डॉ. उरुक्रम शर्मा
जम्मू-कश्मीर से संविधान की धारा 370 हटाने के केन्द्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद अब राजनीति के चलते विरोध और अपने स्वार्थों के लिए की जा रही राजनीति पर विराम लग गया है। 370 एक अस्थायी प्रावधान था, जिसे केन्द्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को हटा लिया था। अस्थायी 70 साल तक कुछ नहीं हो सकता है। उसकी समीक्षा की जानी चाहिए थी, लेकिन वोटों के खिसकने के डर से कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। यही कारण रहा कि वहां आतंकवाद पनपने लगा। अलगाववादी नेताओं ने पैर पसार लिए। केन्द्र की सरकार ने उन्हें भारी सिक्योरिटी और तमाम सुविधाएं तक प्रदान कर दी।
भाजपा का प्रारंभ से ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाने का संकल्प रहा था। प्रत्येक चुनाव में इसे दोहराया जाता रहा है। जैसे ही भाजपा को केन्द्र में पूर्ण बहुमत मिला, वैसे ही इसे हटाने की कवायद तेज हो गई। राज्यसभा में भी पूरा बहुमत जुटाया गया और एक झटके में जम्मू-कश्मीर से इसे हटा दिया गया। जैसे ही हटाने का काम शुरू हुआ, महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में तिरंगा फहराने वाला कोई नजर नहीं आएगा। भारी खून-खराबा हो जाएगा। फारूख अब्दुल्लाह जैसे नेताओं ने कहा था कि मोदी या किसी की हिम्मत नहीं है कि कश्मीर से इसे हटा सके। हट गया और कोई खून खराबा नहीं हुआ। कश्मीर में तिरंगा फहरने लगा। पत्थरबाज गायब हो गए। टेरर फंडिंग के मामले में स्थानीय अलगाववादी नेताओं के काले चेहरे सामने आ गए। लाल चौक पर तिरंगा लहराने लगा।
वोटों की खातिर एक तरह से कश्मीर को बंधक बना लिया गया था। नेता आतंकियों के इशारे पर नाचने लगे थे। कश्मीर से पंडितों को मार-काट दिया गया। बहन-बेटियों की आबरू को तार-तार किया गया। धर्म विशेष के पूजा स्थलों से पंडितों कश्मीर छोड़ने के ऐलान किए गए। रातों रात बड़ी संख्या में जान बचाकर पंड़ित वहां से भागे और आज भी अपने देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर हो गए। कश्मीर फाइल्स में कश्मीर की वेदना को बताया गया, लेकिन वो भी हकीकत के मुकाबले अंश मात्र रहा। एक तरह से कश्मीर में भारत विरोधी नारे लगते थे और पाकिस्तान जिन्दाबाद की गूंज होती थी। भारत का तिरंग सरे आम जलाया जाता था। तत्कालीन केन्द्र सरकारों ने फौज तो तैनात कर रखी थी, लेकिन हाथ बांध रखे थे। उन्हें पावर लैस कर रखा था। वो पत्थरबाजों तक पर कार्रवाई नहीं कर पाती थी। देश में मोदी सरकार के आने के बाद फौज को खुली छूट दी गई। दंगाई घरों में घुसने के लिए मजबूर हुए। धारा हटाने के बाद पत्थरबाज बिलों में घुस गए। एक तरह से कश्मीर में युवाओं को भारत के प्रति पूरी तरह गुमराह किया जा चुका था। उन्हें शिक्षा लेकर कामयाब होने की नहीं, भारत के खिलाफ आग उगलने की शिक्षा दी जाती रही। केन्द्र की तत्कालीन सरकारें मूक दर्शक बनी देखती रही।
केन्द्र की मोदी सरकार ने ना केवल धारा 370 हटाई, बल्कि जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित राज्य का दर्जा दे दिया। लद्दाख को अलग करके उसे भी एक केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। केन्द्र सरकार ने कई बार कहा कि जम्मू कश्मीर का वर्तमान दर्जा स्थिति सामान्य होने तक ही रहेगा, उसके बाद वहां चुनी हुई सरकार राज करेगा और पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल होगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को 30 सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने का सरकार को आदेश दिया है। सरकार इस दिशा में हालांकि पहले ही काम शुरू कर चुकी है।
यह जम्मू कश्मीर को भारत के संविधान से अलग का दर्जा देता है। इसके तहत राज्य सरकार को यह अधिकार था कि वो अपना संविधान स्वयं तैयार करे और उसके अनुसार सरकार चलाए। इसके अलावा संसद को अगर राज्य में कोई कानून लाना है तो वहां की सरकार की मंजूरी अनिवार्य होती थी। धारा 370 हटने के बाद अब जम्मू कश्मीर भी अन्य राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों जैसा ही हो गया। पहले यहां केन्द्र सरकार का कोई कानून लागू नहीं होता था, अब देश का संविधान और तमाम कानून यहां लागू होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कश्मीर के नेताओं उमर अब्दुल्ला ने कहा कि संघर्ष जारी रहेगा, वहीं गुलाब नबी आजाद ने इसे निराशा वाला बताया। महबूूबा मुफ्ती ने इसे भारत की हत्या करार दिया। अब इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है, जिसकी सुनवाई इसी बैंच के सामने बंद कमरे में होगी। कई बार याचिका कर्ताओं की अपील पर खुली अदालत में भी सुनवाई होती रही है।
बहरहाल धारा 370 और 35ए हटने के बाद कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने जिस तरह से इस फैसले का जमकर विरोध किया था। उन्हीं ने इसे सुप्रीम अदालत तक पहुंचाया। कांग्रेसी नेता और देश के ख्यातनाम वकील ने फैसला आने के बाद कहा कि, कई मामले हार पता होते हुए भी लड़े जाते हैं।
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