– डॉक्टर उरुक्रम शर्मा
सनातनियों के लिए गौरव और गर्व का समय है। हो भी क्यों नहीं, आखिर रामलला 492 साल बाद अयोध्या के राम मंदिर में बिराजमान होंगे। भगवान राम युगों से हर सनातनी की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है। कल भी राम थे, आज भी राम हैं और कल भी राम रहेंगे।
राम अजर अमर हैं। राम एक विश्वास है, मर्यादा है, एक दिशा है, जीवन जीने का नाम है। राम को अयोध्या में उसी जगह प्रतिस्थापित किया जा रहा है तो गलत क्या है। इसके लिए तो बरसों-बरसों से अदालत में लड़ाई चली है। तमान प्रमाणिक धार्मिक ग्रंथों में राम के अस्तित्व के प्रमाण मौजूद हैं। सनातनी युगों से राम को अपना आराध्य मानते हुए उनकी आराधना करते आ रहे हैं।
ऐसे में राम के अस्तित्व को चुनौती देकर करोड़ों सनातनियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम किया। आज वो ही लोग राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। सब विरोधी अपने अपने चश्मे से इसे देख रहे हैं। वो उनकी सोच है, लेकिन देश ही नहीं विदेशों तक आस्था रखने वाले करोड़ों-करोड़ों सनातनियों के लिए यह स्वाभिमान का दिन है। आत्म गौरव का समय है।
राम को काल्पनिक तक बताकर राम का नहीं, सनातनियों का नहीं, बल्कि स्वयं का अपमान किया गया है। राम तो सत्य हैं, सत्य को कोई कभी डिगा नहीं सकता है। समय लग सकता है, लेकिन सत्य की खामोशी अपना अस्तित्व ठीक उसी तरह बताती है, जिस तरह से 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह हो रहा है।
विरोध के लिए विरोध होना चाहिए, आलोचना के लिए आलोचना खुलकर होनी चाहिए, लेकिन सत्य वो भी प्रभु राम के लिए अनावश्यक टीका टिप्पणी स्वयं के पतन का मार्ग प्रशस्त करती है। राम तो वो हैं, जिन्होंने अपने पिता का एक वचन निभाने के लिएल राजपाट का त्याग करने में कतई संकोच नहीं किया। इस त्याग की कोई तुलना नहीं की जा सकती है।
यह एक संदेश था कि माता पिता से बड़ा संतान के लिए कोई नहीं होता है। उस मां के प्रति भी प्रभु का कोई राग द्वेश नहीं मन में आया, जिसके वचन निभाने के लिए पिता ने उन्हें 14 वर्ष का वनवास सुनाया। उस भाई के प्रति भी जरा सी मन में कटुता नहीं आई, जिसके लिए राज मांगा गया। बस तमाम राजशाही सुविधा छोड़कर वनवासी बन निकल गए। 14 वर्ष के वनवास के दौरान उन्होंने समाज के लिए वो काम किया, जिससे समरसता का भाव पैदा हो। निषाद राज की बात हो या मां शबरी की। जटायु, जामवंत, अंगद, नील की हो क्यों ना बात हो।
जब अयोध्या वापस लौटे तो उनके जंगल के सभी मित्रों को उसमें आमंत्रित करके मानव जाति को संदेशा दिया कि विपरीत समय पर साथ देने वाले को कभी मत भूलो, उसे साथ रखो। असली मित्र वो ही है। जन जन की आस्था के केन्द्र भगवान रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर राजनीति भी गर्म हो गई। सबको यह लगने लगा कि इसका फायदा भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में लेगी।
भाजपा ने हर चुनाव में राम मंदिर निर्माण का अपने घोषणा पत्र में शामिल किया है। बाकायदा इसको लेकर कानूनी लड़ाई लड़ी है। जीत हासिल हुई है, उसके बाद जनसहयोग से अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। विरोधी दलों को यह चुनावी खेला लग रहा है। कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी या फिर मल्लिकार्जुन खडग़े या फिर अधीर रंजन चौधरी सबको प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण पत्र भेजा गया, लेकिन उन्होंने निमंत्रण ठुकरा दिया।