, लेकिन ये तब तक बेमानी है, जब तक देश जाति में बंटा रहेगा। जाति के आधार पर रोजगार दिए जायेंगे। योग्यता को ताक पर रखा जाएगा। ऐसे में 2047 तक कैसे भारत विकसित देश बन सकता है। प्रधानमंत्री का ये सपना सपना ही रह जायेगा।किसी भी दल में जाति के बारे में बोलने की हिम्मत नही है। यदि कोई नेता बोल जाए तो पूरे देश में आग लग जाती है। सब मंडी की तरह चिल्लाने लगते है। सड़कों पर उतर कर आगजनी करते है। जाम लगा देते हैं। जातियों के नेता भी सिर्फ जाति से बाहर देश की नही सोचते है। देश से पहले जाति को कर लिया और ये बहुत खतरनाक संकेत है।
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सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी जाति के लिए खड़े होने, एकजुट होने के ड्रामा किए जाते हैं। जाति आधारित पंचायत का सीजन चल रहा है। बड़ी बड़ी रैलियां हर जाति की हो रही है। इन सबका मकसद चुनाव में होने वाले टिकट में सभी राजनीतिक दलों को अपनी ताकत दिखाना है। ताकि इन जातियों के ठेकेदार विधानसभा और लोकसभा का टिकट हासिल कर सके। देखते रह जाते हैं वो लाखों जाति के लोग, जो भीड़ का हिस्सा बनकर आते हैं। ठेकेदार अपना उल्लू सीधा कर जाते हैं।
कोई तो आगे आकर ये कहे, हम सिर्फ हिंदुस्तानी है, भारतीय है। जाति धर्म इसके बाद है, जिसे निजी स्तर पर महसूस करना है। जाति शिक्षा, कौशल और संस्कार, नैतिक मूल्य की दिशा में काम करने की नही सोचते। जाति के नेता जाति के इतने ही हिमायती है तो तय कर ले अपनी जाति के हर किसी हाथ को रोजगार देने की जिम्मेदारी उनकी है। इस से कोई बेरोजगार नही होगा। जाति का आर्थिक विकास होगा। इसके बाद खुद देश की बात होने लगेगी। लेकिन ऐसा करने के बजाय खुद को मजबूत करने में जाति के नेता लगे रहते है और बाकी को पता भी नही चलता की उन्हें केवल यूज किया जा रहा है।
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हम सिर्फ जाति के संगठन बनाकर नेतागिरी करने में।लगे रहते है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, जाट, वैश्य, दलित के रूप में बंटकर खुद की सोच रहे है। भारत के भविष्य के लिए कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। हम चीन, जापान, फ्रांस, अमेरिका की तरह नही सोच रहे है, वहां सबसे पहले चीनी, अमेरिकी, फ्रांसिसी, जापानी की बात होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल स्पर्धाओं में भारत जीतता है, वहां भारतीय होने का गर्व महसूस होता है, पूरा देश एक होकर जश्न मनाता है लेकिन भारत आते ही पदक धारियों को जाति में बांट दिया जाता है। कितने पदक किस जाति के जीते। सोचो, क्या ये उचित है। पिछली बार एशिया कप क्रिकेट स्पर्धा में भारत ने पाकिस्तान को मात दी, पूरे देश ने जश्न मनाया। एक करोड़ 30 लाख से ज्यादा ने दुनिया भर में इस मैच को टीवी पर देखा। भारत के हर शॉट पर तिरंगा लहराया जा रहा था, भारतीय होने की जबरदस्त अनुभूति हो रही थी। क्यों नही दूसरे मामलों में भी भारतीयता का ये भाव आता। सरकार को ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जहां जाति नही सिर्फ हिंदुस्तानी की बात हो। सबके नाम के आगे से जाति की जगह भारतीय या हिंदुस्तानी लिखने की पहल की जाए। मुझे पता है जाति के बारे में लोगों को मेरे विचार पसंद नही आयेंगे, लेकिन उन्हें इस दिशा में सोचकर पहल करनी होगी, तभी आने वाली पीढ़ी को देश के विकास की राह का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जा सकेगा।अन्यथा इसी में उलझे रहे तो आने वाले समय में बहुत बुरे हालात होंगे, जहां से लौटना संभव नही होगा।
डॉ. उरुक्रम शर्मा
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