-तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली करारी हार से लगा झटका
-इंडी की बैठक से बड़े नेताओं ने दूरी बनाई
-सीटों का समझौता और बंटवारा इंडी के लिए बड़ी मुसीबत
राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत ने ना केवल कांग्रेस बल्कि इं-डि-या गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी। इंडी गठबंधन की बैठक को नीतीश, लालू यादव और ममता बनर्जी के शामिल नहीं होने की बात के कारण ही टाला गया। हालांकि सबने अपने अपने कारण गिनाएं, लेकिन हिन्दी भाषी राज्यों में कांग्रेस को मिली करारी हार के कारण अब गठबंधन के नेता कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकारने को तैयार नहीं लगते हैं।
सवाल उठता है कि किस तरह का गठबंधन बनाया गया है, जिसका कोई विजन नहीं है। सबका मक सद सिर्फ मोदी को हटाना है। यानी मोदी बनाम समूचा विपक्ष। केन्द्र से तनातनी के कारण पश्चिम बंगाल विकास के मामले में अन्य राज्यों से लगातार पिछड़ता जा रहा है। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव कांग्रेस के नेताओं के चुनाव के समय में उनके बारे में उल्टा सीधा कहने से खफा हैं, जिनमें प्रमुख कमलनाथ हैं। नीतीश और लालू समय की धारा के साथ बहने वाले नेता हैं। तीनों राज्यों में हार के बाद इंडी गठबंधन को जबरदस्त धक्का लगा है।
तेलंगाना में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई, वहां इंडी गठबंधन की आम आदमी पार्टी आदि ने कांग्रेस की जगह बीआरएस का साथ दिया। तीनों राज्यों में हालांकि आम आदमी को बड़ा झटका लगा है। नोटा को जितने वोट तीनों राज्यों में मिले हैं, उसके मुकाबले कहीं नजर नहीं आ रही है। एक तरफ तो आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल अपने मंत्रियों के जेल जाने से परेशान हैं, दूसरा लगातार मिल रहे झटकों से संकट में आ गए हैं।
इंडी गठबंधन समझ ही नहीं पा रहा है, आखिर 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी एंड टीम का मुकाबला किस तरह किया जाएगा, क्योंकि चुनाव से ठीक पहले भाजपा को मिली बड़ी जीत ने सबकी आंखें खोल दी है। कांग्रेस के नेता प्रमोद कृष्णन ने तो साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस को सनातन का विरोध नहीं करना चाहिए, भाजपा का विरोध करना है,खूब करें। उन्होंने कहा कि भारत की जनता अपने प्रधानमंत्री पर हल्की भाषा के हमले बर्दाश्त नहीं करती है। प्रधानमंत्री किसी एक पार्टी का नहीं होता है, वो देश का होता है। समझ नहीं आता, राहुल गांधी के इर्दगिर्द के सलाहकार उनसे ऐसा काम क्यों कराते हैं, जिसका नुकसान सीधे तौर पर कांग्रेस को हो रहा है।
राहुल गांधी ने पैदल यात्रा शुरू की और नाम दिया, भारत जोड़ो यात्रा। हिन्दुस्तान की जनता के समझ में ही नहीं आया, आखिर इस शीर्षक का क्या मतलब है। भारत टूटा कब था, जो जोड़ने की बात हो रही है। भारत तो आजादी के बाद सिर्फ पाकिस्तान के रूप में समझौते के तहत अलग हुआ था। हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा का जितना फायदा राहुल गांधी और उनकी पार्टी को मिलना चाहिए था, वो नहीं मिल पाया।
भारतीय जनता पार्टी के पास चुनाव प्रचार की कमान संभालने के लिए बड़े बड़े नेता हैं, जिनका अपना अपना वजूद हैं। ये राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय नेता हैं। जबकि दूसरे दलों, जैसे कांग्रेस के पास राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ही राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में पहचाने जाते हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे की राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान नहीं है। अशोक गहलोत राजस्थान से बाहर कोई बड़ा कद नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के भी सर्वमान्य नेता नहीं रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस के पास ममता बनर्जी के अलावा कोई दूसरा नहीं नेता नहीं है, जो पश्चिम बंगाल के बाहर भीड इकठ्ठी कर सके। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी बिहार से बाहर कुछ करने लायक स्थिति में नहीं है। अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश से बाहर कोई ताकत नहीं रखते हैं। लगातार दो विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के हारने के बाद अब उन्हें खासा महत्व हासिल नहीं होता है। अरविन्द केजरीवाल ने तीनों हिन्दी भाषी राज्यों में पूरी ताकत से चुनाव लड़ा, लेकिन किसी सीट पर मुंह दिखाने लायक वोट हासिल नहीं कर सके।
इस तरह देखा जाए तो इंडी गठबंधन के तमाम दल और उनके नेता तकलीफ में हैं। इनके पास ऐसा कुछ नहीं है जो लोकसभा चुनाव में मोदी के सामने चमत्कार दिखाने में कामयाबी हासिल कर ले। अभी तो इंडी की स्थिति यह है कि सीटों के बंटवारे का फार्मूला ही तय नहीं कर पा रहे हैं। इस मसले पर ही एक राय नहीं हो रहे हैं। ममता अपने राज्य में किसी का हस्तक्षेप स्वीकारने को तैयार नहीं है तो अखिलेश यादव चोट खाए हुए हैं। उत्तरप्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए गठबंधन के तहत 100 सीटें छोड़ी थी, जो बेकार गई। मध्यप्रदेश में हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर कांग्रेस से उम्मीदवार खड़े नहीं करने की बात हुई थी, लेकिन उसे नकार दिया गया था। ऐसे में अखिलेश इसका बदला उत्तरप्रदेश में लेने को तैयार बैठे हैं।
इन सबसे अहम इंडी गठबंधन के पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा लाखों कार्यकर्ताओं का कोई संगठन नहीं है, जो पूरी ताकत से चुनाव में परदे के पीछे से भाजपा को जिताने के लिए निस्वार्थ रूप से रात दिन एक कर देता है। व्यूह रचना बनाने से लेकर उसके सफल क्रियान्वयन को गति प्रदान करता है। अलबत्ता ताजा हालात तो इंडिया गठबंधन के भविष्य को लेकर सवालिया निशान लगाते ही हैं, साथ ही कांग्रेस समेत कोई भी दल आज इस स्थिति में नहीं है कि अपने बूते भाजपा और नरेन्द्र मोदी का मुकाबला कर सके।
डाक्टर उरुक्रम शर्मा
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