डॉ. उरुक्रम शर्मा
कर्नाटक में चुनावी बिगुल बजने के बाद राजनीतिक योद्धाओं के बीच घमासान शुरू हो चुका है। दो विचारधारा की कर्नाटक में लड़ाई है। एक जिसमें तुष्टिकरण को पोषित करना है, दूसरा इसका प्रबल विरोध। इस विचारधारा में कैसे कोई अस्तित्व बचाकर सिंहासन तक जा सकता है, इसी पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। कर्नाटक विधानसभा एक तरह से क्वार्टर फाइनल है, जिसका फाइनल अगले साल लोकसभा चुनाव के रूप में खेला जाएगा। वैसे सेमीफाइनल इसी साल नवंबर में चार राज्यों के बीच होगा। इसी से अगले साल देश में होने वाले लोकसभा चुनाव की तस्वीर भी लगभग साफ हो जाएगी।
कर्नाटक चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा अहमियत रखता है। इस राज्य की जीत राहुल गांधी के भविष्य की दिशा भी तय करेगी। भाई का राजनीतिक इकबाल बुलंद रखने के लिए प्रियंका गांधी लगातार वहां पूरी ताकत से जनसंपर्क में लगी है। कांग्रेस को एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से सरकार आने की उम्मीद है। भाजपा दोबारा सरकार बनाने के लिए पूरी तरह संकल्पबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी तरह से कमान संभाल रखी है। रोड शो से लेकर पब्लिक मीटिंग धुंधाधार तरह से कर रहे हैं। अमित शाह और जेपी नड्डा भी लगातार जुटे हुए हैं।
भाजपा ने धर्म आधारित 4 फीसदी आरक्षण को चुनाव की घोषणा से पहले ही समाप्त करके साफ कर दिया कि उनकी पार्टी तुष्टिकरण के खिलाफ है। इस आरक्षण को उन्होंने प्रभावशाली लिंगायत व अन्य समुदाय में बांट दिया। भारतीय संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का प्रावधान नहीं है, लेकिन पूर्व शासन से यह चला आ रहा था। ऐसा करके बहुसंख्यक समाज को अपने फेवर में लेने का पासा फेंका है। कांग्रेस इसे खत्म करने का विरोध कर रही है और इसे वापस लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस ने तुष्टिकरण के समर्थन में बजरंग दल की तुलना प्रतिबंधित संगठन बजरंग दल से करते हुए जनता से वादा किया है कि धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वालों पर ना केवल सख्त कार्रवाई होगी, बल्कि प्रतिबंधित भी किया जाएगा।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जनता का लुभाने के लिए मुफ्त का चंदन लगाने का वादा कर रही है। जेडीएस भी पीछे नहीं है। कमोबेश सभी पार्टियां 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त, सिलेंडर मुफ्त, 10 किलो चावल मुफ्त, आधा किलो दूध रोजाना मुफ्त, बसों में महिलाओं को सफर मुफ्त, बेरोजगार ग्रेज्युट्स को दो साल तक 3000 रुपए महीने, डिप्लोमाधारियों को 1500 रुपए महीने आदि आदि वादे कर रही हैं।
कर्नाटक में तीनों पार्टियों में ही घमासान मचा हुआ है। हालांकि जेडीएस और कांग्रेस चुनाव परिणाम बाद हाथ मिलाकर सरकार बना सकती है। वैसे भाजपा तोड़फोड़ और खरीद-फरोख्त में माहिर है। कर्नाटक में पिछली बार यह करके दिखा चुकी। मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ की इसी कारण से सरकार गिरी। महाराष्ट्र में भी यही पिक्चर दोहराई गई और उद्दव ठाकरे के नाम के आगे पूर्व मुख्यमंत्री लग गया। कर्नाटक चुनाव परिणाम भाजपा के फेवर में जाता है तो नरेन्द्र मोदी का कद और बढ़ जाएगा। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की किरकिरी हो जाएगी। कांग्रेस के फेवर में परिणाम जाता है तो सांसदी जाने के बाद तमतमाए राहुल गांधी और कांग्रेस आक्रामक तरीके से 2024 के लोकसभा चुनाव तक भाजपा की नींद उड़ा देंगे।
कनार्टक जीत से कांग्रेस के सोए पड़े कार्यकर्ताओं में भी आशा की किरण जागेगी। इसी किरण की रोशनी इस साल नवंबर में होने वाले चार राज्यों पर भी पड़ेगी। चार में से दो राज्यों में कांग्रेस के बहुमत की सरकार है। इन दोनों राज्यों को बचाना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगा। राजस्थान में तो परंपरा है कि पांच साल बाद जनता शासन बदल देती है। इस बार अशोक गहलोत को उम्मीद है कि सरकार रिपीट होगी। हालांकि राजस्थान में कांग्रेस गुटों में बंटी हुई है और गहलोत व सचिन पायलट गुट में घमासान मचा हुआ है। मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार के खुले आरोप लग रहे हैं। भाजपा एंटी इनकंबेंसी के आधार पर गहलोत के खिलाफ माहौल बनाने में लगी है।
भाजपा में अंदरखाने जबरदस्त गुटबाजी है। नेताओं की खींचतान के चलते ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए एकता नजर आ रही है। भाजपा की फूट के दम पर काफी हद तक गहलोत रिपीट करने का दावा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का गढ़ बचाना प्राथमिकता है। वहीं मध्यप्रदेश में चुनी हुई सरकार के गिरने का कांग्रेस को बदला लेना है। तेलंगाना में क्षेत्रीय दलों के आगे कांग्रेस और भाजपा दोनों बौनी हैं।
वैसे कर्नाटक में चुनाव जीतने के लिए अभी कांग्रेस नेगेटिव पब्लिसिटी का सहारा ले रही है, जो कि पिछले चुनावों में पूरी तरह फेल हो चुकी। जब जब कांग्रेस के नेताओं ने नरेन्द्र मोदी के लिए अभद्र व असंसदीय भाषा का प्रयोग किया, भाजपा ने उसे टूल बनाकर सहानुभूति की लहर में बदला। यही वजह है कि कांग्रेस कई राज्य हाथ से गंवा बैठी और 2019 के लोकसभा चुनाव में सीमित संख्या में सिमट कर रह गई।
कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जहरीला सांप बताया। उन्होंने कहा कि यह जहरीला है या नहीं, इसे जो भी चखेगा, मर जाएगा। हालांकि बाद में उन्होंने इस बयान पर सफाई दी, लेकिन तब तीर निकल चुका था। मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि खड़गे के बेटे ने मोदी को नालायक बेटा बता डाला। हालांकि भाजपा के एक विधायक ने भी सोनिया गांधी को विषकन्या तक कह डाला।
कर्नाटक चुनाव को सभी पार्टियां करो या मरो की नीति से लड़ रही है। इसमें कोई मर्यादा का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। जनता को लुभाने की हर मनोहर घोषणाएं की जा रही हैं। अलबत्ता, देश की अगली सरकार किसकी बनेगी, इसी हरी बत्ती भी कर्नाटक चुनाव परिणाम से ही नजर आ जाएगी। इसी चुनाव परिणाम से इस साल होने वाले चार राज्यों की स्थिति भी लगभग साफ हो जाएगी। ऐसे में पूरे देश ही नहीं दुनिया भर की निगाहें कर्नाटक पर टिकी हुई हैं।
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