इंसान सदा खुद को सबसे अच्छा समझता है, समझना भी चाहिए। लेकिन एक बार रोज सुबह दर्पण में अपनी तस्वीर जरूर देख ले। फिर अपना विश्लेषण करे। उसे अपनी असली तस्वीर नजर आने लगेगी। उसे उसकी कमियां दिखेगी। उसे अहसास होगा उसका आचार, विचार और व्यवहार दूसरों के प्रति क्या वैसा ही है, जैसा वो उनसे खुद के लिए अपेक्षा करता है।
जैसी अपेक्षा दूसरों से की जाती है, पहले वैसे अपने को बनाकर तो देखो। किसी को अपना बनाने के लिए पहले खुद को बदलना होगा। खुद के अहम को त्याग के मन में सेवा भाव जगाना होगा। परमार्थ को सर्वोपरि करना होगा। मैं को मारना होगा, अपना थोपना नहीं, बल्कि उसका सुनना होगा। कैसे आप किसी के मददगार हो सकते हैं, इस पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
परोपकार और परमार्थ जब जीवन में ढाल लिया तो जीव जंतु भी मूक होकर सदा आपके आगे पीछे घूमेंगे। रोज आपकी प्रतीक्षा करेंगे। आपका जरा सा उनको सहलाना ही उन्हें सुकून देगा। ठीक वैसे ही आप जब किसी से उम्मीद तो कर रहे हैं कि उसे जब जरूरत पड़े तो वो हाजिर हो लेकिन ये तब संभव है जब उसकी जरूरत पर बिना कहे आप उसकी मदद करें। सनातन धर्म में सेवा,परोपकार और परमार्थ को ईश्वर की राह का सर्वश्रेष्ठ मार्ग बताया गया है। ऐसा नहीं है की लोग ये जानते नहीं है लेकिन उसे अपनाते नही। अपेक्षा सदा दूसरों से रखते हैं, खुद करने की आदत नही बनाते।
बच्चों और पत्नी से पूरी उम्मीद की जाती है लेकिन क्या उनकी इच्छा अनुरूप किया या सिर्फ पति और पिता होने के नाते अपनी चीजें थोपी।कभी महसूस किया पत्नी को क्या चाहिए, बच्चों को पिता से क्या उम्मीद है। जब इसका अहसास नहीं करते तो धीरे धीरे पत्नी और बच्चे आपसे दूरी बनाने लगते है, संबंध उतना ही रखते की आप पति और पिता का तमगा लेकर बैठे हैं। खुद तो ये सोचते है पत्नी आपको बिस्तर पर लाकर चाय दे और कभी बीमार पड़ जाए तो उसकी सुध लेने के स्थान पर उसे नाटक की संज्ञा दें। बच्चों पर सदा ऑर्डर की भूमिका में रहे, यानी आपने जो कह दिया हिटलर की तरह उसे सब माने। भाई कोई खुदा हो क्या। खुद को ऐसा बनाओ कि बच्चे बिना कहे ही सब करे, दिल से सम्मान और प्यार भी करें।
अपने अहंकार को मिटाना होगा। परिवार की खुशी को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। आपसी संतुलन और सामंजस्य को उच्च स्तर पर रखना होगा।यदि आप परिवार को खुशी नही दे सकते तो आपको बाहर कहीं खुशी नही मिलेगी। लोग मीठी मीठी बोलकर आपको बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा करेंगे और आप अपनी झूठी तारीफ के दम पर अपना सब कुछ खोते जायेंगे। परिवार में खुशी, शांति और प्रगति है,तो ये सत्य है,बाहर भी ये सब कुछ मिलेगा। विचार, मंथन और विश्लेषण को मथना होगा। खुद को ऐसा बनाना होगा की जिस तरह दूध, मक्खन, दहीऔर मट्ठा अपनी अपनी जगह अपने गुणों के कारण अपना महत्व रखते हैं, ठीक वैसे ही आपका व्यक्तिव होना चाहिए।
डॉ उरुक्रम शर्मा
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