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने इसे आरएसएस व भाजपा का फंक्शन बताकर दूरी बना ली। कभी राम मंदिर निर्माण के लिए अग्रणी भूमिका निभाने वाले बाला साहेब ठाकरे की शिव सेना भी भाजपा से अलग होने के बाद मंदिर से दूरी बना ली। अब उद्व ठाकरे की शिवसेना ने अयोध्या नहीं जाकर महाराष्ट्र में ही 22 जनवरी को अपने स्तर पर कार्यक्रम करने का फैसला किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ना केवल इससे दूरी बनाई बल्कि इस दिन राज्य में सद्भावना रैली का आयोजन का ऐलान किया।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार हो या राजद सुप्रीमो लालू प्र्साद यादव पहले ही दो टूक नहीं जाने की बात कह चुके हैं। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव तो वैसे ही किनारा कर चुके। वामपंथी सीताराम येचुरी, वृंदा करात ने भी यही किया। एनसीपी सुप्रीमो शरद पंवार भी इस समारोह से खुद को अलग कर चुके।
आम आदमी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने खुद के बचाव के लिए दिल्ली में सुंदरकांड़ के आयोजन शुरू कर दिए। महत्वपूर्ण यह है कि निमंत्रण पत्र मिलने के बाद नहीं जाने वाले नेता और दल वो ही हैं, जो नरेन्द्र मोदी से लोहा लेने के लिए एकजुट हुए हैं और नया गठबंधन बनाया है। कांग्रेस के नेता प्रमोद कृष्णन ने तो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाने के फैसले पर पुनर्विचार करने तक की सलाह दे डाली। उन्होंने कहा कि विरोध भाजपा का करो, मोदी का करो-देश और धर्म का नहीं। हालांकि उत्तरप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने समारोह में जाने का ऐलान किया है।
गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष ने भी समारोह में नहीं जाने के फैसले को गलत ठहराया है। किसको जाना है, किसको नहीं। कौन जा पाएगा, कौन नहीं। कहते हैं ना भगवान के दरबार में वो ही जा सकता है, जिसको खुद भगवान बुलाते हैं। बिना उनकी मर्जी के तो पत्ता भी नहीं हिल सकता है। वैसे भी तुलसीदास जी ने कहा है, जांकी रही भावना रही जैसी, प्रभु मूरत देखी….।
यह तो सत्य है कि सभी विरोधी दलों को लग रहा है कि इस कार्यक्रम के जरिए सनातनियों को एक जुट करने का खेल है। सनातनी इसको लेकर एक भी हैं, चाहें वो किसी भी दल से जुड़े हैं, क्योंकि राम तो सबके हैं। बस, पहल इनके हाथ से हो रही है, जबकि कांग्रेस के ही राजीव गांधी ने अयोध्या में ताला खुलवाकर पूजा की शुरूआत की अनुमति दी थी, भले ही कारण कुछ भी रहा हो। अब उनकी पत्नी और पुत्र ही इसके विरोध में हो गए, इस पर कई सवाल खड़े होते हैं।
सनातनी सब सहन कर सकता है, लेकिन अपने आराध्य का अपमान कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। राम ने कभी जाति नहीं बल्कि मानवीयता-इंसानियत और सर्वसमाज को साथ लेकर चलने का संदेश दिया था। परन्तु विरोधियों ने जातियों को बांटकर वोटों में तब्दील करने के लिए जातिगत जनगणना का पासा फेंका, यह पासा हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में तो असफल हो गया।
जनता विकास चाहती है। अपना और अपने परिवार की प्रगति चाहती है। वो इस तरह से जातियों के राजनीतिक खेल में अब उलझना नहीं चाहती है। उत्तरप्रदेश के दो विधानसभा चुनाव इसके परिणाम है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव परिणाम सबके सामने हैं। बहरहाल देखना यह है कि अब विरोध करने वालों का अगला डेमेज कंट्रोल कदम क्या होगा?
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