-गुलाम कश्मीर में जबरदस्त हिंसा
-लोगों की भारत में विलय की मांग
-भारत का झंड़ा लेकर कर रहे आंदोलन
-महंगाई ने तोड़ दी कमर
डॉ. उरुक्रम शर्मा
मोदीजी की भविष्यवाणी के सच होने का समय आ गया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के भारत में वापस आने के रास्ते खुल गए हैं। पीओके की जनता पाकिस्तान सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर चुकी है। जबरदस्त आंदोलन का दौर चल रहा है। पाकिस्तान पुलिस और अवाम में सीधी झड़पें हो रही है। आंदोलन पूरी तरह हिंसक हो चुका है। लोग हाथों में तिरंगा और पोस्टर लिए भारत में विलय की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की नींद उड़ गई है।
आपातकालीन बैठक कर पीओके में धारा 144 लगाई जा चुकी है, जिसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है। पीओके पूरी तरह से विकास से वंचित हैं। महंगी बिजली, महंगा गेहूं और महंगे पेट्रोल ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। शरीफ ने सेना को मोर्चा संभालने को कहा, लेकिन सेना से हस्तक्षेप से मना करते हुए पुलिस को ही निपटने को कहा है। हिंसक आंदोलन में एक एसपी की मौत हो गई और 100 से ज्यादा पुलिस वाले घायल हो गए। सरकार की सख्त बंदिशों का भी अवाम पर अब कोई असर नहीं हो रहा है।
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पीओके 1947 में विभाजन के बाद कबालियों के कब्जे में चले गया था और यह भारत का अभिन्न अंग है। भारत की सरकार कई बार कह चुकी है, कि पीओके भारत का हिस्सा है और भारत उसे लेकर रहेगा। पीओके के रहने वालों को जब भारत के कश्मीर की तरक्की का पता चलता है और वे उसकी अपने यहां से तुलना करते हैं, तो तिलमिला उठते हैं। बरसों से पीओके से पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता रहा है। आतंकियों की घुसपैठ की सबसे सुरक्षित जगह भी यही है। कश्मीर में धारा 370 हटने से पहले तक जिस तरह आतंक का तांडव मचा, उसे भूला नहीं जा सकता है।
1990 के दशक में कश्मीरी पंड़ितों को जिस तरह से चुन चुन कर निशाना बनाया गया। मस्जिदों से पंडितों कश्मीर छोड़ों के नारे लगाए गए। कश्मीरी पंडित अपने ही देश में अपना कारोबार, घर और संपत्ति को भगवान भरोसे छोड़कर जान बचाकर भागे और देश के विभिन्न हिस्सों में आज भी शरणार्थी की तरह जीवन जीने को मजबूर हैं। कश्मीर फाइल्स हिन्दी सिनेमा में कश्मीर के दर्द की जो कहानी दिखाई गई है, वो तो जो कुछ हुआ, उसका सिर्फ अंश मात्र है। कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान 75 साल से कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ता, जब अंतरराष्ट्रीय मंचों तक वो रोता नहीं हो। हर बार भारत के भारी प्रहार से उसे मुंह की खानी पड़ती है। कुछ मुस्लिम देश कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देते हैं, लेकिन भारत के आगे बोलने की हिम्मत नहीं दिखा पात हैं। इनमें तुर्की अहम है।
पीओके में आंदोलन की भयावहता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि तकरीबन समूचे क्षेत्र में चक्का जाम है, बाजार और शिक्षण संस्थाएं बंद है। स्त्री-पुरुष सड़कों पर उतरे हुए हैं। पुलिस से सीधा टकराव हो रहा है। शाहबाज शरीफ संकट में हैं और समूचे आंदोलन को राजनीति करार दे रहे हैं। उग्र लोगों ने पुलिस पर पत्थर फेंके, बोतले फेंकी। आंदोलन में स्थिति नियंत्रण में करने को पुलिस को अश्रु गैस के गोले और हवाई फायरिंग करनी पड़ रही है। पुलिस की किसी अपील का आंदोलनकारियों पर फर्क नहीं पड़ रहा है। पाकिस्तान वैसे ही महंगाई से त्रस्त है। दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुका पाकिस्तान दुनियाभर से कटोरा लेकर भीख मांग रहा है।
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आईएमएफ शर्ते नहीं मानने पर स्वीकृत ऋण को जारी नहीं कर रहा है। यही वजह है कि जरूरत की सभी चीजों के भाव आम व्यक्ति की पहुंच से बाहर हो चुके हैं। करीब 290 पाकिस्तानी रुपए प्रति लीटर पेट्रोल पहुंच चुका है। गेहूं ने खून के आंसू निकाल रखे हैं। बिजली ना तो पूरी दी जाती है बल्कि इसकी दरें भी आदमी की चुकाने की क्षमता से बाहर हो चुकी है। समूचे परिदृश्य को देखें तो कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का पीओके से नियंत्रण कमजोर हो चुका है। रावलकोट और मुजफ्फराबाद में जिस तरह से आंदोलन उग्र होता जा रहा है। लोगों ने कानून को अपने हाथों में ले लिया है। पुलिस से सीधे तौर पर टकरा रहे हैं। यानी मौत का भय खत्म हो चुका है। पाकिस्तान सरकार जनता से अपील कर रही है कि आंदोलन शांति से करें, जो भी मांगें हैं, उनके समाधान के लिए सरकार तैयार है, लेकिन आंदोलनकारियों पर इसका असर नहीं हो रहा है। बहरहाल पीओके के आंदोलन ने पाकिस्तान की मुसीबत जहां बढाई है, वहीं वहां की जनता को अब भारत में अपना भविष्य नजर आ रहा है।
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