Dr. Urukram Sharma – भारत की मानसिकता में जब तक जातिवाद का जहर घुला रहेगा, तब तक भारत का असली भारत बनना मुश्किल है। नेताओं के दिमाग में जब तक जातियों को बांटकर वोट बैंक की राजनीति की जाएगी, तब तक उनसे देश की तरक्की की उम्मीद करना बेमानी होगी। अंग्रेजों ने जिस तरह के खेल रचकर भारत पर बरसों तक राज करने में कामयाबी हासिल की, आज भी नेता उसी मानसिकता से घिरे हुए हैं।
आजादी के 75 साल पूरे हो चुके, देश अमृत काल में हैं। देश के संविधान को लागू हुए भी 75 साल हो गए, लेकिन भारत के राजनीतिज्ञ जातिगत मानसिकता से परे ही नजर नहीं आ रहे हैं। इसका जन्म अनुसूचित जाति में नहीं हुआ, इसका जन्म अनुसूचित जाति में हुआ। ये अन्य पिछड़ा वर्ग का नहीं है आदि आदि। सुनकर नई पीढ़ी को अपने नेताओं से घिन्न होती है। कोर्स में पढ़ाया जाता रहा है कि महापुरुषों की जीवनी। उनसे देश को प्रेरणा मिलती है।
क्या अब पैदा नहीं होते महापुरुष?
पिछले 40 साल के इतिहास पर नजर डालें तो क्या देश में महापुरुष पैदा होने ही बंद हो गए? जिनकी जीवनी को बच्चों को पढ़ाया जाए। महात्मा गांधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, लाल बहादुर शास्त्री, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह आदि की जीवनी को जब पढ़ते हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अब किस नेता को महापुरुष का दर्जा मिलेगा कि आने वाली पीढ़ी उससे प्रेरित हो सके? शायद सभी का जवाब नहीं में होगा। यह स्वाभाविक भी है और सत्य भी।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान एक सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जाति को लेकर काफ ी कुछ कहा, उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी ओबीसी में पैदा नहीं हुए हैं। वे जन्म से ओबीसी नहीं है। वे तेली जाति में पैदा हुए हैं। नरेन्द्र मोदी जी संसद में कहते हैं कि वो ओबीसी हैं, आपको भयंकर बेवकूफ बनाया जा रहा है। वो कभी जातिगत जनगणना नहीं कराएंगे।
आखिर जातिगत गणना की जरुरत क्यों?
एक नेता जो लगातार देश की सत्ता की ड्राइविंग सीट पर बैठने के लिए बरसों से प्रयास कर रहा है। कांग्रेस जैसी पार्टी और गांधी परिवार से नाता रखने वाले राहुल गांधी जब देश के प्रधानमंत्री के बारे में जाति को लेकर बिन सामयिकता के ऐसी बात करते हैं, तो उन्हीं की पार्टी के लोगों के मन में कई सवाल खड़े हो जाते हैं। देश की जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, बल्कि उनके व्यक्तित्व पर ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी जाति के नहीं है, बस वो सिर्फ भारतीय हैं। सवाल यह भी है कि आखिर जातिगत गणना की क्यों राहुल गांधी पैरवी करते हैं? इससे क्या हो जाएगा। किसी भी जाति में कोई भी पैदा हो, इससे क्या फर्क पड़ जाता है?
हाल ही हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने जीतने पर जातिगत जनगणना का हर सभा में ऐलान किया। पांच में से एक राज्य में कांग्रेस को सत्ता मिली। दो राज्यों में जो सत्ता थी, वो हाथ से छिन गई, तीसरे बड़े राज्य में सत्ता में आने के ख्वाब धुल गए। यानी जनता जातिगत जनगणना का समर्थन नहीं करती है। जनता सिर्फ विकास की बात को पसंद करती है। कौन किस जाति में पैदा हुआ, यह सब तो आरक्षण की व्यवस्था लागू होने के बाद उठाए जाने वाले सवाल बने हुए हैं।
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अहम सवाल यह है कि –
“हम कब तक जातिगत राजनीति की जहर लोगों में बोते रहेंगे। नेता और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग, क्यों नहीं देश की जनता में भारतीयता का भाव पैदा करते हैं। .. क्यों नहीं भारतीय होने का गर्व करवाते हैं। क्यों हम भारतीय होने पर अभिमान नहीं करते हैं।”
जापान जैसे तमाम देशों में चले जाएं, वहां जातियों की बात नहीं, बल्कि वहां के लोग बड़े गर्व से खुद को दुनियाभर में जापानी कहलाने में अभिमान महसूस करते हैं। अमेरिकन प्रांतों में रहने के बावजूद खुद को अमेरिकन और ब्रिटिश भी यह करते हैं। चीन के लोग चाइनीज और रूस के रशियन कहलाने में देश के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करते हैं। हिन्दुस्तान में किसी से पूछो, तो वो जवाब देता है कि मैं अमुक गांव, अमुक तहसील, अमुक जिला और अमुक राज्य का रहने वाला हूं। मेरी जाति यह है। आखिर देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र की कल्पना साकार करने की बात की जा रही है।
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फौजी कैसे होते हैं जातिवाद से बाहर?
जातियों की राजनीति में उलझकर इस सपने को कैसे पूरा कर पाएंगे? सेना में जाते हैं, वहां तो सारी जातियां होती है, लेकिन सब भारतीय फौजी कहलाते हैं। सब फौजी रहते भी एक साथ मिलकर हैं। वहां जातियां नहीं देखी जाती है, ना ही जाति देखकर भर्ती की जाती है। यानी सब जातियां एक हैं और सारे भारतीय हैं। यही कारण है कि भारतीय फौज आज दुनिया की सबसे ताकतवर फौज में चौथे स्थान पर आती है। इन फौजियों को देखकर हर हिन्दुस्तानी गर्व महसूस करता है। उसके प्रति सम्मान का भाव होता है। जब फौजी शहीद होकर अपने गांव आता है तो वो सिर्फ शहीद कहलाता है, वो जाति के आधार पर सम्मान नहीं पाता है। ठीक इसी तरह खेलों में कोई जाति नहीं खेलती है, हिन्दुस्तानी खिलाड़ी खेलते हैं। जीतने पर भारतीय टीम की जीत कही जाती है, जातियों की जीत नहीं कही जाती है। इतना कुछ होने के बाद भी हमारे देश के नेता जातियों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
प्रधानमंत्री की जाति पर बात करते हैं। राष्ट्रपति की जाति पर सवाल खड़ा करते हैं। कई बार तो बड़ा अफसोस होता है, ऐसे नेताओं पर। जो भारतीयता को आज तक भी जाति के आगे सम्मान नहीं देते हैं। जनता ऐसे नेताओं को देश की बागडोर आखिर किस आधार पर सौंपे, यही यक्ष प्रश्न है।
– डॉ. उरुक्रम शर्मा